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लोकल सरकार का गला न घोटों माननीय


लोकल सरकार यानी नगर निगम बोर्ड प्रदेश सरकार की तरह है एक निर्वाचित सरकार है। उसको भी प्रदेश सरकार की भांति नीति नियोजन का संविधान प्रदत्त अधिकार प्राप्त है।

रिपोर्ट  - à¤°à¤¤à¤¨à¤®à¤£à¥€ डोभाल

लोकल सरकार यानी नगर निगम बोर्ड प्रदेश सरकार की तरह है एक निर्वाचित सरकार है। उसको भी प्रदेश सरकार की भांति नीति नियोजन का संविधान प्रदत्त अधिकार प्राप्त है। लगभग 12 साल से लोकल सरकार के संविधान प्रदत्त अधिकार का माननीय ने गला घोट रखा है। माननीय की हरी झंडी नहीं मिलने से शासन से प्राप्त ग्रांड के करोड़ों रुपए लैप्स होते रहे हैं। समय पर धनराशि खर्च नहीं होती है। बार - बार ग्रांट खर्च करने के अवधि बढ़ाने के लिए शासन के पास जाना पड़ता है। यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्तराखंड राज्य विधानसभा 70 सदस्यीय है और लोकल सरकार सांसद, दो विधायकों व महापौर सहित 64 सदस्यीय है। महापौर का ओहदा तथा निर्वाचन क्षेत्र विधायक से दुगना है। विधायक का क्षेत्र 37 वार्ड तक है महापौर 60 वार्ड का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें दो बनते हैं। सरकार में कैबिनेट मंत्री का जो पोट्रोकाल है महापौर कम नहीं है। इसके बावजूद माननीय ने पर्दे की डोर खुद पकड़ रखी है। महापौर के खिलाफ कब प्रेस करनी है।कब प्रदर्शन करना यह माननीय ही तय करते हैं। महापौर अनीता शर्मा की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं हैं और उनके पति राजनीतिक कार्यकर्ता तो हैं परंतु परिपक्व नहीं हैं। उनकी इस कमजोरी का माननीय फायदा उठा रहे हैं। यह स्थिति इसी बोर्ड की नहीं है। सतपाल ब्रह्मचारी के बोर्ड के बाद कोई बोर्ड चला ही नहीं है। भाजपा का होते हुए भी कमल जोरा का नगरपालिका बोर्ड इसलिए नहीं चलने दिया गया क्योंकि उन्होंने खन्ना नगर में दरबार लगाना मंजूर नहीं किया तो निर्वाचित बोर्ड को कार्यकाल से डेढ़ साल पहले ही भंग कर घर बैठा दिया गया। बोर्ड भंग होने के बाद खन्ना नगर के इशारे पर ही अधिकारी नाचते रहे हैं। माननीय शहरवासियों को ऊंचे ख्वाब दिखाते हुए नगरपालिका को उच्चीकृत कर नगर निगम बनवा। नगरपालिका के ही 30 वार्डों का पहला मेयर मनोज गर्ग बने। वह माननीय के ही पसंद थे। लेकिन जब उन्होंने कुछ करना चाहा तो करने नहीं दिया गया। उन्हें प्रदेश में कांग्रेस सरकार के समय काम करना पड़ा और कांग्रेस के सत्ता में रहते हुए उनकी स्थिति स्थानीय कांग्रेसियों ऐसी ही बना कर रखी जैसे अब महापौर अनीता शर्मा की है। लेकिन भाजपा सरकार बनने के बाद मनोज गर्ग को ज्यादा बुरे दिन देखने पड़ें। अधिकारी फाइल पहले खन्ना नगर भेजते थे फिर मनोज गर्ग के पास। सफाई कर्मियों के तबादले तक खन्ना नगर से होने लगे थे। बातों बातों में उन्होंने एक दिन कह भी दिया था कि इससे अच्छा कांग्रेस के सरकार में ही ठीक थे कम से कम राजनीति तो कर लेते थे। जनता द्वारा निर्वाचित पार्षद चुनाव के समय किए गए चुनावी वायदों को लेकर परेशान हैं।कई को तो विकास कराना है तो साथ आओ का झांसा देकर पाला बदल भी कराया गया। खन्ना नगर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के चलते भले ही कोई सार्वजनिक रूप से कुछ न कहें लेकिन भाजपा के वार्ड पार्षद भी उतने ही परेशान हैं जितने कांग्रेस के हैं। भाजपा पार्षद को इतना सकुन हैं कि उनके कहने पर अधिकारी जेई, एई वार्ड में आ जाते हैं और पार्षद अपने समर्थकों को बुलाकर जेई, एई के साथ विकास के फोटो खींच कर फेसबुक पर डाल देते हैं, इससे अधिक कुछ नहीं। पार्षदों को अपने अधिकारों का न तो पता है और न वह जानने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें पता है अधिकार जानकर क्या करेंगे होना तो वहीं है जो वह चाहेंगे।अगर पार्षदों ने कभी अपने अधिकारों को जानने समझने की कोशिश की होती तो शहर की ठेकेदारों ने जो दुर्दशा कर रखी है वह नहीं होती। पार्षदों को समझना चाहिए कि नगर निगम बोर्ड नगर निगम क्षेत्र में होने वाले विकास कार्यों की नोडल एजेंसी है।उसकी अनुमति के बिना शहर में कोई विभाग एक कील भी नहीं ठोक सकता है। शहर ट्रैफिक प्लान तक नगर निगम ही बना सकता है लेकिन अधिकार नहीं जानने के कारण पुलिस का सिपाही तक महापौर की गाड़ी को रोक देता है। शहर का ट्रैफिक प्लान बनाना नगर निगम का काम है और उसको लागू करना पुलिस का काम है। नगर निगम बोर्ड दो साल का कार्यकाल पूरा करने की ओर बढ़ रहा है। इस अवधि सात नगर आयुक्त बदल चुके हैं।जब तक अधिकारी काम और सियासत को समझ पाता है, उसको हटा दिया जाता है।नया आता है और फिर शून्य से शुरू करता है। किसी अधिकारी तथा पार्षदों में यह पूछने की हिम्मत नहीं है कि माननीय जिस नगर निगम भवन का उन्होंने शिलान्यास किया था वह कहां है। अधिकारी, कर्मचारी मुर्गा खानों में कब तक बैठेंगे। पार्षद नगर निगम में आएं तो कहां बैठे जो अधिकारी व कर्मचारी को बुलाकर वह वार्ड की समस्या बता सकें। स्थिति इतनी शर्मशार करने वाली है कि निर्वाचित पार्षद को एक एक बाबू की टेबल पर भटकना पड़ता तथा अपमानित होना पड़ता है।

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