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प्रकृति के सानिध्य में जीना ही स्वस्थ जीवन का आधार - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


विश्व प्रकृति दिवस (वल्र्ड नेचर डे) के अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने प्रकृतिमय जीवन जीने का संदेश दिया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 3 अक्टूबर। आज विश्व प्रकृति दिवस (वल्र्ड नेचर डे) के अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने प्रकृतिमय जीवन जीने का संदेश दिया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि प्रकृति, ईश्वर का दिया हुआ उपहार है जिसके बिना पृथ्वी पर जीवन सम्भव नहीं है। हम अपने आस-पास जो कुछ भी देख रहे हंै यथा जलस्रोत, नदियां, पर्वत, वृक्ष आदि अनेक प्रकृति प्रदत्त उपहार हैं जिनके बिना कुछ भी सम्भव नहीं है। प्राचीनकाल में लोग प्रकृति के सम्पर्क में ही रहते थे और प्रकृति के अनुरूप ही जीवनयापन करते थे इसलिये वे आज की तुलना में अधिक स्वस्थ थे और वातावरण में प्रदूषण भी नहीं था। स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय मंे नीड कल्चर के स्थान ग्रीड कल्चर हावी हो गया है, आवश्यकता की जगह लालच ने ले ली है। जिससे प्रकृति का अवैज्ञानिक तरीके से दोहन अधिक हो रहा है, शहरीकरण हो रहा है तथा पहले जहां हरे-भरे जंगल थे वहां पर कंक्रीट के जंगल खड़े हो गये हंै जिसके कारण हमारी धरती और प्रकृति प्रदूषित हो रही है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कोरोना एक चेतावनी हैं, पूरी मानवता के लिये कि अब तो जागो नही ंतो बहुत देर हो जायेगी। कोरोना प्रकृति का भेजा हुआ एक राजदूत है, जिसकी आवाज़ को अनसुना करना मानवमात्र के अहित में होगा। बडे़ ही धीरे से प्रकृति ने एक इशारा किया है, इन इशारों को समझने की जरूरत है। आज दुनिया के कई देश इस अदृश्य वायरस के संक्रमण से प्रभावित है। पूरी दुनिया की बहुत बड़ी आबादी कोविड-19 से संक्रमित हैं और लाखों लोग इस संक्रमण के कारण काल के गाल में समा गए है। कोरोना वायरस ने निपटने का कोई ठोस उपाय अभी दुनिया के पास नहीं है, इससे बचने का न तो कोई टीका है न ही अन्य कोई उपचार है। धरती पर कोविड-19 जैसे और दूसरे वायरस उत्पन्न हो रहे हैं जो मानव की शक्ति, बुद्धि, क्षमता, साहस और विवेक को चुनौती दे रहे हैं। प्रकृति का असंतुलन दुनिया के सामने अनेक चुनौतियां खड़ी कर रहा है। लगता है अब तो प्रकृति सीधे तौर पर यह चेतावनी दे रही है कि, अब भी समय है, संभल जाओ वरना बहुत देर हो जायेगी।

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