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नेताजी ने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाकर आजादी का बिगुल बजाया


सुभाष चन्द्र बोस को नेता जी के नाम से भी जाना जाता हैं। वे भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी एवं सबसे बड़े नेता थे।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार 21.10.2020 सुभाष चन्द्र बोस को नेता जी के नाम से भी जाना जाता हैं। वे भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी एवं सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आजाद हिन्द फौज का गठन किया। नेताजी द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा, भारत का राष्ट्रीय नारा बना। आजाद हिन्द फौज के माध्यम से उन्होने आजादी का बिगुल बजाया और तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा का नारा दिया। इतिहास के पन्नों से गुजरे कल पर चर्चा करते हुए गुरूकुल कांगडी (समविश्वविद्यालय) के असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅव शिवकुमार चैहान कहते है कि नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने सुप्रीम कमाण्डर के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए दिल्ली चलो का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया। सर्वप्रथम 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता प्रदान की। जापान की सरकार ने अंडमान व निकोबार द्वीप नेताजी की इस अस्थायी सरकार को ही दिये थे। उनके द्वारा इन द्वीपों का नया नामकरण किया गया। सन् 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त कराया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया इस भयंकर युद्ध में जापानी सेना को अन्त में पीछे हटना पड़ा जो आजादी के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ। 6 जुलाई 1944 को नेताजी ने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी करते हुए इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनायें माँगीं। नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जहाँ जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी मानना है कि सुभाष की मौत 1945 में नहीं हुई क्योकि इसके बाद नेताजी रूस में नजरबन्द रहे। सुभाष चन्द्र बोस की मौत की घटना आज भी रहस्य बनी हुई है।

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