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करवाचैथ जीवन के आनन्द उत्सव का पर्व


रमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द जी ने कहा कि हिंदू शास्त्रों और रीति-रिवाजों के अनुसार करवा चैथ का त्यौहार आपसी प्रेम और विश्वास का पर्व है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 4 नवम्बर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द जी ने कहा कि हिंदू शास्त्रों और रीति-रिवाजों के अनुसार करवा चैथ का त्यौहार आपसी प्रेम और विश्वास का पर्व है। करवा चैथ का व्रत विवाहित महिलाएं अपने अपने जीवनसाथी के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और दीर्घ आयु हेतु रखती हैं। कन्याएं उत्तम जीवनसाथी को पाने की कामना हेतु इस व्रत को करती है। पति की लंबी उम्र हो जाए और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हो इस कामना से महिलाएं चंद्रमा की पूजा कर व्रत को पूर्ण करती हैं। नारी के अद्भुत समर्पण का पर्व है। गीता में कहा गया है कि ’’शरीर तो नश्वर है जो भी धरती पर प्राणी है सभी का शरीर नष्ट होगा केवल आत्मा-अमर है। आत्मा, मनुष्य के कर्मों के अनुसार अलग-अलग शरीर धारण करती रहती है इसलिये व्रत के साथ जीवन में विचार, वाणी और कर्म की पवित्रता और शुद्धता भी होना नितंात आवश्यक है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुये कहा है कि’’जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रवंरुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।’’ कोई भी सदा नहीं रहता। आत्मा विभिन्न योनियों से होकर गुजरती है। जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी होगी परन्तु पर्व और त्योहार आपसी मतभेदों को मिटाने का और आपस में प्रेम के संचार का सबसे श्रेष्ठ माध्यम है। व्रत और त्योहार से घर और चित्त की शुद्धि होती है जिससे शांति प्राप्त होती है। चित्त शुद्धि से शांति और फिर समृद्धि तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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