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भारत में सामाजिक न्याय को स्थापित करने में आरक्षण की भूमिका


हेमवती नंदन गढवाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा 'भारत में सामाजिक न्याय को स्थापित करने में आरक्षण की भूमिका ' विषय को लेकर एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया ।

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

हेमवती नंदन गढवाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा 'भारत में सामाजिक न्याय को स्थापित करने में आरक्षण की भूमिका ' विषय को लेकर एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया । इस अवसर पर राजनीति विज्ञान विभाग के शिक्षकों ,शोधार्थियों एवं स्नातकोत्तर विद्यार्थियों ने अपने विचार व्यक्त किए । कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए शोध छात्र महेश भट्ट ने इस विषय का परिचय दिया तथा इसके बाद चर्चा के आरंभ में शोध छात्र मयंक उनियाल ने सामाजिक न्याय को पुनः परिभाषित करने की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहा कि इसे सही अर्थों में देखा जाना चहिये ताकि आरक्षण का सही मंतव्य पूरा हो सके । अंकित रांय ने सरकारों के प्रयासों की तरफ संतुष्टि जाहिर करते हुए उसकी समीक्षा करने तथा इसके विषय में और अधिक जागरूकता फैलाने के सुझाव दिया । इसके बाद सुशील कुमार ने आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों को रेखांकित करते हुए अपनी बात रखी, शोध छात्र सुशील कुमार ने कहा कि आरक्षण जहां एक तरफ पिछडे वर्गों के लिए वरदान है वहीं इससे सामान्य वर्गों को भी जोड़ने की आवश्यकता है और इस तरह इसे सामाजिक संदर्भों में व्यापक रुप से देखा जाना चाहिए ताकि अन्य वर्ग भी सापेक्ष रूप से लाभांवित हो सके । इसके बाद प्रोफ़ेसर आर एन गैरोला ने कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक न्याय को आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय से पहले उल्लेखित किया गया है इसका अर्थ है कि वास्तव में सामाजिक न्याय की अवधारणा की स्थापना संविधान का पहला कर्तव्य एवं समाज की पहली जरुरत है । उन्होंने इस संदर्भ में वर्ण व्यवस्था के सही अर्थ को विशेष रूप से वर्णित करते हुए चैतन्य महाप्रभु ,कबीर , स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी तथा डॉक्टर बीआर अंबेडकर द्वारा किए गए कार्यों का भी उल्लेख किया, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि निश्चित रूप से आरक्षण के प्रावधानों द्वारा हाशिये पर खड़े अंतिम व्यक्ति की बेहतरी,भलाई एवं उनके उत्थान के लिए कार्य हुआ है और वक्त के साथ बदलती आरक्षण की भूमिका,इसकी जरूरत का ही परिणाम था

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