Latest News

संन्यासी अखाड़ों ने दशहरे के अवसर पर किया शस्त्र पूजन


हरिद्वार में दशहरे के के अवसर पर, आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित दशनामी संन्यासी परंपरा के नागा संन्यासी अखाड़ों में शस्त्र पूजन का विधान है। पिछले 2500 वर्षों से दशनामी संन्यासी परंपरा से जुड़े नागा संन्यासी इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए अपने-अपने अखाड़ों में शस्त्र पूजन करते हैं।

रिपोर्ट  - à¤°à¤¾à¤®à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° गौड़

श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा, कनखल, हरिद्वार में दशहरे के के अवसर पर, आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित दशनामी संन्यासी परंपरा के नागा संन्यासी अखाड़ों में शस्त्र पूजन का विधान है। पिछले 2500 वर्षों से दशनामी संन्यासी परंपरा से जुड़े नागा संन्यासी इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए अपने-अपने अखाड़ों में शस्त्र पूजन करते हैं।अखाड़ों में प्राचीन काल से रखें सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश नामक भालो को देवता के रूप में पूजा जाता है।वैदिक विधि-विधान के साथ दशनामी संन्यासी इन देवताओं रूपी भालो की पूजा करते हैं। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए आज दशहरे के रोज श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा, कनखल में भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश नामक भाले देवता के रूप में पूजे गए।उन्हें दूध, दही ,शहद, फल- फूल और नवरात्र के अवसर पर उगाए गए हरेले से पूजा गया । यह भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश देवता रूपी भाले कुंभ मेले के अवसर पर अखाड़ों की पेशवाई के आगे चलते हैं और इन भालो रूपी देवताओं को कुंभ में शाही स्नानों में सबसे पहले गंगा स्नान कराया जाता है।उसके बाद अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर ,जमात के श्री महन्त और अन्य नागा साधु स्नान करते हैं। इसीलिए विजयादशमी के अवसर पर अखाड़ों में शस्त्र पूजन का विशेष महत्व है।श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज ने बताया कि दशहरे के दिन हम अपने प्राचीन देवताओं और शस्त्रों की पूजा करते हैं,क्योंकि आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने राष्ट्र की रक्षा के लिए शास्त्र और शस्त्र की परंपरा की स्थापना की थी। विद्वान पंडितों ने तीर्थ पुरोहित पंडित अवधेश शर्मा भगत के सानिध्य में मंत्रोचार के बीच शस्त्र पूजन संपन्न कराया ।

Related Post