हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में दशहरे के के अवसर पर, आदि जगदà¥à¤—à¥à¤°à¥ शंकराचारà¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ दशनामी संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ परंपरा के नागा संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ अखाड़ों में शसà¥à¤¤à¥à¤° पूजन का विधान है। पिछले 2500 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से दशनामी संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ परंपरा से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ नागा संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ इसी परंपरा का निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ करते हà¥à¤ अपने-अपने अखाड़ों में शसà¥à¤¤à¥à¤° पूजन करते हैं।
रिपोर्ट - रामेशà¥à¤µà¤° गौड़
शà¥à¤°à¥€ पंचायती महानिरà¥à¤µà¤¾à¤£à¥€ अखाड़ा, कनखल, हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में दशहरे के के अवसर पर, आदि जगदà¥à¤—à¥à¤°à¥ शंकराचारà¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ दशनामी संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ परंपरा के नागा संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ अखाड़ों में शसà¥à¤¤à¥à¤° पूजन का विधान है। पिछले 2500 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से दशनामी संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ परंपरा से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ नागा संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ इसी परंपरा का निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ करते हà¥à¤ अपने-अपने अखाड़ों में शसà¥à¤¤à¥à¤° पूजन करते हैं।अखाड़ों में पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल से रखें सूरà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ और à¤à¥ˆà¤°à¤µ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ नामक à¤à¤¾à¤²à¥‹ को देवता के रूप में पूजा जाता है।वैदिक विधि-विधान के साथ दशनामी संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ इन देवताओं रूपी à¤à¤¾à¤²à¥‹ की पूजा करते हैं। इसी परंपरा का निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ करते हà¥à¤ आज दशहरे के रोज शà¥à¤°à¥€ पंचायती महानिरà¥à¤µà¤¾à¤£à¥€ अखाड़ा, कनखल में à¤à¥ˆà¤°à¤µ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ और सूरà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ नामक à¤à¤¾à¤²à¥‡ देवता के रूप में पूजे गà¤à¥¤à¤‰à¤¨à¥à¤¹à¥‡à¤‚ दूध, दही ,शहद, फल- फूल और नवरातà¥à¤° के अवसर पर उगाठगठहरेले से पूजा गया । यह à¤à¥ˆà¤°à¤µ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ और सूरà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ देवता रूपी à¤à¤¾à¤²à¥‡ कà¥à¤‚ठमेले के अवसर पर अखाड़ों की पेशवाई के आगे चलते हैं और इन à¤à¤¾à¤²à¥‹ रूपी देवताओं को कà¥à¤‚ठमें शाही सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में सबसे पहले गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराया जाता है।उसके बाद अखाड़ों के आचारà¥à¤¯ महामंडलेशà¥à¤µà¤°, महामंडलेशà¥à¤µà¤° ,जमात के शà¥à¤°à¥€ महनà¥à¤¤ और अनà¥à¤¯ नागा साधॠसà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करते हैं। इसीलिठविजयादशमी के अवसर पर अखाड़ों में शसà¥à¤¤à¥à¤° पूजन का विशेष महतà¥à¤µ है।शà¥à¤°à¥€ पंचायती महानिरà¥à¤µà¤¾à¤£à¥€ अखाड़ा के सचिव शà¥à¤°à¥€ महंत रवींदà¥à¤° पà¥à¤°à¥€ महाराज ने बताया कि दशहरे के दिन हम अपने पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ देवताओं और शसà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की पूजा करते हैं,कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आदि जगदà¥à¤—à¥à¤°à¥ शंकराचारà¥à¤¯ ने राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की रकà¥à¤·à¤¾ के लिठशासà¥à¤¤à¥à¤° और शसà¥à¤¤à¥à¤° की परंपरा की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की थी। विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ पंडितों ने तीरà¥à¤¥ पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ पंडित अवधेश शरà¥à¤®à¤¾ à¤à¤—त के सानिधà¥à¤¯ में मंतà¥à¤°à¥‹à¤šà¤¾à¤° के बीच शसà¥à¤¤à¥à¤° पूजन संपनà¥à¤¨ कराया ।