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उत्तराखंड के लिए रोशनी की किरण के रूप में स्थापित है श्रीनगर मेडिकल कॉलेज जो निशंक की देन है


उत्तराखंड आंदोलन के दौर से ही श्रीनगर गढ़वाल के शिक्षण संस्थानों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1994 में उत्तराखंड आंदोलन हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से ही शुरू हुआ था।

रिपोर्ट  - à¤°à¤¾à¤®à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° गौड़

उत्तराखंड आंदोलन के दौर से ही श्रीनगर गढ़वाल के शिक्षण संस्थानों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1994 में उत्तराखंड आंदोलन हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से ही शुरू हुआ था। राज्य बनने के बाद आंदोलनों की इस जमीन को सरकारों ने शिक्षा नगरी के रूप में विकसित किया। श्रीनगर में तकनीकी शिक्षण संस्थान के रूप में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT) स्वास्थ्य शिक्षण संस्थान के रूप में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली राजकीय मेडिकल एवं शोध संस्थान श्रीनगर गढ़वाल व उच्च शिक्षा संस्थान के बतौर हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित हैं। जो इस छोटे से शहर को राज्य में ही नहीं अपितु देश भर में एक विशेष स्थान दिलाता है। 1973 में स्थानीय जनता के बड़े आंदोलन के बाद गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। इस विश्वविद्यालय ने न केवल इस पर्वतीय भाग में शिक्षा के द्वार खोले बल्कि राज्य बनाने की लड़ाई में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी विश्वविद्यालय के छात्रों ने 1994 में लोगों की उम्मीदों को आवाज दी। छात्रों की ही आवाज थी कि सन 2000 में अंततः केंद्र सरकार को सांस्कृतिक व भौगोलिक विषमता वाले क्षेत्र को एक राज्य का दर्जा देना पड़ा। बाद में इस राज्य विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा 2009 में दिया गया। इस संस्थान के केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद न केवल राज्य बल्कि राज्य और देश के बाहर के छात्र भी इस शहर में शिक्षा ग्रहण करने के लिए आने लगे। इस से शिक्षा के प्रसार के साथ ही इस क्षेत्र का विकास भी संभव हुआ। यह उत्तराखंड का पहला केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थान है। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली मेडिकल एवं शोध संस्थान की स्थापना 2008 में रमेश पोखरियाल निशंक के स्वास्थ्य मंत्री काल में हुई थी। इस स्वास्थ्य संस्थान में केवल मेडिकल की पढ़ाई ही नहीं होती बल्कि आसपास के पर्वतीय जिलों के लिए यह एक रोशनी की किरण के रूप में स्थापित हुआ। इस मेडिकल कॉलेज की खासियत यह है कि मेडिकल की पढ़ाई की बेतहाशा फीस के सामने यह कम फीस में ही छात्रों को डिग्री और बेहतर शिक्षा की गारंटी प्रदान करता है। यह केवल तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर भुवन चन्द्र खंडूरी एवं डा० रमेश पोखरियाल निशंक के प्रयासों से ही संभव हुआ। क्योंकि स्वयं डा० निशंक भी एक गरीब परिवार एवं ग्रामीण पृष्ठभूमि से संघर्ष करते हुए यहां तक पहुंचे हैं। उनका सदैव प्रयास रहा है कि प्रत्येक गरीब छात्र को धन की कमी के कारण उच्च शिक्षा से वंचित न रहना पड़े। डा० निशंक जिस अभाव में संघर्ष करते हुए केन्द्रीय मंत्रिमंडल में पहुंचे छात्रों को उनके जीवन से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहिए। तकनीकी शिक्षण संस्थान के रूप में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान 【NIT】 श्रीनगर की स्थापना की स्वीकृति 2008 में केंद्र सरकार ने दी। यह संस्थान इस राज्य के लिए महत्वपूर्ण संस्थान है। शिक्षण संस्थान के लिए लोगों ने अपनी कई एकड़ जमीन दान में दी। 2014 में राज्य की कांग्रेस सरकार के द्वारा इसका शिलान्यास किया गया। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन आने वाले इस संस्थान की जिम्मेदारी स्वयं माननीय निशंक जी ने ली है। इस पूरे घटनाक्रम में ये बात समझ आनी चाहिए कि अगर उनके पास ये मंत्रालय नहीं होता तो इस संस्थान के वापस आने की कोई उम्मीद नहीं थी। शिलान्यास कार्यक्रम में उन्होंने इस संस्थान को 2 साल में बनाने का आश्वासन भी दिया है । डा० रमेश पोखरियाल निशंक की उपलब्धियों में उत्तराखंड का एक और शिक्षण संस्थान आता है। श्रीनगर से कुछ ही दूर वर्ष 2012 में बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय भरसार की नींव रखने में रमेश पोखरियाल निशंक की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एक ऐसे राज्य में जिसके जिसके पास उद्यान और वानिकी में असीमित संभावनाएं हैं वहां इस तरह का संस्थान खोलना किसी दूरदृष्टि देखने वाले नेता का ही काम हो सकता है। ये सभी शिक्षण एवं शोध संस्थान श्रीनगर को एक एजुकेशन हब के रूप में प्रसिद्ध कर रहे हैं | इन शिक्षण संस्थानों को बेहतर बनाए जाने की जरूरत है और इस दौर में जब उत्तराखंड के सांसद मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसा बड़ा मंत्रालय संभाल रहे हैं तब यह उम्मीद करना गलत भी नहीं होगा। और जब खत्म होती उम्मीदों के बीच एनआईटी का दुबारा शिलान्यास रमेश पोखरियाल निशंक के द्वारा किया गया तो लोगों की उनसे उम्मीदें बढ़ना स्वाभाविक है।

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