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" विश्व विख्यात कुंभ नगरी में कब होगा" हरिद्वार जाँच आयोग रिपोर्ट का अनुपालन"


" क्या तीर्थ नगरी में माँ वैष्णों देवी की तर्ज पर "शाइन बोर्ड" का हो पायेगा गठन क्या हरिद्वार आने वाले तीर्थ श्रदालुओं को मिल पाएगी सुबिधायें?

रिपोर्ट  - à¤…जय शर्मा

हरिद्वार(अजय शर्मा) विश्व विख्यात तीर्थ नगरी में विश्व का सबसे बड़ा आयोजन महाकुंभ होने जा रहा है इस महा आयोजन की तैयारियों में उत्तराखंड सरकार और मेला प्रशासन पिछले 1 वर्ष से लगातार लगा हुआ है "लेकिन सरकार और प्रशासन शायद हरिद्वार "जाँच आयोग' की रिपोर्ट को भूल चुका है या आयोग की रिपोर्ट इनके लिए कोई मायने नहीं रखती" हद तो तब हो जाती है जब उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी सरकार और प्रशासन की नींद नहीं खुल पाती और जिम्मेदार अधिकारी लोक हित को दरकिनार कर देते हैं। आपको बता दें कि दिनाँक15/07/1996 को सोमवती अमावस्या के पावन पर्व पर हरिद्वार में घटित दुर्घटना के सम्बंध में शासन द्वारा न्यायमूर्ति" राधे कृष्ण अग्रवाल की अध्यक्षता में जाँच आयोग का गठन किया था जाँच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि" हरिद्वार में हरकी पौड़ी के क्षेत्र की व्यवस्था गँगा सभा,जो एक रजिस्टर्ड संस्था है। के साथ में है,उस क्षेत्र की सम्पूर्ण आमदनी,चढ़ावा आदि गंगा सभा ही लेती है। इसी प्रकार मनसा देवी मंदिर तथा चंडी देवी मंदिर का प्रबंध भी मंदिरों के न्यासः(ट्रस्ट) द्वारा किया जाता है और सम्पूर्ण चढ़ावा इन्हीं"न्यासः(ट्रस्ट)" को जाता है। हरि-की-पैड़ी क्षेत्र तथा इन दोनों मंदिरों का प्रबंध जनहित में अधिक सुचारू रूप से चलाने हेतु यह आवश्यक प्रतीत होता है कि हरि-की-पैड़ी क्षेत्र तथा दोनों मंदिरों का प्रबंध शासन के हाथ में हो। इस प्रकार की व्यवस्था उत्तर प्रदेश सरकार ने वाराणसी स्थित विश्वनाथ मंदिर तथा राजस्थान सरकार ने श्रीनाथद्वारा मंदिर जम्मू कश्मीर सरकार ने वैष्णों देवी मंदिर में किया और उस सम्बंध में जम्मू कश्मीर सरकार ने अधिनियम भी पारित किया। उस अधिनियम को चुनौती वैष्णों देवी मंदिर के बारीदार ने माननीय उच्च न्यायालय,जम्मू कश्मीर में इस आशय से दी कि प्रदेश सरकार द्वारा इस मंदिर का प्रबंध अपने हाथों में लेना अवैधानिक है। माननीय उच्च न्यायालय ने उस याचिका को निरस्त किया जिसके विरुद्ध बारीदार ने अपील सँख्या 85 सन 1997 भूरी नाथ आदि बनाम जे एन्ड के. माननीय उच्चतम न्यायालय में दाखिल की। माननीय न्यायालय ने उस अपील को 10 जनवरी,1997 को निरस्त करते हुए तथा उच्च न्यायालय के आदेश की पुष्टि करते हुए यह मत व्यक्त किया कि मंदिर का प्रबंध शासन द्वारा अपने हाथों में लेना उचित व वैधानिक है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा कि हरि-की -पैड़ी व उपरोक्त दोनों मंदिरों की व्यवस्था में सुधार लाना आवश्यक है जिससे तीर्थ यात्रियों को अधिक सुविधा होगी इन तीनों स्थानों से कम से कम दो करोड़ रुपया सलाना की आय होगी और इस धन का सदुपयोग किया जाय तो इन क्षेत्रों का समुचित विकास एवं प्रबंध हो सकता है और तीर्थ यात्रियों को वांछित सुविधा प्रदान की जा सकती है जो वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं। आयोग ने आगे लिखा कि यह संभव है कि इस प्रकार के कदम उठाने से वहाँ के प्रबंधकों द्वारा कुछ विरोध हो सकता है, परन्तु जनहित में यह न्यायोचित होगा कि शासन इस और गंभीरता से विचार करें। लेकिन बिडम्बना है कि आयोग की इस रिपोर्ट पर 24 वर्ष बाद भी किसी सरकार/शासन ने कोई विचार करना उचित नहीं समझा। " उत्तराखंड उच्च न्ययालय के आदेश पर भी नहीं सुधरी व्यवस्था" आपको यह भी बता दें कि माननीय उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर वर्ष-2012 में आदेश पारित करते हुए हरिद्वार के जिलाधिकारी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को इन अति महत्वपूर्ण क्षेत्रों की व्यवस्थाओं में सुधार लाने तथा व्यवस्थाएँ सुचारू रूप से चलाने को कहा था और जिलाधिकारी ने माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में इन क्षेत्रों की व्यवस्था हेतु प्रशासनिक समितियों को गठन भी किया लेकिन जिलाधिकारी द्वारा गठित प्रशासनिक समितियां नाकाम साबित हुई हैं समितियों के अधिकारी प्रभावशाली संस्था/ट्रस्टों के आगे नतमस्तक हो जनहित को दरकिनार करते चले आ रहे हैं।

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