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त्याग से आध्यात्मिक जीवन की सार्थकता: डॉ पण्ड्या


वसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि त्याग से ही आध्यात्मिक जीवन की सार्थकता है। जिसमें जितनी त्याग की भावना है वह उतना ही महान है। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने त्याग को लेकर कई महत्त्वपूर्ण बातें कही है। उन्होंने जीवन भर देने का ही कार्य किया है।

रिपोर्ट  - à¤°à¤¾à¤®à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° गौड़

देसंविवि के मृत्युंजय सभागार में आयोजित गीतामृत की विशेष कक्षा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दीपावली के अवसर पर हमें बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए पटाखों का त्याग करना चाहिए। इससे एक ओर धन की बर्बादी नहीं होगी, तो वही दूसरी ओर प्रदूषण भी कम होगा। त्याग आंतरिक रूप से होना चाहिए। त्याग में प्रेम, सुख व संतुष्टि भी मिलती है। युवा चेतना के उद्घोषक डॉ. पण्ड्या ने चाणक्य, बिनोवा आदि का उल्लेख करते हुए त्याग से होने वाले विविध लाभों का विस्तृत जानकारी दी। इस अवसर पर ‘ऋषियों के तप त्याग, तेज गुण महान धर्म महान की..’ प्रज्ञागीत ने उपस्थित लोगों में त्याग की भावना को जगाने हेतु उल्लसित किया। श्रीमद्भगवद गीता की आरती के साथ कक्षा का समापन हुआ। इस अवसर पर देसंविवि व शांतिकुंज परिवार उपस्थित रहे।

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