आचारà¥à¤¯ बालकृषà¥à¤£ ने लेकर आठथे तपोवन से कनखल नौ सालों तक हिमालय के तपोवन में की थी कठोर साधना
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° 4 फरवरी पतंजलि योगपीठके महामंतà¥à¤°à¥€ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ बालकृषà¥à¤£ की धरà¥à¤® माता और पूरà¥à¤µ केंदà¥à¤°à¥€à¤¯ मंतà¥à¤°à¥€ उमा à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ की गà¥à¤°à¥ बहन सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ मां आज शà¥à¤°à¥€ रामकृषà¥à¤£ मिशन सेवाशà¥à¤°à¤® दोपहर 2:30 बजे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥€à¤¨ हो गई उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अंतिम सांस रामकृषà¥à¤£ मिशन चिकितà¥à¤¸à¤¾à¤²à¤¯ में ली सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ मां 89 वरà¥à¤· की थी और वे कई वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक हिमालय कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के तपोवन में कठोर तपसà¥à¤¯à¤¾ करती रही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ तपोवन से आचारà¥à¤¯ बालकृषà¥à¤£ अपने साथ कनखल दिवà¥à¤¯ योग मंदिर लेकर आठऔर उनकी धरà¥à¤® माता के रूप में सेवा की वे कà¥à¤› महीनों से बीमार थी और रामकृषà¥à¤£ मिशन सेवाशà¥à¤°à¤® में आचारà¥à¤¯ बालकृषà¥à¤£ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤°à¥à¤¤à¥€ कराया था और आचारà¥à¤¯ बालकृषà¥à¤£ और उनसे जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ लोग सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ मां की सेवा में लगे थे आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ के घर उनके लिठरोज सà¥à¤¬à¤¹ नाशà¥à¤¤à¤¾ जाता था और आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ रामदेव उनसे मिलते रहते थे सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ मां को कल शà¥à¤•à¥à¤°à¤µà¤¾à¤° को उतà¥à¤¤à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¥€ जिले के गंगोरी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में असी गंगा घाट के पास सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ आशà¥à¤°à¤® में à¤à¥‚ समाधि दी जाà¤à¤—ी सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ मां का संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ पूरà¥à¤µ नाम वारिजा था और वे मूल रूप से करà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤• के उडà¥à¤ªà¥€ की रहने वाली थी संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ दीकà¥à¤·à¤¾ के बाद वे हिमालय à¤à¥à¤°à¤®à¤£ में आई और यहीं की होकर रह रही आचारà¥à¤¯ बालकृषà¥à¤£ उनके अंतिम संसà¥à¤•à¤¾à¤° में à¤à¤¾à¤— लेने उतà¥à¤¤à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¥€ जाà¤à¤‚गे पूरà¥à¤µ केंदà¥à¤°à¥€à¤¯ मंतà¥à¤°à¥€ उमा à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ जी उनके अंतिम संसà¥à¤•à¤¾à¤° में पहà¥à¤‚चेंगी अपनी गà¥à¤°à¥‚ बहन को à¤à¤¾à¤µà¥à¤•à¤¤à¤¾ से याद करते हà¥à¤ उमा à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ कहती है कि वह महान संत थी और उचà¥à¤š कोटि की तपसà¥à¤µà¥€ थी और उनका मन बहà¥à¤¤ उदार था आचारà¥à¤¯ बालकृषà¥à¤£ ने बताया कि मां सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हिमालय कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में मिली थी और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वे अपने साथ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° कनखल लेकर आठà¤à¤¾à¤µà¥à¤• होते हà¥à¤ आचारà¥à¤¯ ने बताया कि वे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मां की तरह बहà¥à¤¤ पà¥à¤¯à¤¾à¤° दà¥à¤²à¤¾à¤° देती थी और वे तपसà¥à¤µà¥€ संत थी उनकी पूरà¥à¤¤à¤¿ कà¤à¥€ नहीं की जा सकती योग गà¥à¤°à¥ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ रामदेव ने कहा कि मां सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ à¤à¤• उचà¥à¤š कोटि की संत थी और à¤à¤• साधक की तरह उनमें मातृ à¤à¤¾à¤µ कूट-कूट के à¤à¤°à¤¾ था मां सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ की सेवा में लगी मेरठसे आई उनकी शिषà¥à¤¯à¤¾ मीनाकà¥à¤·à¥€ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ ने बताया कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उडà¥à¤ªà¥€ करà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤• में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ तेजावर मठके पीठाधीशà¥à¤µà¤° उचà¥à¤š कोटि के संत सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विशà¥à¤µà¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° तीरà¥à¤¥ से महाराज से संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ दीकà¥à¤·à¤¾ ली थी वह उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में गंगोतà¥à¤°à¥€ धाम से 25 किलोमीटर ऊपर हिमालय के तपोवन कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के इस बरà¥à¤«à¥€à¤²à¥‡ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में लगातार 9 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ 1987 से 1996 कठोर तपसà¥à¤¯à¤¾ की थी आज पंचांग तिथि के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° माघ मास की कृषà¥à¤£ पकà¥à¤· की सपà¥à¤¤à¤®à¥€ के दिन सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विवेकानंद जी की जयंती के अवसर पर रामकृषà¥à¤£ मिशन असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² के संतो और चिकितà¥à¤¸à¤•à¥‹à¤‚ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤¬à¤¹ माला पहनाई उनकी पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ की और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ दिया उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बड़ी ही आतà¥à¤®à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ से पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया और दोपहर बाद सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विवेकानंद जयंती के दिन वह बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® में विलीन हो गई उनके निधन की खबर से संत समाज में शोक की लहर दौड़ गई । मठऔर मिशन के सचिव सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ नितà¥à¤¯à¤¶à¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤‚द महाराज ने बताया कि आज सà¥à¤¬à¤¹ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विवेकानंद जी की जयंती के अवसर पर मां सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ ने पूजा सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° की जिसमें संत लोग रोगियों की अगरबतà¥à¤¤à¥€ धूप से पूजा करते हैं और फल वितरण करते हैं। कà¥à¤› देर उपरांत करीब 2:30 बजे उनका देहावसान हो गया वे विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾ की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• थी सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ मां के à¤à¤•à¥à¤¤ लगातार उनसे संपरà¥à¤• में थे और वे उनके असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² होने के बावजूद सेवा में आते रहते थे। और मैं अपने हाथों से उनको सबको यथासंà¤à¤µ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ वितरण करती थी जिसे पाकर वे हमेशा धनà¥à¤¯ हो जाते थे आज वह मां का साया सबके सिर से उठगया वरिषà¥à¤ चिकितà¥à¤¸à¤• डॉकà¥à¤Ÿà¤° संजय शाह ने बताया कि हिमालय तपोवन में 9 सालों तक कठोर तपसà¥à¤¯à¤¾ करने पर उनके शरीर की मांसपेशियां अतà¥à¤¯à¤‚त गल गई थी और 1997 में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हिमालय तपोवन से शà¥à¤°à¥€ रामकृषà¥à¤£ मिशन सेवाशà¥à¤°à¤® कनखल लाया गया और उनका इलाज किया किया गया सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ होने के बाद 1998 में वे मानसरोवर और मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ नारायण की तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¤¾ पर गई मां सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ की सेवा में लगी हà¥à¤ˆ राधिका नागरथ बताती है कि मां हरमन पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ थी और वे हर किसी के हाथ से खाना बड़े पà¥à¤¯à¤¾à¤° से खा लेती थी और जो à¤à¥€ उनके लिठकोई फल वगैरह लेकर आता तो वे उसे à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ में बांट देती और असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² के पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ ककà¥à¤· में वे सतà¥à¤¸à¤‚ग करती थी मां के लिखे हà¥à¤ à¤à¤œà¤¨ जब मैं उनको सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥€ तो वह उसमें से गलतियां निकालती और सही करती थी मिशन के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाधिपानंद जब उनसे कनà¥à¤¨à¤¡à¤¼ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में बात करते तो à¤à¥€ बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ होती थी आज उनके अंतिम दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठअसà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² में तांता लगा हà¥à¤† है देश के कोने कोने से उनके à¤à¤•à¥à¤¤ आ रहे हैं सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ मां को रामकृषà¥à¤£ मिशन सेवाशà¥à¤°à¤® के संतो सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ उमेशà¥à¤µà¤°à¤¾à¤¨à¤‚द मंजू महाराज, सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जगदीश महाराज सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाधिपानंद महाराज, सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ हरि महिमानंद महाराज, सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ देवता नंद महाराज ,डॉकà¥à¤Ÿà¤° चौधरी डॉकà¥à¤Ÿà¤° संजय शाह ,कà¥à¤²à¤¦à¥€à¤ª ,मà¥à¤‚बई से आई मां सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ की बहनें बसंती और वनजा ,डॉकà¥à¤Ÿà¤° राधिका नागरथ ,शैलेंदà¥à¤° सकà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ ,चंदà¥à¤°à¤®à¥‹à¤¹à¤¨, मीनाकà¥à¤·à¥€ आदि ने मां की पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ देह के पास शांति पाठकिया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤¾à¤µà¤à¥€à¤¨à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि दी कनखल निवासी रानी ने à¤à¥€ उनकी बहà¥à¤¤ सेवा