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संत महापुरूषों के सानिध्य में श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल में किया गया धर्मध्वजा रोहण


स्वामी ज्ञानेश्वर दास महाराज बने निर्मल अखाड़े के महामण्डलेश्वर

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार, 10 अप्रैल। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल की छावनी में सभी तेरह अखाड़ों के संत महापुरुषों की उपस्थिति में धर्म ध्वजारोहण किया गया। ध्वजारोहण के पश्चात स्वामी ज्ञानेश्वर दास महाराज का महाण्डलेश्वर पद पर पट्टा अभिषेक किया गया। धर्मध्वजा स्थापित कर रहे संतों पर हैलीकाॅप्टर से पुष्पवर्षा कर अभिनन्दन किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए निर्मल पीठाधीश्वर श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह वेदांताचार्य महाराज ने कहा कि कुंभ मेला संत महापुरुषों के ज्ञान, तप एवं वैराग्य की पराकाष्ठा को दर्शाता है। मेले के दौरान देश विदेश से तपस्वी संत आकर भक्तों को आशीर्वाद प्रदान कर उनका कल्याण करते हैं। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल समाज सेवा के प्रकल्पों के माध्यम से समाज को सदैव ही मानव सेवा का संदेश प्रदान करता आ रहा है। नवनियुक्त महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानेश्वर दास महाराज एक तपस्वी संत है। जो महामण्डलेश्वर पद पर रहते हुए निर्मल अखाड़े की परंपराओं का निर्वहन कर अखाड़े को उन्नति की ओर अग्रसर करेंगे। जयराम पीठाधीश्वर स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने कहा कि महापुरुषों का जीवन सदैव परोपकार के लिए समर्पित होता है और निर्मल अखाड़े के संतो ने प्रारंभ से ही सेवा भाव का संदेश देकर समाज का मार्गदर्शन किया है। उन्होंने कहा कि स्वामी ज्ञानेश्वर दास महाराज का सौभाग्य है कि वे पतित पावनी मां गंगा के पावन तट और कुंभ मेले के दौरान महामंडलेश्वर की पदवी पर विराजमान हुए हैं। उन्नाव सांसद महामण्डलेश्वर सच्चिदानन्द हरि साक्षी महाराज ने कहा कि कुंभ मेले के दौरान संत महापुरुष विश्व को धर्म का संदेश प्रदान करते हैं। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल की गौरवशाली परंपरा विश्व विख्यात है और कुंभ मेला सनातन संस्कृति का शिखर उत्सव है। हमें आशा है कि महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानेश्वर दास महाराज निर्मल अखाड़े की परंपराओं का निर्वहन करते हुए संतों का गौरव बढ़ाएंगे। कोठारी महंत जसविंदर सिंह महाराज एवं महंत रंजय सिंह महाराज ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में संतो की अहम भूमिका है और कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का केंद्र बिंदु है जो पूरे विश्व में भारत का एक अलग स्थान बनाता है। इस अवसर पर महंत अमनदीप सिंह, महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री, महामण्डलेश्वर स्वामी हरिचेतनानन्द महाराज, महंत मोहन सिंह, स्वामी ऋषिश्वरानन्द, बाबा हठयोगी, महंत दुर्गादास, महंत प्यारा सिंह, महंत कमलजीत सिंह, महंत दर्शन सिंह, महंत प्रेमदास, महंत निर्मलदास, महंत गुरूबचन सिंह, महंत दामोदर दास, दिगंबर स्वामी दलीप गिरी, महंत महानन्द, महंत भरत जी महाराज, महंत मल्कीयत मुकामी, महंत अविचल दास, महंत अरूण दास, महंत तीरथ सिंह, महंत रविदेव शास्त्री, महंत दलजीत सिंह, महंत बलवंत सिंह, महंत विष्णुदास, महंत रघुवीर दास, महंत बीबी विनिन्दर कौर सौढ़ी, समाजसेवी अतुल शर्मा, महंत सतमान सिंह, महंत खेमसिंह, संत जसकरण सिंह, संत तलविन्दर सिंह, संत सिमरन सिंह सहित बड़ी संख्या में संत महापुरूष मौजूद रहे।

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