Latest News

शिक्षकों के मध्य भी गरमाया आयुर्वेद और एलोपैथी का मुद्दा, टिहरी के शिक्षकों ने कर डाली वेबनार


विषय पर आज जनपद टिहरी के शिक्षकों द्वारा एक वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार में प्रदेश भर के विभिन्न शिक्षकों ने प्रतिभाग किया। संयोजन राजेश चमोली जी द्वारा किया गया।

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

विषय पर आज जनपद टिहरी के शिक्षकों द्वारा एक वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार में प्रदेश भर के विभिन्न शिक्षकों ने प्रतिभाग किया। संयोजन राजेश चमोली जी द्वारा किया गया। सभी प्रतिभागियों द्वारा आयुर्वेदिक एवं ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति पर अपने अपने विचार व्यक्त किये। सभी प्रतिभागियों द्वारा एक सुर में इस बात को स्वीकार किया गया कि दोनों पद्धतियों की अपनी अपनी विशेषताएं तथा सीमाएं हैं। जहां आयुर्वेद में औषधियों के दुष्प्रभाव कम नजर आते हैं, वही किसी भी बीमारी से त्वरित राहत के लिए ऐलोपैथिक पद्धति ज्यादा कारगर है। वेबिनार का संचालन करते हुए मनोज किशोर बहुगुणा जिला समन्वयक राष्ट्रीय बॉल विज्ञान कांग्रेस जनपद टिहरी गढ़वाल ने बताया कि कोरोना काल मे आयुर्वेद एवम ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धतियां एक दूसरे के पूरक के रूप में सामने आई हैं। उन्होंने अपना अनुभव बांटते हुए कहा कि वे भी पिछले दिनों कोरोना से संक्रमित हो गए थे तथा उन्होंने दोनों चिकित्सा पद्धतियों का प्रयोग करते हुए स्वास्थ्य लाभ लिया। वेविनार का संयोजन राजेश चमोली द्वारा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि एलोपैथी और आयुर्वेद दोनो ही अपनी जगह पर जीवन रक्षक एव्म उपयोगी होते रहे है और है इसमे कोई संदेह नही है की जिसे को जो पद्दति अपनानी है वे अपनाए । इतना अवश्य है की जिस प्रकार आयुर्वेद इंद्र से लेकर भारद्वाज ऋषि ओर चरक सहिंता में जो ज्ञान हमे प्राप्त था उस पर शोध न होना हमारे नीति निर्धारकों की उदासीनता रही है हम दोनों पैथी को प्रतिद्वंद्वी नही कह सकते इसमे सामाजिक बिघठन हो जाता है। एलोपैथी का मूल आधार आयुर्वेद ही है| सूर्यकांत तिवारी ने आयुर्वेद के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला तथा आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा की उपलब्धता पर भी जानकारी प्रदान की। पिथौरागढ़ से श्रीमती अनीता उपाध्याय जी ने स्पष्ट किया कि दोनों चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों में भी कोई द्वंद नहीं है, बल्कि वे अपने उपचार में मरीजों को एक दूसरे का प्रयोग करने की सलाह भी देते हैं। हिमालयन इंग्लिश स्कूल घनसाली के शिक्षक बॉबी प्रकाश ने भी दोनों चिकित्सा पद्धतियों की सीमाओं एवम विशेषताओं पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। अंत मे सभी प्रतिभागियों द्वारा आपसी विचार मंथन के पश्चात एक संयुक्त निर्णय जारी किया कि वर्तमान में जो द्वंद मीडिया में नजर आ रहा है वह दरअसल व्यापारिक प्रतिद्वंदता ज्यादा है, वास्तव में दोनों चिकित्सा पद्धतियाँ एक दूसरे की पूरक हैं तथा हमे स्वस्थ जीवन जीने के लिए दोनों के गुणों का लाभ लेना चाहिए। वेविनार में संध्या बागड़ी, सुनीता कवटियाल, मोहनलाल सेमवाल, अनिल फुंदडी छात्र आरव, आशीष कविता , अंशुल थपलियाल दिल्ली से सामाजिक कार्यकर्ता त्रेपन भंडारी आदि ने भाग लिया |

Related Post