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पारिस्थितिकी तंत्र बहाली से ही सम्भव है पर्यावरण संरक्षण- डॉ0 अशोक कुमार बडोनी टिहरीगढ़वाल


पारिस्थितिक तंत्र जैविक एवं अजैविक तत्वों से मिलकर बनी एक इकाई है जो समस्त जीवों के जीवन को प्रभावित करती है। यह इकाई हमारे चारों तरफ व्याप्त रहती हैं तथा हमारे जीवन में घटित सभी घटना इसी पर आधारित रहती हैं।

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

पर्यावरण शब्द दोशब्दोंसेमिलकर बना है परीऔरआवरण। परी का अर्थ होता है हमारे चारों और एवं आवरण का अर्थ होता है हमें चारों ओर से घेरे हुए। पारिस्थितिक तंत्र जैविक एवं अजैविक तत्वों से मिलकर बनी एक इकाई है जो समस्त जीवों के जीवन को प्रभावित करती है। यह इकाई हमारे चारों तरफ व्याप्त रहती हैं तथा हमारे जीवन में घटित सभी घटना इसी पर आधारित रहती हैं। जीवों की समस्त क्रियाएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को ही प्रभावित करती है अर्थात् पर्यावरण और जीव का संबंध अन्योन्याश्रि‍त है।विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है।विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य सम्पूर्ण मानव जाति को जागरूक करना एवं सम्पूर्ण पृथ्वी एवं प्रकृति की रक्षा करना है। इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।यह कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम(UNEP) द्वारा चलाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस 2021की थीम "पारिस्थितिकी तंत्र बहाली" है। इसलिए पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण की बहाली का संकल्प लेना चाहिए। विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना मुख्य रूप से पृथ्वी ग्रह से सभी तरह के पर्यावरण संबंधित मुद्दों को एवं पर्यावरण को दूषित करने वाले सभी कारकों को हटाने के लिए तथा इस पृथ्वी को सुंदर बनाने के उद्देश्य हेतु किया गया है। अत: हमें पर्यावरण को सुरक्षित एवं संरक्षित रखना होगा। हमें अपने आस-पास पेड़ पौधे लगाने होंगे। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिये हमें कम से कम मात्रा में प्लास्टिक का इस्तेमाल करना होगा। जब हमें जरूरत न हो पंखे, लाइट एवं बिजली से चलने वाली हर चीज को बंद कर देना चाहिए। अर्थात् हमें प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा तथा वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण करना होगा। तभी हम इस धरा को बचा सकते हैं। पृथ्वी हमारी धरोहर है, इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। प्रकृति ने हमें बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा प्रदान की है जो सीमित है। किन्तु मनुष्य ने अविवेकपूर्ण कृत्यों से बहुत निर्दयतापूर्वक इस सम्पदा का दोहन किया। जिससे प्राकृतिक असन्तुलन की स्थिति पैदा होती जा रही है। जिसके चलते भूकम्प, अत्यधिक वर्षा, सूखा, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। प्रकृति को बचाने के लिए हमसब को मिलकर संकल्प लेना होगा। हम वर्षभर में कम से कम एक पौधा अवश्य लगाएं क्योंकि पेड़ पौधों से ही हमें प्राण वायु ऑक्सीजन प्राप्त होती है जो जीवन के लिये अत्यंत आवश्यक है और कोरोना काल में जिसका हमें एहसास भी हो गया है। चूंकि वृक्ष हमें बचाते है इसलिये हमारा भी दायित्व है हम उनका संरक्षण करें। गिनती के ही लोग हैं जो पर्यावरण सुरक्षा को अपना जीवन समर्पित करते हैं। उनमें से ही एक हिमालय के रक्षक और वृक्ष पुरुष सुंदरलाल बहुगुणा हैं जिन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन पर्यावरण संरक्षण के लिये समर्पित कर दिया। जिन्होने वृक्षों को बचाने के लिये एक आन्दोलन की शुरुआत की और वह आन्दोलन था हिमालयी क्षेत्र में हुआ महत्वपूर्ण आन्दोलन चिपको आन्दोलन । चिपको आन्दोलन की शुरुआत 1970 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेतृत्व मे हुई थी। जिसने पूरे विश्व को पर्यावरण संरक्षण हेतु जागृत करने का कार्य किया। इसलिये आज आवश्यकता है प्राकृतिक संसाधनो के संरक्षण की। मानवीय हस्तक्षेप के कारण आज पर्यावरणीय संकट बढ़ता जा रहा है । इसलिये हमारा कर्तव्य है हम पर्यावरण को स्वच्छ एवं सुन्दर रखें ,जन्तुओं के संरक्षण में सहयोग करें साथ ही विभिन्न पर्यावरणीय प्रदूषणों से पृथ्वी को सुरक्षित रखें । अत: वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के प्रति जागरूक होना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। तभी पर्यावरण को बचाया जा सकता है। और यही उद्देश्य भी है इन दिवसों को मनाने का ।

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