Latest News

उत्तराखंड की महिलाओं ने पूरी दुनिया को चिपको जैसा आंदोलन दिया


उत्तराखंड की महिलाओं ने पूरी दुनिया को चिपको जैसा आंदोलन दिया जिसने पूरी दुनियाँ में पर्यावरण की बहस को गोष्टी और सेमिनार हॉल से बाहर लोगों के बीच खड़ा कर आम लोगों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया।

रिपोर्ट  - à¤ªà¥à¤°à¥‹à¥¦à¤à¤®à¥¦à¤à¤®à¥¦ सेमवाल

गौरा देवी, टिंचरी माई, बेलमती चौहान, हंसा देसाई ये उन महिलाओं के नाम हैं जिन्होंने भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से अलग उत्तराखंड को राजनीतिक, सामाजिक और पर्यावरण के नक्शे पर दुनिया भर में एक अलग पहचान दी। उत्तराखंड की महिलाओं ने पूरी दुनिया को चिपको जैसा आंदोलन दिया । जिसने पूरी दुनियाँ में पर्यावरण की बहस को गोष्टी और सेमिनार हॉल से बाहर लोगों के बीच खड़ा कर आम लोगों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। 1972-73 में पहाड़ के बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उच्च शिक्षा के केंद्र के लिए पहाड़ की महिलाओं ने न केवल बहस की बल्कि सड़कों पर उतर कर इन अनपढ़ महिलाओं ने एक बड़ा आंदोलन चलाया। महिलाओं के आंदोलन का ही परिणाम था कि गढ़वाल और कुमाऊं विश्वविद्यालय के रूप में इस अत्यंत पिछड़े क्षेत्र को उच्च शिक्षा के दो केंद्र मिले। उत्तराखंड के उच्च शिक्षा के ये दो केंद्र राज्य बनने के बाद भी राज्य के लोगों के लिए शिक्षा और बदलाव के केंद्र बने रहे। आंदोलनों और संघर्षों के बाद बने इन विश्वविद्यालयों से ही 1994 के राज्य आंदोलन की शुरुआत हुई। पहाड़ों के पहाड़ जैसे जीवन की त्रासदी झेलने वाली महिलाओं ने घरों से बाहर निकल कर इस आंदोलन को घर-घर , गाँव-गाँव तक पहुँचाया। महिलाओं और युवाओं के संघर्षों से अंततः राज्य बना। राज्य बनने के बाद 2009 में गढ़वाल विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। केन्द्रीय विश्व विद्यालय बनने के बाद अभी तक दो कुलपति बने हैं, जो कि राज्य से बाहर के थे। ये दोनों ही विश्वविद्यालय को उस तरह नही जानते थे जितना नई स्थायी नियुक्त कुलपति प्रोफेसर अन्नपूर्णा नौटियाल जानती हैं। जिन महिलाओं ने पहाड़ के इस क्षेत्र को राज्य बनाया और अपने संघर्ष और दूरदृष्टि से विश्वविद्यालय के लिए संघर्ष किया आज उन्हीं महिलाओं की प्रतिनिधि पहाड़ की ही रहने वाली प्रोफेसर अन्नपूर्णा नौटियाल को केंद्र सरकार के द्वारा स्थायी कुलपति बनाया जाना महिलाओं की विरासत को ही आगे बढ़ाना है। लगभग दो साल के लंबे इंतज़ार के बाद आख़िरकार हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय को स्थायी कुलपति के तौर पर प्रोफ़ेसर अन्नपूर्णा नौटियाल के रूप में प्रथम महिला कुलपति मिल ही गई। प्रोफ़ेसर नौटियाल पिछले दो साल से कुलपति का पदभार अस्थाई रूप से सँभाले हुई थी. उनकी विश्वविद्यालय के प्रति गंभीरता व प्राथमिकता को देखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, ने अग़ले पॉंच वर्षों के लिए उन्हें स्थाई रूप से कुलपति का कार्यभार सौंप दिया है. चिपको आंदोलन की प्रणेता रही गौरा देवी से लेकर वर्तमान राज्यपाल बेबी रानी मौर्या तक महिलाओं ने उत्तराखंड राज्य में अपनी काबीलियत व शक्ति का लोहा मनवाया है । उसी क्रम में गढ़वाल की ही रहने वाली प्रोफ़ेसर अन्नपूर्णा नौटियाल ने स्थायी कुलपति का कार्यभार ग्रहण करते हुए महिला सशक्तिकरण को एक नया आयाम दिया है। विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में सीनियर प्रोफ़ेसर होने के नाते प्रोफ़ेसर नौटियाल विश्वविद्यालय की कमियों व उनको दूर करने के उपायों से भलीभाँति परिचित हैं। अपने अस्थाई कार्यकाल में भी उन्होंने सीमित शक्तियों के बावजूद बहुत से ऐसे फ़ैसले लिए जो विश्वविद्यालय के हित में रहे। छात्र संघ की जायज मॉंगों को भी बीच-बीच में प्रोफ़ेसर नौटियाल का समर्थन मिलता रहा। गढ़वाल विश्वविद्यालय में देश के हर कोने से छात्र-छात्राएँ पढ़ने के लिए आते हैं। उन्हें किसी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े इसके लिए प्रोफ़ेसर नौटियाल बहुत सजग हैं। पिछले कुछ वर्षों में NIRF की रैंकिंग में विश्वविद्यालय का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक़ नहीं रहा है। प्रोफ़ेसर नौटियाल विश्वविद्यालय की रैंकिंग को लेकर बहुत संजीदा हैं और अपने कुलपति काल में उनका प्रयास यह भी रहेगा कि विश्वविद्यालय की रैंकिंग को सुधारा जाए। छात्रों की मांग पर उन्होंने पुस्तकालय के समय को बढ़ाने के साथ-साथ नए रीडिंग हॉल के निर्माण कार्य तक को अंजाम दिया है। उनके नेतृत्व में ही विश्वविद्यालय के बिरला कैंपस में एक हाईटैक लाइब्रेरी का निर्माण कार्य ज़ोरों से चल रहा है। विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह हर वर्ष नियत समय पर चले इसके लिए भी पहल प्रोफ़ेसर नौटियाल ने ही की। जिसके चलते अब हर वर्ष दिसम्बर में दीक्षांत समारोह का आयोजन किया जाना सुनिश्चित हुआ है। गढ़वाल विश्वविद्यालय को जानने समझने वाली प्रो० नौटियाल के सामने अब नई चुनौतियाँ भी हैं। जिनमें सबसे बड़ी चुनौती परीक्षा परिणामों पर छात्रों की शिकायतों का निपटारा करना है। और इसके साथ ही हॉस्टल, पुस्तकालय की समस्याएं हैं जिनसे निपटना नई कुलपति के लिए आसान नहीं है लेकिन प्रोफेसर नौटियाल के लिए मुश्किल भी नहीं है। मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' के द्वारा प्रोफेसर अन्नपूर्णा नौटियाल की स्थाई कुलपति पद पर नियुक्ति पर भाजपा, कांग्रेस और उत्तराखंड आंदोलनकारियों सभी ने एक स्वर में स्वागत किया है। भाजपा के नगर अध्यक्ष जितेंद्र रावत ने कहा कि केंद्रीय मंत्री 'निशंक' पूरे देश के मंत्री हैं वो चाहते तो देश के किसी भी कोने के व्यक्ति को गढ़वाल विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त कर सकते थे। लेकिन पहाड़ के होने के नाते उन्हें यहाँ की चिंता होना लाजमी है। इसी लिए उन्होंने पहाड़ की ही एक सक्षम महिला को इस जिम्मेदारी के लिए चुना। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और श्रीनगर के पूर्व विधायक ने भी इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि प्रो० नौटियाल को इस क्षेत्र का बहुत अनुभव है। वे गढ़वाल विश्वविद्यालय की विशेषताओं और कमियों को जानती हैं और इस से भी अच्छी बात ये है कि उनके केंद्रीय मंत्री 'निशंक' से भी अच्छे सम्बन्ध हैं इस लिए उम्मीद है कि दोनों ही गढ़वाल विश्वविद्यालय की कमियों को मिलकर दूर करेंगे|रीजनल रिपोर्टर पत्रिका के माध्यम से पहाड़ की समस्याओं को मंच देने वाली पत्रकार और सामाजिक आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली गंगा असनोड़ा थपलियाल एक जिम्मेदार और सक्षम महिला को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने वाले निर्णय का स्वागत करते हुए कहती हैं कि कई मामलों में बड़े पदों पर रहने वाले रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने निराश किया हो लेकिन केंद्रीय मंत्री बनने के बाद प्रो० नौटियाल की नियुक्ति और एनआईटी के विषय में लिये गये निर्णय से उन्होंने उत्तराखंड को दो तोहफे दिए हैं। आगे भी उत्तराखंड की उनसे बहुत उम्मीदें हैं। प्रो० नौटियाल ने स्थाई कुलपति की नियुक्ति के बाद मीडिया को दिए गए अपने बयानों में स्वीकार किया है कि अस्थाई कुलपति होने के नाते कई कमियां रह गई थी, स्थाई कुलपति बनने के बाद वे उन सभी कमियों और शिकायतों को दूर करने का प्रयास करेंगी। उनकी प्रशासनिक क्षमता को देखते हुए हमें भी उनसे ऐसी ही उम्मीदें है। आंदोलनकारी अनिल स्वामी केंद्रीय मंत्री के इस निर्णय को सकारात्मक मानते हुए कहते हैं कि उनकी नियुक्ति पहाड़ के लोगों में नई ऊर्जा भरेगी। प्रो० नौटियाल कई सालों से गढ़वाल विश्वविद्यालय में हैं इसलिए वह यहाँ की खूबियां और कमियां दोनों से परिचित हैं। अब उनकी जिम्मेदारी छात्रों की समस्याओं का निराकरण करना और गढ़वाल विश्वविद्यालय में बेहतर शैक्षिक माहौल बनाना रहेगा। प्रोफ़ेसर से कुलपति तक के सफ़र में प्रोफ़ेसर नौटियाल ने न सिर्फ़ महिला शक्ति का मान बढ़ाया है बल्कि राज्य की बेटी के तौर पर भी राज्य का मान बढ़ाया है। फ़ुल ब्राइट स्कॉलर व भारत की विदेश नीति की सशक्त स्तंभकार प्रोफ़ेसर नौटियाल के विश्वविद्यालय का स्थायी कुलपति बनने पर बधाई व विश्वविद्यालय के स्वर्णिम भविष्य की शुभकामनाएँ.

Related Post