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चमोली में रेशम कीट पालन व्यवसाय लोगों की आर्थिकी को मजबूत करने में कारगर साबित हो रहा है।


चमोली जिले में काश्तकार कृषि व पशुपालन के साथ रेशम कीटपालन को सहायक करोबार के तौर पर अपनाकर अपनी आजीविका मजबूत बना रहे है।

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

चमोली 20 अगस्त,2021,रेशम कीट पालन व्यवसाय लोगों की आर्थिकी को मजबूत करने में कारगर साबित हो रहा है। चमोली जिले में काश्तकार कृषि व पशुपालन के साथ रेशम कीटपालन को सहायक करोबार के तौर पर अपनाकर अपनी आजीविका मजबूत बना रहे है। इस कारोबार में कम लागत और अच्छा मुनाफा भी है। घर बैठे असानी से इस व्यवसाय को किया जा सकता है। जिले में अब किसानों का रूझान रेशम कीट पालन की आरे बढने लगा है। दशोली विकासखंड के बगडवालधार, पाडुली की रहने वाली शांति देवी बताती है कि वे वर्ष 2000 से रेशम कीटपालन का कार्य कर रही है। शुरूआत में शहतूत के पेड व कीटपालन सामग्री के अभाव में कुछ परेशानी जरूर रही। लेकिन रेशम विभाग के द्वारा वर्ष 2012 में क्लस्टर विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत रेशम कीटपालन भवन की अनुदान सहायता और कीटपालन उपकरण जैसे ट्रे, रेंक, फीडिंग स्टेण्ड, चाॅपिंग नाइफ आदि मिलने से काफी फायदा मिला। रेशम कीटपालन के लिए रेशम विभाग द्वारा उनकी निजी नाप भूमि पर 300 शहतूत के पौधे भी लगाए गए। आज बसंत और मानसून ऋतु में शांति देवी करीब 50 किग्रा रेशम कोया का उत्पादन कर रही है। जिससे इनको अच्छी खासी आमदनी मिल रही है। इसके अलावा शांति देवी ओक टर्सर की नर्सरी उत्पादन एवं राजकीय रेशम फार्म में कर्षण कार्य से भी जुडी है। यहां से भी इनको आय अर्जित हो रही है। धीरे धीरे ही सही पर अब काश्तकारों का रूझान सहायक कारोबार के तौर पर रेशम कीटपालन की ओर बढने लगा है और आज जनपद चमोली में 390 से अधिक किसान रेशम कीटपालन से जुड़ गए है। कोविड काल में नंदकेशरी में 10 लोगों के समूह ने 25 हजार कोकून का उत्पादन कर 50 हजार से अधिक आय अर्जित की है। साथ ही 45 हजार मणिपुरी बाॅज पौधों की नर्सरी तैयार की। क्या होता है रेशम- रेशम प्राकृतिक प्रोटीन से बना रेशा है। रेशम के कुछ प्रकार के रेशों से वस्त्र बनाए जाते है। प्रोटीन रेशों में फिब्रोइन होता है। ये रेशे कीडों के लार्वा से बनाए जाते है। सबसे उत्तम रेशम शहतूत व अर्जुन पेड के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा से बनाया जाता है।

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