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यूनेस्को के विश्व स्मृति रजिस्टर में ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियों को शामिल करने का स्मृति दिवस


यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ईसा पूर्व की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया था ताकि भावी पीढ़ियों के लिए भारत की दिव्य संस्कृति को संरक्षित किया जा सके।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 23 अगस्त। आज के ही दिन यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ईसा पूर्व की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया था ताकि भावी पीढ़ियों के लिए भारत की दिव्य संस्कृति को संरक्षित किया जा सके। वेद, मानव सभ्यता एवं भारतीय संस्कृति के सबसे पुराने महाग्रंथ व लिखित साहित्यिक दस्तावेज़ हैं। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वर्ष 2007 को आज के ही दिन यूनेस्को ने विरासत सूची में ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियों को शामिल किया था जो हर भारतीय के लिये गर्व करने का विषय है। स्वामी जी ने कहा कि वेद सनातन धर्म के प्राचीनतम महाग्रन्थ हैं इसलिये वेदों को संसार का आदिग्रंथ भी कहा गया है। वेद शब्द का अर्थ ही है “ज्ञान”। वेद अपौरुषेय है अर्थात् चारों वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद मानव रचित नहीं है। हमारे चारों वेद ज्ञान के अपार भण्डार से युक्त है और चार वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है जिसमें आदिकालीन सर्वोत्कृष्ट धार्मिक कविता शामिल है। ऋग्वेद में भारतीय आर्यों के प्राचीनतम युग का इतिहास और उस युग की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्र का ज्ञान समाहित है। हमारे वेदों में नीतिशास्त्र का उत्कृष्ट वर्णन किया गया है। स्वामी जी ने कहा कि वेदों में मानव मूल्यों का समावेश बड़ी ही उत्कृष्टता के साथ किया गया है। मनुष्य को धर्माचरण, अर्थ नैतिकता अर्थात नैतिक मूल्यों का पालन करते हुये धन का अर्जन, दूसरों को बिना दुख पहुंचाये अपने सुखों का उपभोग करते हुये बन्धन मुक्त जीवनयापन करना इन सब जीवन मूल्यों को बड़ी ही सरलता से समझाया गया है।

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