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धर्म पर आरूढ़ होकर प्रत्येक योजना का करें शुभारम्भ - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भगवान गणेश प्रथम पूज्य हैं और हमारे आराध्य हैं। गणेश पूजन की दिव्य परम्परा का स्वरूप हम सभी के सामने है और यह केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में है, मैने अपनी विदेश यात्रा के दौरान देखा कि भारतीय संस्कृति और संस्कारों के प्रति प्रवासी भारतीयों की अपार श्रद्धा है इसलिये हमें अपने पर्व और त्यौहार शास्त्रोक्त विधानों के अनुसार मनाना होगा।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 31 अगस्त। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज श्री गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर लखनऊ में मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश महंत श्री योगी आदित्यनाथ जी से एक सात्विक भेंटवार्ता की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने नंदी पर विराजमान मिट्टी के गणेश की प्रतिमा मुख्यमंत्री योगी को भेंट कर देशवासियों से पर्यावरण और नदियों को प्रदूषण मुक्त करने का आह्वान किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भगवान गणेश प्रथम पूज्य हैं और हमारे आराध्य हैं। गणेश पूजन की दिव्य परम्परा का स्वरूप हम सभी के सामने है और यह केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में है, मैने अपनी विदेश यात्रा के दौरान देखा कि भारतीय संस्कृति और संस्कारों के प्रति प्रवासी भारतीयों की अपार श्रद्धा है इसलिये हमें अपने पर्व और त्यौहार शास्त्रोक्त विधानों के अनुसार मनाना होगा। हम कोई भी ऐसी परम्परा का शुभारम्भ न करें जिससे हमारा पर्यावरण बिगड़ता हो, हमें उन परम्पराओं पर ध्यान देने की नितांत आवश्यकता है। हमें ऐसी परम्पराओं को अंगीकार करना होगा जिससे हमारे मूल्य भी बचे, मूल भी बचे, पर्यावरण भी बचे और पीढ़ियां भी बचे इसलिये गणेश जी की स्थापना और विसर्जन तो करें लेकिन नये सर्जन के साथ करें। गणेश उत्सव पर डेकोरेशन नहीं बल्कि डिवोशन के साथ इनोवेशन करें। स्वामी जी ने कहा कि शास्त्रों में तो यह मर्यादा है कि गणेश जी की जो मूर्ति व प्रतिमा है वह, यज्ञ, पूजा और उत्सवों हेतु मात्र एक अंगूठे के बराबर बनाने का विधान हैं। जब यह परम्परा प्रारम्भ हुई तब पूजा में, हवन में, यज्ञ में गोबर और मिट्टी के श्री गणेश बनाये जाते थे और फिर पूजन के पश्चात उस प्रतिमा को तालाबों में, जलाश्यों में, सरोवरों में, उनका विसर्जन किया जाता था। हमारे शास्त्रों में श्री गणेश जी की मूर्ति को नदी में, जल में प्रवाहित करने का विधान है क्योंकि जल में गोबर और मिट्टी घुल जाती हैं और गोबर के जो गुणकारी तत्व हंै, वह जाकर पानी की तलहटी में मिलते है, जिससे वे मिट्टी, पानी आदि अन्य चीजों को शुद्ध करते हैं, उससे धरती उपजाऊ बनती है तथा पर्यावरण की रक्षा भी होती है। पर्यावरण के साथ -साथ इससे गौ माता का संरक्षण और संवर्द्धन भी सम्भव है और इस समय गौ माता और गौवंश का संरक्षण की नितांत आवश्यकता है।

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