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नवरात्र में देवी भागवत महापुराण कथा श्रवण का विशेष हैं महत्व: पं सोहन चंद्र ढौण्डियाल


स्वामी आलोक गिरी महाराज ने कहा कि श्रीमद् देवी भागवत महापुराण कथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह सर्वोत्तम साधन है। नवरात्रि में देवी भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व है|

रिपोर्ट  - आल न्यूज़ भारत

हरिद्वार। स्वामी आलोक गिरी महाराज ने कहा कि श्रीमद् देवी भागवत महापुराण कथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह सर्वोत्तम साधन है। नवरात्रि में देवी भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व है, इस कथा को सुनने से समस्त पाप कट जाते हैं। नवरात्रि में 9 दिन तक इसका श्रवण- अनुष्ठान करने पर मनुष्य सभी पुण्य कर्मों से अधिक फल पा लेते हैं, इसलिए इसे नवाह यज्ञ भी कहा गया है, जिसका उल्लेख देवी भागवत पुराण में खुद भगवान शंकर व सूतजी ने किया है। कहा गया है कि जो दूषित विचार वाले पापी, मूर्ख, मित्र द्रोही, वेद व पर निंदा करने वाले, हिंसक और नास्तिक हैं, वे भी इस नवाह यज्ञ से भुक्ति और मुक्ति को प्राप्त कर लेते हैं।‌ गौरतलब है कि श्री बालाजी धाम सिद्धबलि हनुमान नर्मदेश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में चल रही श्रीमद्देवी भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर कथा व्यास पं सोहन चंद्र ढौण्डियाल ने भक्तों को कथा का रसपान कराते हुए कहाक्षकि देवी भागवत पुराण के अनुसार जो पुरुष देवी भागवत के 1 श्लोक का भी भक्ति भाव से नित्य पाठ करता है, उस पर देवी प्रसन्न होती हैं. महामारी व भूत प्रेत बाधा मिट जाती है. पुत्र हीन पुत्रवान, गरीब धनवान और रोगी आरोग्य वान हो जाता है. इसका पाठ करने वाला यदि ब्राह्मण हो तो प्रकांड विद्वान, क्षत्रिय हो तो महान शूरवीर, वैश्य हो तो प्रचुर धनाढ्य और शूद्र हो तो अपने कुल में सर्वोत्तम हो जाता है. पंडित सोहन चंद्र ढौण्डियाल ने कहा कि भागवत नवरात्रि में सुननी चाहिए. भागवत में खुद सूतजी ने कहा कि है कि चार नवरात्रि में इस पुराण का श्रवण करना चाहिए. जेष्ठ मास से लेकर 6 महीने पुराण सुनने के लिए उत्तम है. इसमें हस्त, अश्विनी, मूल, पुष्य, रोहिणी, श्रवण एवं मृगशिरा तथा अनुराधा नक्षत्र पुण्यतिथि और शुभ ग्रह व वार देखकर कथा सुनना उत्तम है. हालांकि अन्य महीनों में भी इसे सुना जा सकता है. पर उसमें भी तिथि, नक्षत्र और दिन का विचार जरूर कर लेना चाहिए। कथा व्यास ने कहा कि कि देवी भागवत पुराण के अनुसार भागवत सुनने के लिए कथा स्थान को गोबर से लीपना चाहिए. सुंदर मंडप बनाकर केले के खंभे लगाकर ऊपर चांदनी लगाना चाहिए. फिर भगवान में आस्था रखने वाला श्रेष्ठ वक्ता पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके कथावाचन करें. कथा सूर्योदय से सूर्यास्त के कुछ पहले तक ही हो, जिसमें बीच में दो घड़ी का विश्राम लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कथा में सभी वर्णों के लोगों को आमंत्रित किया जाना चाहिए. नवाह यज्ञ भी विवाह जैसी यज्ञ सामग्री से करनी चाहिए. कथा वाचन होने तक श्रोता क्षोर कर्म यानी शेविंग नहीं करवाना चाहिए. जमीन पर सोने व ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सुबह अरुणोदय वेला में ही स्नान करना चाहिए. कम बोलना व कम खाना तथा 9 दिन तक कन्या पूजन व भोजन इसमें श्रेष्ठ माना गया है. अंत में पुरुष महा अष्टमी व्रत के समान इसका भी उद्यापन करने का विधान है। इस मौके पर इस मौके पर पुजारी मनकामेश्वर गिरी, प्रदुम्न सिंह, विशाल शर्मा, हरीश चौधरी, प्रांजल शर्मा, आशीष पंत, पूनम पोखरियाल, निर्मला देवी, उमा रानी, प्रिंसी त्यागी, रूचि अग्रवाल, मोहिनी बंसल, उमा धीमान, शिखा धीमान, विनिता, किरन भट्ट, कमला भट्ट, मीनाक्षी भट्ट, मंजू, शोभा उपाध्याय, पुरी रावत, किरन डबराल, कमला जोशी सहित अन्य भक्तजन मौजूद रहे।

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