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मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर नही क्रिकेट खेल


क्रिकेट का खेल और उसका रोमांच भले ही लोगो के सिर चढकर बोल रहा हो अथवा शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हर आउटडोर खेल की तरह क्रिकेट को भी उतना कारगर खेल माना जाता हो, लेकिन मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से क्रिकेट का खेल मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार-21 अक्टूबर, 2021 इन दिनों क्रिकेट का खेल और उसका रोमांच भले ही लोगो के सिर चढकर बोल रहा हो अथवा शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हर आउटडोर खेल की तरह क्रिकेट को भी उतना कारगर खेल माना जाता हो, लेकिन मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से क्रिकेट का खेल मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है। आज के समय के मुताबिक क्रिकेट मे खुद को साबित करने के लिए इतना ज्यादा प्रेशर है कि खेल मानसिक हेल्थ को प्रभावित करने लगा है। इस सम्बंध मे न्यूजीलैंड की महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान तथा टीम की अहम खिलाडी सूजी बेटस अपने अनुभव के माध्यम से इस बात को सही मानती है। सूजी बेटस अपने देश और क्लब के लिए साल के 9 महीने क्रिकेट मे व्यस्त रहती है। वह अपने परिवार, दोस्तों से नियमित नही मिल पाती और न ही अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जी पाती। इससे उन्हे महसूूस होता है कि यह खेल मानसिक दबाव का कारण बनता जा रहा है। खेल मनोवैज्ञानिक डॉ0 शिवकुमार चौहान का कहना है कि क्रिकेट मे मानसिक स्वास्थ्य बडा मुददा नही था। आपके पास अपनी वर्क लाइफ जैसे यूनिवर्सिटी मे पढाई कर सकते है और बाद मे आपको तीन-चार सप्ताह का टूर करना होता था। जिसके बाद आप फिर से अपनी रोजमर्रा की लाइफ मे लौट आते है। लेकिन अब ऐसा नही है। अब आपका जीवन सिर्फ क्रिकेट से ही जुडा है तो बाकि चीजों से दूर होता चला जा रहा है। अब आप कोई टीम टूर करके वापस भी लौटते है, तो भी आप अपने काम या पढाई में नही लौट पाते। आज क्रिकेट खिलाडी टूर से लौटते है तो उन्हे फिर आगे की सीरीज के लिए टेªनिंग मे व्यस्त होना पडता है। इसलिए अति व्यस्तता के कारण मेंटल स्टेªस खिलाडियों के जीवन का हिस्सा बन गया है। जिसमे खिलाडी अपना डेली शेडयूल खेल के हिसाब से तय करते

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