पतंजलि अनुसंधान संस्थान के तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ‘प्लांट्स टू पेशन्ट्स-एथनोफार्माकोलॉजी पर पुनर्विचार’ में स्वामी रामदेव महाराज ने कहा कि आयुर्वेद, जड़ी-बूटियाँ, एक स्वस्थ-आध्यात्मिक-सुखी जीवन का मार्गदर्शन, उसकी शिक्षा-दीक्षा जो हमने अपने पूर्वजों से प्राप्त की थी, उसको वैदिक ज्ञान व आधुनिक अनुसंधान के संगम के साथ हम आगे बढ़ा रहे हैं
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
हरिद्वार, 01 मार्च। पतंजलि अनुसंधान संस्थान के तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ‘प्लांट्स टू पेशन्ट्स-एथनोफार्माकोलॉजी पर पुनर्विचार’ में स्वामी रामदेव महाराज ने कहा कि आयुर्वेद, जड़ी-बूटियाँ, एक स्वस्थ-आध्यात्मिक-सुखी जीवन का मार्गदर्शन, उसकी शिक्षा-दीक्षा जो हमने अपने पूर्वजों से प्राप्त की थी, उसको वैदिक ज्ञान व आधुनिक अनुसंधान के संगम के साथ हम आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा शरीर निसर्ग या प्राकृतिक चीजों जैसे- जड़ी-बूटी, वनस्पति आदि को आत्मसात कर लेता है तथा ऐलोपैथी की दवा को फोरन मैटिरियल मानकर उनके साथ संघर्ष करता है। हमारे ऋषियों ने कहा है कि हम मात्र जड़-शरीर नहीं हैं, हम चैतन्य शाश्वत् सत्ता हैं। एलोपैथी आजकल जड़ पैथी हो गई है। इससे आंशिक सफलता तो मिल जाएगी परन्तु जड़ के पीछे जो चैतन्य है, उस पर भी हमें केन्द्रित होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हमने लिवर की दवा बनाने के लिए 2400 प्रोटोकॉल फॉलो किए। अनेक प्रयोगों के साथ हमने ड्रग डिस्कवरी का कार्य किया। लिवोग्रिट व लिवामृत का निर्माण लोगों का जीवन बचाने व आयुर्वेद को पूरे विश्व में प्रतिष्ठा दिलाने के लिए ऐतिहासिक कार्य है। साथ ही किडनी, हृदय, फेफड़ों को रिजनरेट करने के लिए रिनोग्रिट, कार्डियोग्रिट तथा श्वासारि गोल्ड व ब्रोंकोम कारगर औषधियाँ हैं। इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार हमारे ऋषियों ने लगभग 300 वनस्पतियों जैसे-तुलसी, गिलोय, अश्वगंधा, एलोवेरा, दालचीनी, हल्दी, काली मिर्च, लौंग, अदरक आदि पर गहन अनुसंधान किया और औषधियों का निर्माण किया। आयुर्वेद की परम्परा कालान्तर में लुप्त न हो जाए इसलिए हमारे ऋषियों ने इसे परम्पराओं से जोड़ दिया। एकादशी व्रत, वट वृक्ष व तुलसी की पूजा इन्हीं परम्पराओं के उदाहरण हैं।