कुलाधिपति डॉ. पण्ड्या ने कहा कि ईश्वर की चेतना नवरात्र के दिनों में घनीभूत होती हैं। इसे साधना द्वारा प्राचीनकाल से ही साधक आत्मसात करते आ रहे हैं। माता पार्वती ने साधना से ही शिव को प्राप्त किया था। ईसा मसीह, महर्षि रमण, रामकृष्ण परमहसं, युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी सहित अनेकानेक संतों, महापुरुषों ने साधना के माध्यम से ईश्वरीय अनुदान प्राप्त किये थे।
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
हरिद्वार 24 मार्च। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि श्रद्धा विश्वास के साथ की गयी साधना फलवती होती है और साधक का चित्त ईश्वरोन्मुख होने लगता है। डॉ0 पण्ड्या देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में रामचरित मानस पर आधारित शिव-पार्वती संवाद विषय पर आयोजित सभा को संबोधित कर रहे थे। कुलाधिपति डॉ. पण्ड्या ने कहा कि ईश्वर की चेतना नवरात्र के दिनों में घनीभूत होती हैं। इसे साधना द्वारा प्राचीनकाल से ही साधक आत्मसात करते आ रहे हैं। माता पार्वती ने साधना से ही शिव को प्राप्त किया था। ईसा मसीह, महर्षि रमण, रामकृष्ण परमहसं, युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी सहित अनेकानेक संतों, महापुरुषों ने साधना के माध्यम से ईश्वरीय अनुदान प्राप्त किये थे। उन्होंने कहा कि साधना से व्यक्ति का मन एकाग्र और शांत होता है। वर्तमान समय में भी श्रद्धा विश्वास एवं पूर्णमनोयोग से की गयी साधना से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं। उन्होंने कहा कि नियमित साधना एवं स्वाध्याय से वैचारिक क्षमता बढ़ती है,जो भविष्य को संवारने में अहम् भूमिका निभाता है। मानस मर्मज्ञ एवं प्रख्यात आध्यात्मिक विचारक श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या ने रामचरित मानस के विभिन्न चौपाइयों के माध्यम से साधकों को प्रभु की भक्ति पाने एवं उनके कार्य करने से मिलने वाली उपलब्धियों को विस्तार से बताया। अनेक जीवनोपयोगी पुस्तकों के लेखक श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या ने कहा कि भगवान के साथ सच्चे मन से साझेदारी निभाने वाले कभी घाटे में नहीं रहता। इससे पूर्व कुलाधिपति ने नवरात्र साधना में जुटे विद्यार्थियों के विविध वैयक्तिक एवं साधनात्मक जिज्ञासाओं को समाधान किया। इस अवसर पर भारत सहित कई देशों से आये गायत्री साधकों के अलावा शांतिकुंज एवं देवसंस्कृति विश्वविद्याल परिवार उपस्थित रहे।