देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि साधना से ही सफलता प्राप्त होती है। साधना से योग सधता है। साधक को किसी भी कार्य में अति नहीं करनी चाहिए और न ही अत्यधिक न्यूनता। ये दोनों ही परिस्थितियाँ साधक के लिए लाभदायक नहीं हैं।
रिपोर्ट - ऑल न्यूज़ ब्यूरो
हरिद्वार 22 अक्टूबर। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि साधना से ही सफलता प्राप्त होती है। साधना से योग सधता है। साधक को किसी भी कार्य में अति नहीं करनी चाहिए और न ही अत्यधिक न्यूनता। ये दोनों ही परिस्थितियाँ साधक के लिए लाभदायक नहीं हैं। कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या जी देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के मृत्युंजय सभागार में साधकों को नवरात्र साधना के आठवें दिन संबोधित कर रहे थे। श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या ने श्रीमद्भगवतगीता के उद्धरण देते हुए कहा कि योगेश्वर श्रीकृष्ण अपने प्रिय सखा अर्जुन से कहते हैं कि साधक को बहुत ही संयमित होकर अपने इच्छित कार्य हेतु मनोयोगपूर्वक साधना करनी चाहिए। साधक को किसी भी कार्य में अतिवाद से बचना चाहिए। युवा प्रेरणास्रोत श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या ने कहा कि साधक को साधना नियमित करना चाहिए। साधक को साधना काल में अपनी दिनचर्या संतुलन बनाये रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति को मंत्र साधना, योग साधना, स्वाध्याय साधना या किसी अन्य क्षेत्र की साधना के दौरान संतुलन बनाये रखना चाहिए। साधना के बिना सिद्धि या सफलता प्राप्त नहीं होती। उन्होंने कहा कि जब सिद्धि की प्राप्ति हो जाती है, तब साधना सरल हो जाती है। अपने मन और इन्द्रियों को बस में करना, इन पर विजय पाना ही साधना है। इससे पूर्व संगीतज्ञों ने साधक का सविता को अर्पण, शिष्यों का गुरु को समर्पण सुमधुर गीत से साधकों को उल्लसित किया। इस अवसर पर कुलपति शरद पारधी, प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या और देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, शांतिकुंज परिवार सहित के देश विदेश से आये गायत्री साधक उपस्थित रहे।