देश की सनातन संस्कृति व गुरु शिष्य परम्परा से युवा पीढ़ी प्रेरणा ले सके और संस्कारवान बनकर देश समाज का कल्याण कर सके। बाबा रामदेव ने कहा कि भारत ऋषि परंपरा को मानने वाला देश है। जिसे संत महापुरूष संरक्षित संवर्धित कर रहे है।
रिपोर्ट - आल न्यूज़ भारत
हरिद्वार, 14 जून। सप्तऋषि क्षेत्र स्थित हरिसेवा आश्रम ट्रस्ट के वार्षिकोत्सव समारोह का योग गुरु बाबा रामदेव, जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज, निरंजन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज, आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरि महाराज, रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य महाराज, अखाड़ा परिषद अध्यक्ष एवं महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज, विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूड़ी, कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल व हरिसेवा आश्रम ट्रस्ट के पीठाधीश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज, जयराम आश्रम पीठाधीश्वर स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज, सांसद सतपाल ब्रह्मचारी, स्वामी चिदानंद मुनि युगपुरूष परमानंद ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर शुभारंभ किया। वार्षिकोत्सव समारोह की अध्यक्षता महामंडलेश्वर स्वामी भगवत स्वरूप महाराज व संचालन स्वामी हरिहरानंद ने किया। इस अवसर पर योग गुरु बाबा रामदेव ने योग के प्रति श्रद्धालु भक्तों को जागरूक करते हुए देश रोग, लोभ, वैचारिक गुलामी से मुक्त होना चाहिए। उन्होंने कहा कि संतो के विचारों का व्यापक प्रचार प्रसार होना चाहिए। जिससे देश की सनातन संस्कृति व गुरु शिष्य परम्परा से युवा पीढ़ी प्रेरणा ले सके और संस्कारवान बनकर देश समाज का कल्याण कर सके। बाबा रामदेव ने कहा कि भारत ऋषि परंपरा को मानने वाला देश है। जिसे संत महापुरूष संरक्षित संवर्धित कर रहे है। उन्होंने श्रद्धालु भक्तों से अपने अपने घरों में तुलसी के साथ नीम, रुद्राक्ष, पीपल एलोवीरा के पौधे लगाने के लिए भी प्रेरित किया। स्वामी रामभद्राचार्य महाराज ने कहा कि संत शब्द का अर्थ संकट और समस्याओं का अंत है। जब जीवन में संकट हो तो संत महापुरूषों की शरण में जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इक्कीसवीं शताब्दी चुनौती भरी शताब्दी है। जिसके लिए हर समय जाग्रत रहना चाहिए। सनातन धर्म पर चारो तरफ से आक्रमण हो रहा है हम सभी संतो को राष्ट्र निर्माण को दृष्टिगत रखते हुए अपनी अपनी पद्धति के अनुसार राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र सुरक्षा करनी है। उन्होंने कहा कि राममंदिर निर्माण में उनकी गवाही ने राममंदिर की दशा और दिशा बदल दी। गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी, रामचरित्र मानस को राष्ट्रीय ग्रंथ और गाय को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए। आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज ने कहा कि सनातन संस्कृति में गुरु शिष्य परंपरा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने राष्ट्र निर्माण और चरित्र निर्माण में संतो की अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि महामंडलेश्वर हरिचेतनानंद महाराज ने भारत के संतो को एक सूत्र में पिरोकर समन्वय स्थापित करने का बड़ा काम किया है। भारत भूमि संतो की भूमि है। सभी संतो को राष्ट्र निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभानी चाहिए। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष एवं महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज व स्वामी चिदानंद मुनि महाराज ने कहा कि महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज विद्वान और तपस्वी संत हैं। सनातन धर्म संस्कृति के संरक्षण संवर्द्धन और प्रचार प्रसार में उनका अहम योगदान सभी के लिए अनुकरणीय है। निर्मल पीठाधीश्वर श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज, सांसद सतपाल ब्रह्मचारी, महामंडलेश्वर कुमार स्वामी महाराज व ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने कहा कि मां गंगा के तट पर तपस्वी संत महापुरूषों का सानिध्य सौभाग्य से प्राप्त होता है और संत महापुरूषों के सानिध्य में ही कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज ने सभी संत महापुरूषों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आश्रम की सेवा परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मानव कल्याण में योगदान करना ही उनके जीवन का लक्ष्य है। इस अवसर पर युगपुरुष महामंडलेश्वर स्वामी परमानंद, जूना पीठाधीश्वर स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ,महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरि, डा.चिन्मय पांड्या,निर्मल पीठाधीश्वर श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज, म.म.कमलानंद, डा.कुमार स्वामी, सांसद सतपाल ब्रह्मचारी, महामंडलेश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ, म.म.रामेश्वरानंद सरस्वती, म.म.चिदविलाशानंद सरस्वती, महंत राजेंद्रदास, बाबा हठयोगी, म.म.रूपेंद्र प्रकाश, स्वामी राममुनी, स्वामी दयाराम महाराज, महंत ऋषिश्वरानंद, कृष्णाचार्य महाराज, महंत विष्णुदास, महंत ज्ञानानंद, नारायण मुनि, महंत केशवानंद, महंत अन्नतानंद, महंत योगेंद्रानंद, महंत विवेकानंद, महंत दिनेशदास, महंत सूरजदास, महंत रघुवीर दास सहित बड़ी संख्या में संत महापुरूष, गणमान्य लोग एवं श्रद्धालु भक्त मौजूद रहे।