जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कहा कि स्वामी रामभद्राचार्य महाराज समस्त सनातन जगत के आचार्य हैं। वे भारत के आचार्य हैं।उन्हें केवल रामानंदाचार्य के पद की सीमा में ही नहीं बांधा जा सकता है।
रिपोर्ट - आल न्यूज़ भारत
हरिद्वार। जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कहा कि स्वामी रामभद्राचार्य महाराज समस्त सनातन जगत के आचार्य हैं। वे भारत के आचार्य हैं।उन्हें केवल रामानंदाचार्य के पद की सीमा में ही नहीं बांधा जा सकता है। उनका सम्मान केवल वैष्णव संप्रदाय में ही नहीं बल्कि संन्यासी और उदासीन संप्रदाय में उसी तरह से है जैसे शंकराचार्य का सम्मान होता है। जूना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज आज गंगा दशहरा के अवसर पर राजघाट कनखल में तुलसी पीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्य महाराज के रामानंदाचार्य पद पर विराजमान होने की 37 वीं वर्षगांठ के अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। आचार्य श्री स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि स्वामी रामभद्राचार्य महाराज ने भारतीय संस्कृति और धर्म के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण नए आयाम छुए हैं। उन्होंने सनातन धर्म के मर्मज्ञ कोई ही नहीं समझा बल्कि सनातन धर्म के बारे में कई नए विचार और परिभाषाएं भी गढी है। जो भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने स्वामी रामभद्राचार्य को एक निर्भीक, स्पष्टवादी, विराट व्यक्तित्व का धनी और सदी का महान संत बताया। जिन्होंने वेदों पुराणों उपनिषदों के कई सूत्रों के भाष्य कर सनातन संस्कृति को एक नई दिशा दी। वह एक श्रोतिय निष्ठ और ब्रह्मानिष्ठ संत और विद्वान है। इस अवसर पर योग गुरु स्वामी रामदेव ने स्वामी रामभद्राचार्य महाराज को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि लंबे समय तक राष्ट्र की सेवा करें और उनका जीवन हमेशा समाज राष्ट्र और धर्म के प्रति समर्पित रहा है। वे उन महान संतों में शामिल है जिन्होंने भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की रक्षा और उसके संरक्षण और संवर्धन का कार्य किया। सभी अतिथियों का आभार जताते हुए तुलसी पीठाधीश्वर रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य महाराज ने कहा कि उनका जीवन हमेशा सनातन धर्म की रक्षा और गंगा और राम जी के प्रति समर्पित रहेगा। वे वह गो, गंगा ,गायत्री, रामायण , गीता वेद पुराणों के संवर्धन और संरक्षण के लिए कार्य करते रहेंगे। कार्यक्रम का संचालन स्वामी रामभद्राचार्य जी के उत्तराधिकारी आचार्य स्वामी रामचंद्र दास महाराज ने किया।