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भ्रष्टाचार के चलते 76 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा सिग्नेचर पुल गिरा।


भ्रष्टाचार देश की एक ऐसी समस्या बन चुकी है जो लाइलाज हो गई है। सरकारें जितना चाहें दावा कर लें कि भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा चुका है,लेकिन देश में कोई न कोई घटना ऐसी घटित हो जाती है जिससे सीधे यह प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार देश की जड़ों में व्याप्त हो चुका है। जिस पर काबू पाना किसी के वश में नहीं है। ताजा मामला मिजोरम का है जहां एक निर्माणाधीन पुल गिर गया। रुद्रप्रयाग जिले के बद्रीनाथ हाईवे के नरकोटा में 76 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा सिग्नेचर पुल बनाने पुर्व ही टूट कर गिर गया ।

रिपोर्ट  - भानु भट्ट

भ्रष्टाचार देश की एक ऐसी समस्या बन चुकी है जो लाइलाज हो गई है। सरकारें जितना चाहें दावा कर लें कि भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा चुका है,लेकिन देश में कोई न कोई घटना ऐसी घटित हो जाती है जिससे सीधे यह प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार देश की जड़ों में व्याप्त हो चुका है। जिस पर काबू पाना किसी के वश में नहीं है। ताजा मामला मिजोरम का है जहां एक निर्माणाधीन पुल गिर गया। रुद्रप्रयाग जिले के बद्रीनाथ हाईवे के नरकोटा में 76 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा सिग्नेचर पुल बनाने पुर्व ही टूट कर गिर गया । यह भी बताया जा रहा है कि जब शुरुआती दौर पर इस पुल का निर्माण कार्य चल रहा था उस वक्त भी इसमें चार मजदूरों की मौत हो गई थी आरसीसी कंपनी द्वारा यह पुल निर्माण पेटी कॉन्टैक्टर को दे दिया गया था जिसमें भ्रष्टाचार के चलते घोर लापरवाही व घटिया सामग्री का प्रयोग होने से भारी नुकसान हुआ है, इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस प्रकार सरकार के करोड़ों के धन को वारा न्यारा किया जा रहा है। हालांकि इस उत्तराखंड के अलावा देश में पुल गिरने का यह कोई नया मामला नहीं है। आए दिन इस तरह के मामले प्रकाश में आते रहते हैं। इसी वर्ष जून में ही बिहार के भागलपुर जिले में गंगा नदी के ऊपर बन रहा पुल गिर गया था। अचंभित करने वाली बात यह है यही पुल पिछले वर्ष भी गिर चुका है। उसके बाद भी पुल के निर्माण को लेकर सतर्कता नहीं बरती गई। इसके अलावा जून माह में बिहार के ही किशनगंज जिले में एक और निर्माणाधीन पुल का एक हिस्सा गिर गया था।अब सवाल यह उठता है कि देश में इस तरह की घटनाओं के बाद भी इनकी रोकथाम के लिए कोई व्यापक कदम नहीं उठाए जाते हैं? सरकारों द्वारा मामले कि जांच हेतु हमेशा एक कमेटी का गठन कर दिया जाता है,लेकिन नतीजा हमेशा वही ढाक के तीन पात वाला होता है। कमेटी की जांच की रिपोर्ट प्राय: किसी ऑफिस के कूड़ेदान में खो जाती है और भ्रष्टाचार में संलिप्त लोग सबूतों के अभाव या राजनीतिक संरक्षण की वजह से मामलें से बरी हो जातें हैं। गौरतलब है कि हाल ही में केंद्रीय सतर्कता आयोग की 2022 की रिपोर्ट में गृह मंत्रालय समेत देश के कई अहम विभागों के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले व शिकायतें प्रकाश में आई हैं। इस रिपोर्ट से समझा जा सकता है कि सरकारें चाहें जितना भ्रष्टाचार खत्म करने के दावे कर लें, लेकिन जब तक सिस्टम को नहीं सुधारा जाएगा भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकेगा। पूर्व के वर्षों में देश में ऐसे अनेक भ्रष्टाचार के मामले प्रकाश में आए जिसमें अधिकारियों की सीधी संलिप्तता पाई गई है। इसे प्रतीत होता है कि कैसे अधिकारी सरकार के भ्रष्टाचार खत्म करने के मिशन को पलीता लगा रहें हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसे अधिकारियों की स्ट्रीमिंग कराई जाए और भ्रष्टाचार में संलिप्तता पाए जाने पर उन कड़ी कार्रवाई करते हुए तत्काल प्रभाव से सेवामुक्त कर दिया जाए।

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