नाटक का शुभारंभ मुख्य अतिथि जिला सूचना अधिकारी वीरेंद्र सिंह राणा द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। नाटक के द्वारा बच्चों को दी जाने वाली ऐसी शिक्षा पर कटाक्ष किया गया है जिसका वास्तविक जीवन में अधिक महत्व नहीं है।
रिपोर्ट - अंजना भट्ट घिल्डियाल
दिनांक 16 अगस्त, 2024. आज पौढ़ी के प्रेक्षागगृह में संवाद आर्ट ग्रुप पौढ़ी और दिल्ली की टीम द्वारा हास्य नाटक चकड़ैत का मंचन किया गया। नाटक का शुभारंभ मुख्य अतिथि जिला सूचना अधिकारी वीरेंद्र सिंह राणा द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। नाटक के द्वारा बच्चों को दी जाने वाली ऐसी शिक्षा पर कटाक्ष किया गया है जिसका वास्तविक जीवन में अधिक महत्व नहीं है। नाटक में एक लड़का 28 वर्ष बाद अपने विद्यालय आता है और कहता है कि मैं जीवन मैं सफल नहीं हो पा रहा हूं। मुझे आपके द्वारा दी गई शिक्षा से रोजगार नहीं मिल रहा है इसीलिए मुझे वह सारा पैसा ब्याज सहित वापस चाहिए जो मैंने पढ़ाई- लिखाई में खर्च किया है। क्योंकि आप लोगों ने गलत एजुकेशन देकर एक खराब प्रोडक्ट तैयार किया है। उस लड़के की स्कूल मैनेजमेंट से बहुत बहस होती है अंत में लड़के की दोबारा परीक्षा होती है। जिसमें लड़का कोशिश करता है कि वह फेल हो जाए ताकि उसके पैसे वापस मिल सके, जबकि स्कूल मैनेजमेंट प्लान बनाता है कि लड़के को किसी भी हालात में पास किया जाए ताकि पैसे वापस न देने पड़े। लड़के की कई विषय की परीक्षा होती है जिसमें लड़का जानबूझकर खराब आंसर देता है ताकि वह फेल हो जाए लेकिन स्कूल मैनेजमेंट उसमें से ही कुछ ऐसा तोड़ निकाल लेते हैं कि लड़के को हर सब्जेक्ट में एक्सीलेंट नंबर मिल जाते हैं। अंत में गणित की परीक्षा होती है जिसमें लड़के से सबसे आसान और सबसे कठिन दो तरह के प्रश्न किए जाते हैं सबसे आसान सवाल का लड़का गलत जवाब देता है। और लड़का कहता है कि मैं फेल हो गया मुझे अब अपने पैसे सारे वापस चाहिए ब्याज सहित। फिर स्कूल मैनेजमेंट उस लड़के को कहता है कि आप हमें लिखित में दे दो कि तुम्हारे कितने पैसे बनते हैं। लड़का जितने वर्ष पढ़ाई किया होता है उतने वर्ष का खर्चा पढ़ाई लिखाई, ड्रेस, इधर-उधर जितना भी उसका खर्चा होता है उसको ब्याज सहित जोड़कर दे देता है। इसके बाद स्कूल मैनेजमेंट कहता है कि तुम तो बहुत काबिल हो, जीनियस हो क्योंकि तुमने इतने कठिन हिसाब- किताब को ब्याज सहित सही दिया है और यही हमारा दूसरा कठिन प्रश्न था जिसमें आप पास हो गए। इस तरह से अंत में लड़के को कुछ नहीं मिलता। इसमें स्कूल मैनेजमेंट की चित भी अपनी, पट भी अपनी वाली बात भी चरितार्थ होती है।