आगे आगे बकरियों का à¤à¥à¤‚ड जा रहा था पीछे से हो हा करता हà¥à¤† à¤à¤• किसान उनको डंडे से डराता और थमकाता लिठजा रहा बकरियां बड़ी खà¥à¤¶ थी उछल कूद करती हà¥à¤ˆ जा रहीं थी वह खà¥à¤¶ हो रही थी कि अब हमें आजादी मिल गई हमे जंगल मे खà¥à¤²à¤•à¤° घूमने और अचà¥à¤›à¥€ घास खाने को मिलेगी
रिपोर्ट - सचिन तिवारी
आगे आगे बकरियों का à¤à¥à¤‚ड जा रहा था पीछे से हो हा करता हà¥à¤† à¤à¤• किसान उनको डंडे से डराता और थमकाता लिठजा रहा बकरियां बड़ी खà¥à¤¶ थी उछल कूद करती हà¥à¤ˆ जा रहीं थी वह खà¥à¤¶ हो रही थी कि अब हमें आजादी मिल गई हमे जंगल मे खà¥à¤²à¤•à¤° घूमने और अचà¥à¤›à¥€ घास खाने को मिलेगी , लेकिन आगे जाकर किसान उन बकरियों को à¤à¤• कसाई के हवाले कर देता है जो उनको à¤à¤• टà¥à¤°à¤• में डाल कर चल देता है किसान नोटों की गडà¥à¤¡à¥€ जेब मे डालता है और शान से चल देता है , यह कहानी मैंने इसलिठसà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उन बकरियों और आम जनता में कोई फरà¥à¤• नही, न ही उस किसान और आंदोलनकारी से नेता बने वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ में कोई फरà¥à¤• है , हमेशा से ही आम आदमी जिसको आशा की किरण समठकर आगे जाता है वह सिरà¥à¤« à¤à¤• छलावा साबित होती है ,और नेता आम आदमी को सिरà¥à¤« à¤à¤• टूल की तरह इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करता है फिर फेंक देता है , बड़ी बड़ी बातो से आम आदमी को छला जाता है कà¤à¥€ आजादी की लड़ाई बताकर जनता को आंदोलन की आग के à¤à¥‹à¤•à¤¾ जाता है, कà¤à¥€ महगाई à¤à¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ के नाम पर लेकिन आज तक न तो जनता को सही मायने आजादी मिली न ही महंगाई à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ । à¤à¤¾à¤°à¤¤ देश आंदोलनों का देश है जब à¤à¥€ कोई बड़ा आंदोलन इस देश मे शà¥à¤°à¥‚ होता है तो कà¥à¤› पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ है जो हर à¤à¤• आंदोलन में दोहराई जाती है वैसे तो यह पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ सिरà¥à¤« कहने के लिठलाइन नही à¤à¤• विचार है लेकिन देश मे इनका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करके जिस तरह से आम आदमी को ठगा गया है बेवकूफ बनाया गया है उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखकर इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सिरà¥à¤« कहने वाली पंकà¥à¤¤à¤¿ ही कहे तो जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बेहतर होगा , जैसे सिंहासन खाली करो जनता आती है, यह आजादी की दूसरी लड़ाई है, पहले लड़े थे गोर अंगà¥à¤°à¤œà¥‹ से अब काले अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ से लड़ना है , इस बार अगर नही संà¤à¤²à¥‡ तो देश बिक जाà¤à¤—ा गà¥à¤²à¤¾à¤® हो जाà¤à¤—ा , लà¥à¤Ÿ जाà¤à¤—ा, इस लड़ाई में जो साथ नही देगा उसके बचà¥à¤šà¥‡ उसको कोसेंगे, इस तरह की हजार तरह की बाते है जो आपको बताई जाती रही है सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ जाती रही हैं, और अंत मे जनता सिरà¥à¤« खà¥à¤¦ को ठगी महसूस करती है , और देश को कà¥à¤› नठनेता या यूं कहें ठग मिल जाते हैं । 1947 में देश की सारी जनता सड़क पर आ गई थी लाखो लोगो के बलिदान के बाद जनता ने अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ से देश खाली करा लिया , जनता ने अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ से सिंघासन खाली कराया और उस सिंघासन पर कà¥à¤› खादी कà¥à¤°à¥à¤¤à¥‡ वाले सफेदपोश विराजमान हो गठ, राजकाज चलने लगा पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤‚तà¥à¤° आ गया था , अब नेता राजा हो गठथे और जनता वैसे ही पà¥à¤°à¤œà¤¾ बनी रही , महातà¥à¤®à¤¾ गांधी अब सिरà¥à¤« महातà¥à¤®à¤¾ बनकर अपने आशà¥à¤°à¤® में विराजमान हो गठथे , और देश की बागडोर खादी वालो ने अपने हाथ मे ले ली थी , सिंघासन में बैठने की लड़ाई कà¥à¤› इस कदर बड़ी की à¤à¤¾à¤°à¤¤ माठके अंगों पर आरी चलाकर दो खंड कर दिठ, à¤à¤¾à¤°à¤¤ माठकी कसम खाने वाले खà¥à¤¦ को देशà¤à¤•à¥à¤¤ देश का सचà¥à¤šà¤¾ सपूत कहने वालों ने देश के दो टà¥à¤•à¥œà¥‡ कर दिठऔर उस विà¤à¤¾à¤œà¤¨ में हजारों लोगों की जान चली गई हजारो माओ ने अपने बेटे हजारो बहनों ने अपने à¤à¤¾à¤ˆ खो दिठ, लेकिन चंद खादी वालों की सतà¥à¤¤à¤¾ की à¤à¥‚ख इतनी बॠगई थी कि वह हजारों मासूम जानें खा गठ, बेशरà¥à¤®à¥€ की हद तो यह है कि वह इतने सब के बाद à¤à¥€ खà¥à¤¦ को जनता का मसीहा घोषित करते रहे चाहे वो à¤à¤¾à¤°à¤¤ हो या पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ दोनों देशों की जनता सिरà¥à¤« उस किसान की बकरी की तरह हो गठथे जिनको अपनी मौज मसà¥à¤¤à¥€ के लिठमौत के मà¥à¤à¤¹ में à¤à¥‹à¤‚क दिया था । नठसपने और बदलाव के बहाने पर हर बार ठगी गई जनता को आगे 1974 में फिर ठगा गया हालात तब à¤à¥€ कमोबेश आज जैसे ही थे, महà¤à¤—ाई थी, à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° था, सतà¥à¤¤à¤¾ निरंकà¥à¤¶ थी, जनता तà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ थी, कहने को लोकतंतà¥à¤° था, लेकिन लोक पूरी तरह ग़ायब हो चà¥à¤•à¤¾ था, सिरà¥à¤«à¤¼ तंतà¥à¤° ही तंतà¥à¤° बचा था, जो देश को किधर ले जा रहा था, किसी को पता नहीं था, à¤à¤¸à¥‡ में गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ से छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ का 'नवनिरà¥à¤®à¤¾à¤£ आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨' शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤† और देखते ही देखते वह बिहार पहà¥à¤à¤šà¤¾ और 'समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿' का नारा बà¥à¤²à¤¨à¥à¤¦ हो गया, जेपी यानी जयपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ नारायण के पीछे सारा देश खड़ा हो गया, वह लोकनायक कहलाये जाने लगे, और आख़िर जनता की ताक़त ने इमरà¥à¤œà¥‡à¤¨à¥à¤¸à¥€ के तमाम दमन को बरà¥à¤¦à¤¾à¤¶à¥à¤¤ करते हà¥à¤ à¤à¥€ इनà¥à¤¦à¤¿à¤°à¤¾ गाà¤à¤§à¥€ के शासन का ख़ातà¥à¤®à¤¾ कर दिया। जनता जीत गयी थी, दिलà¥à¤²à¥€ की सरकार बदल गयी थी, लेकिन समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ के सपने की गठरी के साथ जनता और जेपी दोनों किनारे लगाये जा चà¥à¤•à¥‡ थे, राजनीति ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ठग लिया था, ठीक वैसे ही जैसे आज़ादी के बाद गाà¤à¤§à¥€ ठगे हà¥à¤ हाथ मलते रह गये थे, हालाà¤à¤•à¤¿ आज़ादी मिलने के कà¥à¤› सालों तक लोगों को यह à¤à¤°à¤® ज़रूर बना रहा कि जनता का राज आ चà¥à¤•à¤¾ है, वरना 26 जनवरी 1950 को देश का पहला गणतंतà¥à¤° मनाने के लिठ'दिनकर' यह न लिखते कि 'सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है। फिर 1988 में à¤à¤• बार फिर à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° के मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ ने देश को हिला दिया बोफ़ोरà¥à¤¸ तोपों का मामला गूà¤à¤œà¤¾. वी. पी. सिंह के पीछे जनता फिर खड़ी हà¥à¤ˆ, नारा गूà¤à¤œà¤¾, 'राजा नहीं फ़क़ीर है, देश की तक़दीर है,' à¤à¤• बार फिर लगा कि à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° हारेगा, ग़रीब जीतेगा, वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ बदलाव होंगे. लेकिन मंडल-कमंडल की राजनीति में देश à¤à¤¸à¤¾ बà¤à¤Ÿà¤¾ कि सब बंटाधार हो गया । उसके बाद अनà¥à¤¨à¤¾ आंदोलन हà¥à¤† 5 अपà¥à¤°à¥‡à¤² 2011 को समाजसेवी अनà¥à¤¨à¤¾ हजारे à¤à¤µà¤‚ उनके साथियों के जंतर-मंतर पर शà¥à¤°à¥ किठगठअनशन के साथ आरंठहà¥à¤†, जिनमें अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤‚त à¤à¥‚षण, बाबा रामदेव आदि शामिल थे। संचार साधनों के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ के कारण इस अनशन का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ समूचे à¤à¤¾à¤°à¤¤ में फैल गया और इसके समरà¥à¤¥à¤¨ में लोग सड़कों पर à¤à¥€ उतरने लगे। इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार से à¤à¤• मजबूत à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माà¤à¤— की थी और अपनी माà¤à¤— के अनà¥à¤°à¥‚प सरकार को लोकपाल बिल का à¤à¤• मसौदा à¤à¥€ दिया था। किंतà¥Â मनमोहन सिंह के नेतृतà¥à¤µ वाली ततà¥à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ सरकार ने इसके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ नकारातà¥à¤®à¤• रवैया दिखाया और इसकी उपेकà¥à¤·à¤¾ की। इसके परिणामसà¥à¤µà¤°à¥‚प शà¥à¤°à¥ हà¥à¤ अनशन के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ à¤à¥€ उनका रवैया उपेकà¥à¤·à¤¾ पूरà¥à¤£ ही रहा। किंतॠइस अनशन के आंदोलन का रूप लेने पर à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार ने आनन-फानन में à¤à¤• समिति बनाकर संà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ खतरे को टाला और 16 अगसà¥à¤¤ तक संसद में लोकपाल विधेयक पास कराने की बात सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर ली। अगसà¥à¤¤ से शà¥à¤°à¥ हà¥à¤ मानसून सतà¥à¤° में सरकार ने जो विधेयक पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया वह कमजोर और जन लोकपाल के सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ विपरीत था। अनà¥à¤¨à¤¾ हजारे ने इसके खिलाफ अपने पूरà¥à¤µ घोषित तिथि 16 अगसà¥à¤¤ से पà¥à¤¨à¤ƒ अनशन पर जाने की बात दà¥à¤¹à¤°à¤¾à¤ˆà¥¤ सरकार ने इसकी राह में कई रोड़े अटकाठà¤à¤µà¤‚ 16 अगसà¥à¤¤ को अनà¥à¤¨à¤¾ हजारे à¤à¤µà¤‚ उनके साथियों को गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° कर लिया। किंतॠइससे आंदोलन पà¥à¤°à¥‡ देश में à¤à¤¡à¤¼à¤• उठा। देश à¤à¤° में अगले 12 दिनों तक लगातार बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में धरना, पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ और अनशन आयोजित किठगà¤à¥¤ अंततः संसद दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अनà¥à¤¨à¤¾ की तीन शरà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर सहमती का पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ पास करने के बाद 28 अगसà¥à¤¤ को अनà¥à¤¨à¤¾ ने अपना अनशन सà¥à¤¥à¤—ित करने की घोषणा की। अनà¥à¤¨à¤¾ आंदोलन à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ आंदोलन था जिसमे पूरा देश सड़क पर आ गया था हजारो लोगो ने अपना बिजनेस लड़को ने अपनी पà¥à¤¾à¤ˆ छोड़कर आंदोलन में तन मन और धन से योगदान दिया , उनको इस आंदोलन से à¤à¤• नठà¤à¤¾à¤°à¤¤ का सपना दिख रहा था देश को अनà¥à¤¨à¤¾ केजरीवाल में à¤à¤• नई आस दिख रही थी उपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ आम आदमी गरीब केजरीवाल की तरफ आशा à¤à¤¾à¤°à¥€ दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से देख रहा था आंदोलन से à¤à¤•à¤œà¥à¤Ÿ हà¥à¤ हà¥à¤œà¥‚म को केजरीवाल ने à¤à¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾ और à¤à¤• नई पारà¥à¤Ÿà¥€ आम आदमी पारà¥à¤Ÿà¥€ का गठन कर लिया दिलà¥à¤²à¥€ में उनकी सरकार à¤à¥€ बन गई फिर धीरे धीरे केजरीवाल की सतà¥à¤¤à¤¾ की बà¥à¤¤à¥€ चाहत ने आंदोलन के मà¥à¤–à¥à¤¯ सà¥à¤¤à¤®à¥à¤ रहे लोगो को à¤à¤• à¤à¤• करके किनारे लगाना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया , आंदोलन में जिन लोगो ने अपना सबकà¥à¤› बरà¥à¤¬à¤¾à¤¦ कर दिया था वह अरविंद के इस रूप को देखकर खà¥à¤¦ को ठगा हà¥à¤† महसूस कर रहे थे और देश की जनता जो पहले ही कई नेताओ और पारà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¥‡à¤² रही थी इनको à¤à¥€ उसी कैटेगरी का मान कर शांत हो गई । महगाई à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° और à¤à¥à¤–मरी बेरोजगारी से वो पहले à¤à¥€ मर रहे थे और आज à¤à¥€ मर रहे शायद इसलिठइनको आम आदमी कहते हैं जिसको कोई à¤à¥€ आम की तरह चूस कर फेंक दे । देश की जनता आज à¤à¥€ नेताओं की टूलकिट की तरह काम कर रही है जिसे कोई जाति के नाम पर कोई धरà¥à¤® के नाम पर कोई मंहगाई के नाम पर कोई गरीबी के नाम पर सिरà¥à¤« यूज कर रहा है और उस किसान की बकरी तरफ आशा की किरण दिखा कर मौत के मà¥à¤à¤¹ à¤à¥‹à¤‚क दिया जाता है । आशा अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ होप, इस देश मे आजादी से लेकर आजतक विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ लोगो ने विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ तरीके से सिरà¥à¤« होप बेच कर अपनी दà¥à¤•à¤¾à¤¨ चलाई है वो अरबपति हो गठऔर जनता आज à¤à¥€ वहीं है जहाठवो कल थी । आज अगर जनता खà¥à¤¦ को इनके चंगà¥à¤² से बचाना चाहती है और इनके छलावे से बचना चाहती है तो इनकी जो होप की शोप है उससे बचना चाहिà¤à¥¤