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साधु की अनेक प्रवृत्तियों में भी निवृत्तिमय विश्राम होता है: मोरारी बापू


पतंजलि विश्वविद्यालय में ‘मानस गुरुकुल’ विषयक राम कथा में मोरारी बापू ने कहा कि कल रामनवमी के साथ ही स्वामी रामदेव महाराज का भी सन्यास लिए 28 वर्ष हुए इस लिए उनका 28वाँ जन्मोत्सव है। ऐसे पावन अवसर पर स्वान्तरसुखाय हेतु रहित आयोजित यह रामकथा आठवें दिवस में प्रवेश कर रही है। आज की कथा के मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड के माननीय शहरी विकास मंत्री प्रेमचन्द अग्रवाल रहे।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार, 09 अप्रैल। पतंजलि विश्वविद्यालय में ‘मानस गुरुकुल’ विषयक राम कथा में मोरारी बापू ने कहा कि कल रामनवमी के साथ ही स्वामी रामदेव महाराज का भी सन्यास लिए 28 वर्ष हुए इस लिए उनका 28वाँ जन्मोत्सव है। ऐसे पावन अवसर पर स्वान्तरसुखाय हेतु रहित आयोजित यह रामकथा आठवें दिवस में प्रवेश कर रही है। आज की कथा के मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड के माननीय शहरी विकास मंत्री प्रेमचन्द अग्रवाल रहे। बापू ने कहा कि कल पतंजलि रुचि सोया के एफपीओ की लिस्टिंग के कारण स्वामी रामदेव कथा में उपस्थित नहीं हो सके थे। भारतीय मूल तत्व जो वैश्विक है, उसकी शाश्वत जड़ों को सींचने के लिए और उससे फलित विशाल वट वृक्ष को और अधिक घना व छायादार बनाने के लिए स्वामी रामदेव अखण्ड पुरुषार्थ कर पारमार्थिक यज्ञ में आहूति डाल रहे हैं। नहीं तो फकीर का अर्थ से क्या लेना? जो धर्म से विरुद्ध न हो ऐसा पारमार्थिक अर्थ परमार्थ के लिए प्रयोग किया जाए तो यह भी एक यज्ञ ही है। उन्होंने कहा कि विश्व मंगल के लिए पतंजलि का वैश्विक गुरुकुल बनने जा रहा है। उसकी नींव में यह सब परमार्थ जाएगा। उन्होंने कहा कि साधु की अनेक प्रवृत्तियों में भी निवृत्तिमय विश्राम होता है। माता-पिता तो निमित्त मात्र हैं, जहाँ संगम है, समन्वय है वहाँ साधु का निर्माण होता है। सच्चे साधु का लक्षण बताते हुए गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि जो ग्रहण करने योग्य हो उसे ग्रहण कर ले और जो छोड़ने योग्य हो उसे छोड़ दे, वही साधु है। कथा में उन्होंने रामजन्म, सीता हरण व लंका प्रस्थान हेतु सेतु निर्माण की कथा सुनाई। सेतु निर्माण प्रसंग में पूज्य बापू ने कहा कि पत्थर का स्वभाव तैरना नहीं है, वानर चंचल प्राणी है वह पत्थरों को बांधकर नहीं रख सकता तथा समुद्र का जल तरंगित है स्थिर नहीं है। तो प्रश्न उठता है कि सेतु कैसे बना? गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि केवल परमात्मा की परम कृपा से ही सेतु का निर्माण हुआ।

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