शरद ऋतॠके पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठके अवसर शरद पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ पर बà¥à¤§à¤µà¤¾à¤° को सोलह कलाओं से पूरà¥à¤£ हà¥à¤ चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ ने आरोगà¥à¤¯à¤¦à¤¾à¤¯à¥€ किरणें बरसाईं इस अवसर पर हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में निवास रत गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ से जà¥à¥œà¥‡ गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥€à¤“ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शरद पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के अवसर पर गरबा का आयोजन उमिया धाम हरिपà¥à¤° में पारमà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• वेश à¤à¥‚षा के साथ समà¥à¤ªà¥à¤ªà¤¨ हà¥à¤†à¥¤
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° ,२१ ऑकà¥à¤Ÿà¥‹à¤¬à¤°à¥¤ शरद ऋतॠके पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठके अवसर शरद पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ पर बà¥à¤§à¤µà¤¾à¤° को सोलह कलाओं से पूरà¥à¤£ हà¥à¤ चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ ने आरोगà¥à¤¯à¤¦à¤¾à¤¯à¥€ किरणें बरसाईं इस अवसर पर हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में निवास रत गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ से जà¥à¥œà¥‡ गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥€à¤“ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शरद पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के अवसर पर गरबा का आयोजन उमिया धाम हरिपà¥à¤° में पारमà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• वेश à¤à¥‚षा के साथ समà¥à¤ªà¥à¤ªà¤¨ हà¥à¤†à¥¤ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के दौरान समाज की ओर से सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® मां उमिया सहित अनà¥à¤¯ देवी-देवता की पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ की गई। इसके बाद समाज के बचà¥à¤šà¥‡, बूढ़े, जवान, महिला और पà¥à¤°à¥à¤· पारंपरिक गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ परिधानों से सà¥à¤¸à¤œà¥à¤œà¤¿à¤¤ होकर गरबा किया।इस मौके पर लोगों ने महालकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ को à¤à¥‹à¤— लगाकर खीर खà¥à¤²à¥‡ आसमान पर किरणों से संगà¥à¤°à¤¹ के लिठरखी और सेवन किया।गरबा सà¤à¥€ समाज जनों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤• दूसरे को पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ की बधाई पà¥à¤°à¥‡à¤·à¤¿à¤¤ की गई। इस दौरान डांडिया की खनक पर समाज के लोग देर रात तक नृतà¥à¤¯ करते रहे। गरबा की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ गणेश वंदना से की गई। इसके बाद पूनम नवरात..., चाचक चौक मां तू गरबे रे घूमती गà¥à¤¦à¥œà¥€ परी ने मां सरसà¥à¤µà¤¤à¥€.... मà¥à¤°à¤²à¥€ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ रे बगाड़ी... आदि गीत पर पà¥à¤°à¥à¤· व महिलाà¤à¤‚ जमकर थिरकती रहीं। गरबा के बज रहे मधà¥à¤° संगीत की धà¥à¤¨ पर मौके पर उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ लोगों अपने आप को नृतà¥à¤¯ करने से रोक नहीं पा रहे थे। इस दौरान उमिया धाम का माहौल पूरी तरह से गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ रंग में रंग गया था। गरबा गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ à¤à¤• लोकनृतà¥à¤¯ है । आजकल इसे पूरे देश में आधà¥à¤¨à¤¿à¤• नृतà¥à¤¯ कला में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो गया है। इस रूप में उसका कà¥à¤› परिषà¥à¤•à¤¾à¤° हà¥à¤† है फिर à¤à¥€ उसका लोकनृतà¥à¤¯ का ततà¥à¤µ अकà¥à¤·à¥à¤£à¥à¤£ है। आरंठमें देवी के निकट सछिदà¥à¤° घट में दीप ले जाने के कà¥à¤°à¤® में यह नृतà¥à¤¯ होता था। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° यह घट दीप गरà¥à¤ कहलाता था। वरà¥à¤£à¤²à¥‹à¤ª से यही शबà¥à¤¦ गरबा बन गया। आजकल गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ में नवरातà¥à¤°à¥‹à¤‚ के दिनों में लड़कियां कचà¥à¤šà¥‡ मिटà¥à¤Ÿà¥€ के सछिदà¥à¤° घड़े को फूल पतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से सजाकर उसके चारों ओर नृतà¥à¤¯ करती हैं।