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हरिद्वार में हर्षोल्लास के साथ मनाया शरद पूर्णिमा उत्सव, गरबा किया


शरद ऋतु के प्रारंभ के अवसर शरद पूर्णिमा पर बुधवार को सोलह कलाओं से पूर्ण हुए चंद्रमा ने आरोग्यदायी किरणें बरसाईं इस अवसर पर हरिद्वार में निवास रत गुजराती समुदाय से जुड़े गुजरतीओ के द्वारा शरद पूर्णिमा के अवसर पर गरबा का आयोजन उमिया धाम हरिपुर में पारम्परिक वेश भूषा के साथ सम्प्पन हुआ।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार ,२१ ऑक्टोबर। शरद ऋतु के प्रारंभ के अवसर शरद पूर्णिमा पर बुधवार को सोलह कलाओं से पूर्ण हुए चंद्रमा ने आरोग्यदायी किरणें बरसाईं इस अवसर पर हरिद्वार में निवास रत गुजराती समुदाय से जुड़े गुजरतीओ के द्वारा शरद पूर्णिमा के अवसर पर गरबा का आयोजन उमिया धाम हरिपुर में पारम्परिक वेश भूषा के साथ सम्प्पन हुआ। कार्यक्रम के दौरान समाज की ओर से सर्वप्रथम मां उमिया सहित अन्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना की गई। इसके बाद समाज के बच्चे, बूढ़े, जवान, महिला और पुरुष पारंपरिक गुजराती परिधानों से सुसज्जित होकर गरबा किया।इस मौके पर लोगों ने महालक्ष्मी को भोग लगाकर खीर खुले आसमान पर किरणों से संग्रह के लिए रखी और सेवन किया।गरबा सभी समाज जनों द्वारा एक दूसरे को पूर्णिमा की बधाई प्रेषित की गई। इस दौरान डांडिया की खनक पर समाज के लोग देर रात तक नृत्य करते रहे। गरबा की शुरुआत गणेश वंदना से की गई। इसके बाद पूनम नवरात..., चाचक चौक मां तू गरबे रे घूमती गुदड़ी परी ने मां सरस्वती.... मुरली क्यों रे बगाड़ी... आदि गीत पर पुरुष व महिलाएं जमकर थिरकती रहीं। गरबा के बज रहे मधुर संगीत की धुन पर मौके पर उपस्थित लोगों अपने आप को नृत्य करने से रोक नहीं पा रहे थे। इस दौरान उमिया धाम का माहौल पूरी तरह से गुजराती रंग में रंग गया था। गरबा गुजरात में प्रचलित एक लोकनृत्य है । आजकल इसे पूरे देश में आधुनिक नृत्य कला में स्थान प्राप्त हो गया है। इस रूप में उसका कुछ परिष्कार हुआ है फिर भी उसका लोकनृत्य का तत्व अक्षुण्ण है। आरंभ में देवी के निकट सछिद्र घट में दीप ले जाने के क्रम में यह नृत्य होता था। इस प्रकार यह घट दीप गर्भ कहलाता था। वर्णलोप से यही शब्द गरबा बन गया। आजकल गुजरात में नवरात्रों के दिनों में लड़कियां कच्चे मिट्टी के सछिद्र घड़े को फूल पत्तियों से सजाकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं।

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