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स्वामी चिदानन्दमुनि की केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी की दिल्ली में भेंटवार्ता


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी की दिल्ली में भेंटवार्ता हुई। इस अवसर पर स्वामी ने पर्यावरण प्रदूषण निवारण योजना, पलायन निवारण योजना, ग्राम विकास, उन्नत किस्म के बीज, उन्नत किस्म की पौधे उपलब्ध करवाने के साथ ही उत्तराखंड में बागवानी और फूलों की खेती, जड़ी-बूटी आदि की कृषि करने हेतु प्रोत्साहित करने वाली योजनायें बनाने तथा बोने से बिकने तक की यात्रा हेतु विशेष चर्चा की।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 26 अगस्त। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी की दिल्ली में भेंटवार्ता हुई। इस अवसर पर स्वामी ने पर्यावरण प्रदूषण निवारण योजना, पलायन निवारण योजना, ग्राम विकास, उन्नत किस्म के बीज, उन्नत किस्म की पौधे उपलब्ध करवाने के साथ ही उत्तराखंड में बागवानी और फूलों की खेती, जड़ी-बूटी आदि की कृषि करने हेतु प्रोत्साहित करने वाली योजनायें बनाने तथा बोने से बिकने तक की यात्रा हेतु विशेष चर्चा की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने माननीय मंत्री से कहा कि आपके सान्निध्य में उत्तराखंड के किसानों हेतु एक सम्मेलन का आयोजन किये जाने की जरूरत है ताकि उन्नत कृषि को विकसित कर उत्तराखंड से हो रहे पलायन को रोका जा सके। इस क्षेत्र में माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड पुष्कर सिंह धामी जी और कृषि मंत्री उत्तराखंड भी सक्रियता और गंभीरता से कार्य कर रहे हैं। स्वामी जी ने सभी का आह्वान करते हुये कहा कि जिसके पास जो भी सामथ्र्य और अनुभव उसके साथ आगे आयें और हम सभी मिलकर कार्य करे तो पलायन और प्रदूषण जैसी समस्याओं को रोका जा सकता हैं। स्वामी ने कहा कि हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि अब तक पर्यावरण को जो क्षति हो चुकी वह तो अपरिवर्तनीय है, परन्तु अब हमें हर स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने की नितांत आवश्यकता है। भारत कृषि पर निर्भर अर्थव्यवस्था वाल राष्ट्र इसलिये जरूरी है कि हम कृषि की परम्परागत तकनीक के साथ पर्यावरण सहयोगी योजनाओं का सृजन करे। उत्तराखंड से हो रहे पलयान पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि अब कृषि के क्षेत्र में और अधिक आकर्षक आय सहायता योजनाओं को विकसित करने की आवश्यकता है ताकि लगत कम हो और उत्पादकता अधिक हो। साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण उच्च तापमान की चुनौती का सामना करने वाली पैदावार के विषय में भी नये सिरे से विचार करने की नितांत आवश्यकता है।

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