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बड़ा सवाल! प्रसिद्ध श्री मनसा देवी मंदिर का "कथित ट्रस्टी" दिगंबरराज,गिरी या पुरी?


हरिद्वार में इन दिनों कुछ ढोंगी व पाखंडी लोगों का बोलबाला है आरोप है की ऐसे लोग आम जनता को गुमराह कर धोखे में रख अपने जाल में फंसाते हैं और उसके बाद उनका शोषण करते हैं. दुखद: यह है की यहां कोई भी बड़ी आसानी से चोला ओढ़कर "धर्म की आड़"ले अपनी मनमानी करता है और ऐसे प्रभावशाली लोगों को रोकने वाला कोई नहीं?

रिपोर्ट  - अजय शर्मा

तीर्थ नगरी: हरिद्वार में इन दिनों कुछ ढोंगी व पाखंडी लोगों का बोलबाला है आरोप है की ऐसे लोग आम जनता को गुमराह कर धोखे में रख अपने जाल में फंसाते हैं और उसके बाद उनका शोषण करते हैं. दुखद: यह है की यहां कोई भी बड़ी आसानी से चोला ओढ़कर "धर्म की आड़"ले अपनी मनमानी करता है और ऐसे प्रभावशाली लोगों को रोकने वाला कोई नहीं? सर्वविदित है की हमारा देश ऋषि मुनियों की परंपरा वाला देश है यहां त्याग की बड़ी महिमा है और त्यागी व्यक्ति को समाज श्रद्धा की दृष्टि से देखता है। ढोंगी बाबा/लोग आस्थावान श्रद्धालुओं की इसी मनोवृति का लाभ उठाते हैं। ऐसा नहीं हो सकता की शासन-प्रशासन व खुफिया तंत्र को ऐसे लोगों की जानकारी ना हो ऐसा नहीं माना जा सकता. फिर भी इनके प्रभाव और रसूख के चलते शासन प्रशासन में बैठे अधिकारी ऐसे लोगों और उनके संगठनों पर कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते क्योंकि ऐसे लोगों और इनकी संस्थाओं को राजनीति संरक्षण प्राप्त है। इसके बाबजूद यदि कोई व्यक्ति ऐसे लोगों का विरोध करता है तो ऐसे लोग अपने प्रभाव और धनबल का प्रयोग कर विरोध करने वालों को अपने सहयोगियों के साथ मिलकर या तो जेल भिजवा देते हैं या उन पर गंभीर धाराओं में झूठे मुकदमे दर्ज कराकर दबाव बनाने का प्रयास करते हैं, उल्लेखनीय है कि एक व्यक्ति दिगंबरराज जो खुद को आम जनता और शासन /प्रशासन में प्रसिद्ध"श्री मनसा देवी मंदिर"का ट्रस्टी होना प्रचारित व प्रसारित करता चला रहा है। यहां यह उल्लेखनीय है की "श्री मनसा देवी मंदिर" ट्रस्ट में माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखंड, नैनीताल के आदेशानुसार हरिद्वार के जिलाधिकारी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पदेन सदस्य नामित चले आते हैं ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या सक्षम अधिकारियों ने इस व्यक्ति को "श्री मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट"का ट्रस्टी नियुक्त किया है या इस संबंध में ट्रस्ट के किसी प्रस्ताव में सक्षम अधिकारियों ने या उनके प्रतिनिधियों ने अपनी सहमति दी है? यहां प्रश्न ये भी उठता है की "दिगंबर राजगिरी" ने किससे कब दीक्षा ली थी और इसके गुरु कौन हैं? सूत्रों की माने तो दिगंबर राजगिरी पर कई गंभीर आरोप हैं ऐसे लोग यदि हमारे "पवित्र धार्मिक स्थलों" पर कब्जा कर खुद का महिमामंडन करते हैं तो इससे "श्रद्धालु समाज"स्वभाविक ही आहत होता है लेकिन चिंता का विषय यह है कि ऐसे लोगों पर कार्रवाई कौन करेगा?

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