पतंजलि संन्यासाश्रम के तत्वावधान में आयोजित दस दिवसीय संन्यास दीक्षा महोत्सव में आज दूसरे दिन भावी संन्यासियों को वात्सल्य ग्राम की संस्थापिका साध्वी ऋतम्भरा ने अपने उद्बोधन से मार्गदर्शन दिया। इससे पूर्व पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने पतंजलि पहुँचने पर साध्वी ऋतम्भरा को पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत किया।
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
हरिद्वार, 23 मार्चः पतंजलि संन्यासाश्रम के तत्वावधान में आयोजित दस दिवसीय संन्यास दीक्षा महोत्सव में आज दूसरे दिन भावी संन्यासियों को वात्सल्य ग्राम की संस्थापिका साध्वी ऋतम्भरा ने अपने उद्बोधन से मार्गदर्शन दिया। इससे पूर्व पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने पतंजलि पहुँचने पर साध्वी ऋतम्भरा को पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत किया। उद्बोधन के क्रम में साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि पतंजलि के द्वारा पूरे विश्व में सनातन की प्रतिष्ठा के लिए बड़ा कार्य हो रहा है। पूज्य स्वामी जी के नेतृत्व में संन्यासियों की जो शृंखला तैयार की जा रही है, यह पूरे विश्व में सनातन धर्म व भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करेंगे। कार्यक्रम में स्वामी रामदेव ने कहा कि जीवन में संन्यासी होने से बड़ा कोई तप व त्याग नहीं है। अपने आपको, अपनी जवानी को तथा अपनी सभी कामनाओं को आहुत कर देना बहुत बड़ा त्याग है। संन्यासी होने का अर्थ है पूर्ण विवेकी होना, पूर्ण श्रद्धा से आप्लावित होना। श्रद्धा की, भक्ति की, समर्पण की, कृतज्ञता की, दिव्यता की पराकाष्ठा ही संन्यास है। यहाँ शताधिक विद्वान भाई व विदूषी बहनें अपना सर्वस्व राष्ट्रसेवा में समर्पित कर संन्यास मार्ग पर चलने के लिए तत्पर हैं। जब ये संन्यासी भारतीय संस्कृति, परम्पराओं की पताका लेकर पूरे विश्व में निकलेंगे तो वैश्विक स्तर पर सनातन धर्म की स्वीकार्यता बढ़ेगी और भारत पुनः विश्व गुरू बनेगा। यही महर्षि दयानंद का स्वप्न था।