परमार्थ निकेतन से चलते-चलते कैलाश खेर ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती के सान्निध्य में कथा यजमान परिवार और जाम्बिया से आये सेवाभावी पटेल परिवार को रूद्राक्ष का पौधा भेंट करते हुये कहा कि यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि अब पश्चिम की धरती से भी श्रीमद् भागवत कथा के आयोजन एवं श्रवण हेतु श्रद्धालु परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश भारत आ रहे हैं।
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
ऋषिकेश, 19 अक्टूबर। परमार्थ निकेतन से पद्मश्री कैलाश खेर जी ने विदा ली। परमार्थ निकेतन में स्पेन से आये श्रद्धालुओं ने श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया। परमार्थ निकेतन से चलते-चलते कैलाश खेर ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती के सान्निध्य में कथा यजमान परिवार और जाम्बिया से आये सेवाभावी पटेल परिवार को रूद्राक्ष का पौधा भेंट करते हुये कहा कि यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि अब पश्चिम की धरती से भी श्रीमद् भागवत कथा के आयोजन एवं श्रवण हेतु श्रद्धालु परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश भारत आ रहे हैं। पहले तो पश्चिम की धरती से पर्यटक, भारत, पर्यटन, योग व ध्यान के लिये आते थें परन्तु अब श्रीरामकथा, श्रीमद् भागवत कथा और अन्य धार्मिक आयोजनों के लिये आते हैं। पश्चिम से आकर लोग होटल में रूकने के बजाये आश्रम के सात्विक व आध्यात्मिक वातावरण में रहकर तीर्थ सेवन करते हैं। आश्रम की दिनचर्या प्रातःकाल गंगा जी में स्नान, यज्ञ, दर्शन, योग, ध्यान, कथा श्रवण, गंगा आरती व सांयकालीन सत्संग का आनन्द लेते हैं। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि कैलाश खेर जहां भी जाते है गाते भी हैं, झूमते भी है और झूमाते भी है, नाचते भी हैं और नचाते भी है। जब भी वे आते हैं पूरा वातावरण आनन्द और उल्लास से भरा जाता है। जब भी वे गाते हैं सभी के पैर थिरकने लगते हैं। लोग डीजे की धून पर थिरकते हैं परन्तु डीजे की धून पर थिरकने वाली पीढ़ी को डिवाइन पीढ़ी बना देना ये हमारे देश के पद्मश्री श्री कैलाश खेर जी ही कर सकते हैं। स्वामी ने कहा कि जीवन में कुछ लक्ष्य होते है। जीवन में कलेक्शन नहीं बल्कि कनेक्शन जरूरी है। माॅल में जाकर माल एकत्र करते हैं, शापिंग करके (शेल्फ) अलमारियाँ भर लेते हैं परन्तु स्वयं (सेल्फ) खाली ही रह जाते हैं। हम अमीर बनें परन्तु परमात्मा को पाकर बने। धनवान वह नहीं जिसकी तिजोरी में धन भरा हो बल्कि धनवान वह है जिसकी तिजोरी धर्म से भरी हो। दिल की तिजोरी में करूणा हो, प्रेम हो, सत्य हो, अहिंसा हो वहीं धनवान है। यह संसार एक धर्मशाला है। इस धर्मशाला में आकर अपने धर्म को प्राप्त करना ही हमारा लक्ष्य हो।