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हिन्दी भाषा और साहित्य पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता अनुप्रयोग: महत्व एवं चुनौतियाँ विषयक त्रिदिवसीय व्याखान माला का आयोजन


हिन्दी विभाग गुरुकुल काँगड़ी समविश्वविद्यालय में हिन्दी सप्ताह के अंतर्गत हिन्दी भाषा और साहित्य पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता अनुप्रयोग: महत्व एवं चुनौतियाँ विषयक त्रिदिवसीय व्याखान माला का आयोजन किया गया। आज प्रथम दिवस के उदघाटन सत्र में प्रो. बैजनाथ प्रसाद, हिन्दी विभाग पंजाब विश्वविद्यालय का बीज व्याख्यान प्रस्तुत किया।

रिपोर्ट  - आल न्यूज़ भारत

हिन्दी विभाग गुरुकुल काँगड़ी समविश्वविद्यालय में हिन्दी सप्ताह के अंतर्गत हिन्दी भाषा और साहित्य पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता अनुप्रयोग: महत्व एवं चुनौतियाँ विषयक त्रिदिवसीय व्याखान माला का आयोजन किया गया। आज प्रथम दिवस के उदघाटन सत्र में प्रो. बैजनाथ प्रसाद, हिन्दी विभाग पंजाब विश्वविद्यालय का बीज व्याख्यान प्रस्तुत किया। व्याख्यान माला में प्रथम दिवस के बीज वक्ता प्रो. बैजनाथ प्रसाद ने कहा कि कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी के विकास ने ज्ञान को विस्तारित किया है विज्ञान ने मौसम और कृषि के क्षेत्र में में उल्लेखनीय कार्य किया है। प्रो. प्रसाद ने कहा कि भाषा सीखना श्रमसाध्य कार्य है इसमें मानवीय क्षमताओं की विशेष भूमिका है। प्रो.प्रसाद ने मशीनीकृत अनुवाद की त्रुटियों और भाषा को सीखने के लिए व्याकरण की भूमिका पर प्रतिभागियों का विस्तार से मार्गदर्शन किया। प्रो. प्रसाद ने एआई की सीमाओं पर भी चर्चा की। महर्षि दयानंद सभागार में आयोजित व्याख्यानमाला के प्रथम सत्र में प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो. हेमलता के. ने कहा शिक्षा जगत में एआई के आने से कई बड़े बदलाव से गुजर रही है और आज की पीढ़ी को तकनीकी को प्रयोग के लिए विवेक विकसित करना होगा। प्रो. हेमलता ने कहा कि छात्रों को अकादमिक लेखन के लिए एआई की मदद से लेखन नहीं करना चाहिए बल्कि पुस्तकों और अन्य संदर्भों का उपयोग करना चाहिए। इस अवसर पर कुलसचिव प्रो. सुनील कुमार ने नूतन विषय और नवाचार पर व्याख्यान माला आयोजित करने के लिए शुभकामनाएं देते हुए कहा कि इससे हमारे छात्र निश्चित रूप से लाभान्वित होंगे तथा इसका उपयोग अपने अध्ययन के लिए करेंगे। इस अवसर पर भारतीय भाषा, कला और संस्कृति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष प्रो. ब्रह्मदेव ने कहा कि एआई के दौर में हमे प्राचीन ज्ञान के स्रोतों का उपयोग करते हुए आत्मा और चेतना के विकास की यात्रा को समझने का प्रयास करना चाहिए। प्रो. ब्रह्मदेव भाषा के बरतने पर भाषा वैज्ञानिक प्रशिक्षण के महत्व पर बल देते हुए कहा हिन्दी और संस्कृत को मिलकर इस दिशा में कार्य करना चाहिए।

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