संगोष्ठी का उद्देश्य सत्य की आधुनिक समाज में प्रासंगिकता पर चर्चा करना था |


गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के प्रौद्योगिकी संकाय में "21वीं सदी में सत्य की खोज: एक काल्पनिक स्वप्न या व्यावहारिक वास्तविकता?" विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्देश्य सत्य की आधुनिक समाज में प्रासंगिकता पर चर्चा करना था |

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के प्रौद्योगिकी संकाय में "21वीं सदी में सत्य की खोज: एक काल्पनिक स्वप्न या व्यावहारिक वास्तविकता?" विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्देश्य सत्य की आधुनिक समाज में प्रासंगिकता पर चर्चा करना था | संगोष्ठी की शुरुआत प्रो. मयंक अग्रवाल ने की, जिन्होंने सत्य के शाश्वत अस्तित्व की वकालत की और छात्रों को सत्य, नैतिक मूल्यों और भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान का मार्ग अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रो. एम.एम. तिवारी ने अपने विचार साझा किए, जिन्होंने "सत्यमेव जयते" के शक्तिशाली नारे का संदर्भ देते हुए कहा कि सत्य सदैव सत्य रहता है। प्रो. सुनील पंवार ने धैर्य को सत्य की खोज में महत्वपूर्ण बताया, ठीक वैसे ही जैसे वैज्ञानिक सच को व्यवस्थित तरीके से उजागर करते हैं। उन्होंने आत्म-संवेदनशीलता और ईमानदारी की महत्ता पर जोर दिया, जो सत्य की खोज में प्रमुख भूमिका निभाती है। सहायक प्रोफेसर अश्विनी कुमार ने बचपन में प्राप्त नैतिक और सांस्कृतिक शिक्षाओं की चर्चा की, जो व्यक्ति के जीवन में सत्य और नैतिकता की नींव रखने में सहायक होती हैं। संगोष्ठी का समापन डीन डॉ. विपुल शर्मा द्वारा एक प्रेरणादायक कहानी से हुआ, जिसमें उन्होंने प्राचीन शास्त्रों से उदाहरण देकर बताया कि कैसे पुराने समय के लोग सत्य की खोज में अडिग रहते थे। यह कहानी आज की पीढ़ी के लिए एक अमूल्य संदेश थी। संगोष्ठी के संयोजक सहायक प्रोफेसर प्रशांत कौशिक ने आधुनिक दुनिया की उपभोक्तावादी प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला और बताया कि बाजार शक्तियों और सोशल मीडिया ने सत्य और मिथ्या के बीच की रेखाओं को धुंधला कर दिया है जिससे समाज में तनाव और संघर्ष उत्पन्न होते हैं। समन्वयक डॉ. लोकेश जोशी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस संगोष्ठी में उज्ज्वल, शिखर, रजत, प्रदीप, प्रमोद, प्रादुम, लक्ष्मण, राकेश और श्रवण जैसे छात्रों ने सक्रिय रूप से भाग लिया और अपने विचारों से चर्चा को समृद्ध किया। इस अवसर पर हर्षित कंसल और ब्योमकेश पुष्कर ने आयोजन में मदद की।

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