उत्तराखंड क्रांति दल द्वारा आहूत तांडव रैली जो एक शक्तिशाली भू कानून और मूल निवास कानून के लिए आज देहरादून में जनाधिकार मोर्चा ने भी अपना समर्थन प्रदान किया । राष्ट्रीय महासचिव हेमा भण्डारी ने तांडव रैली में भगवान शंकर के शस्त्र त्रिशूल के साथ रैली में प्रदर्शन कर रोष व्यक्त किया।
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
उत्तराखंड क्रांति दल द्वारा आहूत तांडव रैली जो एक शक्तिशाली भू कानून और मूल निवास कानून के लिए आज देहरादून में जनाधिकार मोर्चा ने भी अपना समर्थन प्रदान किया । राष्ट्रीय महासचिव हेमा भण्डारी ने तांडव रैली में भगवान शंकर के शस्त्र त्रिशूल के साथ रैली में प्रदर्शन कर रोष व्यक्त किया। जनाधिकार मोर्चे की महासचिव हेमा भण्डारी ने कहा कि उत्तराखंड त्याग और बलिदान की भूमि है। उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए कई क्रांतिकारी साथियों ने शहादत दी। इस माटी ने कई लाल पैदा किए। जिसमें मुख्य रूप से वीर माधो सिंह भंडारी, कफ्फू चौहान, उत्तराखंड के गांधी इंद्रमणि बडोनी, जन क्रांति के नायक श्रीदेव सुमन, राज्य आंदोलन में शहीद हुए गंभीर सिंह कठैत, चिपको आंदोलन के प्रणेता सुन्दरर लाल बहुगुणा, पहाड़ के संसाधनों को बचाने के लिए अंतिम सांस तक लड़ने वाले पत्रकार राजेन टोडरिया जैसी महान हस्तियों ने अपने समाज के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया। उन्होने कहा कि उत्तराखंडवासी अपनी जमीन, अपने पुस्तैनी घर, अपने जंगल सब कुछ कुर्बान करने के बाद भी उपेक्षित हैं। आज उत्तराखण्ड में बाहर के लोग नौकरी कर रहे हैं। मूल निवासियों के लिये यहां नौकरियां नहीं है। यहाँ बाहर से आये लोगो ने अपने बड़े बड़े रिसोर्ट खोल लिए। यहां बन रहे रिसोर्ट/होटल में बाहर के लोग मूल निवासियों को नौकर/चौकीदार बना रहे हैं। हम चाहते हैं कि हमारे लोगों का अपनी जमीन पर मालिकाना हक हो। वह अपनी जमीन पर उद्योग लगाए और इससे अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करे। लिहाज से यहाँ बहुत संभावनाएं हैं। यहां के लोगों को रोजगार मिल सकता है। लेकिन इस पर भी बाहरी लोग कब्जा करना चाहते हैं। बाहरी ताकतों से लड़ने के लिए सभी को एकजुट होना होगा। आज हमारी सांस्कृतिक पहचान का भी संकट खड़ा हो गया है। इसे बचाने की लड़ाई हम सभी को लड़ाई लड़नी हैँ। 40 से ज्यादा आंदोलनकारियों की शहादत से हासिल हुआ हमारा उत्तराखंड राज्य आज 23 साल बाद भी अपनी पहचान के संकट से जूझ रहा है। उन्होंने कहा कि 23 साल बाद भी यहां के मूल निवासियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पाया है और अब तो हालात इतने खतरनाक हो चुके हैं कि मूल निवासी अपने ही प्रदेश में दूसरे दर्जे के नागरिक बनते जा रहे हैं। मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू करने के साथ ही प्रदेश में मजबूत भू-कानून लागू किया जाना बेहद जरूरी है। कहा कि मूल निवास का मुद्दा उत्तराखंड की पहचान के साथ ही यहां के लोगों के भविष्य से भी जुड़ा है। उन्होंने कहा कि मूल निवास की लड़ाई जीते बिना उत्तराखंड का भविष्य असुरक्षित है। उत्तराखंड के मूल निवासियों के अधिकार सुरक्षित रहें, इसके लिए मूल निवास 1950 और मजबूत भू-कानून लाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज प्रदेश के युवाओं के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।