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सालिनता से बुराईयों पर प्रहार एवं सही रास्ते के लिए उम्रभर एक प्रेरक का जीवन जिते रहे वाजपेयी


भारत के इतिहास मे 16 अगस्त की तारीख न भूले जाने वाली तारीख के रूप मे दर्ज हो गई है। जिसका सम्बंध अटल बिहारी वाजपेयी जैसे एक सरल एवं कुशल राजनेता के रूप में सदैव यादगार बनी रहेगी अटल बिहारी वाजपेयी भारत की राजनीति में एक ऐसा नाम जिसके उच्चारण मात्र से सादगी, सालिनता, सभ्यता, समर्पण एवं सदभाव का अनूठा एहसास स्वतः ही अनुभव होने लगता है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार (डाॅ0 शिवकुमार चैहान) भारत के इतिहास मे 16 अगस्त की तारीख न भूले जाने वाली तारीख के रूप मे दर्ज हो गई है। जिसका सम्बंध अटल बिहारी वाजपेयी जैसे एक सरल एवं कुशल राजनेता के रूप में सदैव यादगार बनी रहेगी। अटल बिहारी वाजपेयी भारत की राजनीति में एक ऐसा नाम जिसके उच्चारण मात्र से सादगी, सालिनता, सभ्यता, समर्पण एवं सदभाव का अनूठा एहसास स्वतः ही अनुभव होने लगता है। शब्द की जादूगरी एवं भावों में निसछलता को राजनीति मे समाहित करने का श्रेय वाजपेयी जी को जाता है। उन्होने अपने काव्य रूपी हदय से राजनीति मे एक नया मुकाम हासिल किया। राजनीति को संकीर्णता की दलदल से निकालकर स्पष्ट एवं तार्किक विचारो की सालिनता का लिबास पहनाकर उन्होने हर किसी को अपनी काबलियत का मुरीद बना लिया था। वाजपेयी अपनी सधी विचारधारा एवं काव्य शैली से अपने धुर विरोधियों के दिल मे भी एक विशेष स्थान रखते थे। भारत मां के ऐसे सच्चे सपूत, राष्ट्र मार्गदर्शक, देशभक्त, भारत-रत्न और इन सबसे भी बढ़कर पंडित अटल बिहारी वाजपेयी एक अच्छे इंसान थे। अपने व्यवहार से उन्होने लोगों के दिलों में अपनी एक खास जगह बनाई जिससे देश के बच्चे, युवा, महिलाएं, बुजुर्ग सभी के बीच वे लोकप्रिय रहे। भारत की राजनीति में मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करने वाले राजनेता और प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयीजी का काम बहुत शानदार रहा। उनके कार्यों की बदौलत ही उन्हें भारत के ढांचागत विकास का दूरदृष्टा कहा जाता है। पंडित अटल बिहारी वाजपेयीजी की बातें और विचार सदैव तर्कपूर्ण होते थे और उनके विचारों में जवान सोच झलकती थी। यही झलक उन्हें युवाओं में लोकप्रिय बनाती थी। अपनी कविताओं के जरिए अटलजी हमेशा सामाजिक बुराइयों पर प्रहार करते रहे। उनकी कविताएं प्रशंसकों को हमेशा सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती रहेंगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले युग पुरुष अटल बिहारी वाजपेयीजी का जन्म ग्वालियर में 25 दिसम्बर 1924 को हुआ। अटलजी के पिता का नाम पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा वाजपेयी था। पिता पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापक थे। कृष्ण बिहारी वाजपेयी साथ ही साथ हिन्दी व ब्रजभाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। अटल बिहारी वाजपेयी मूल रूप से उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा जिले के प्राचीन स्थान बटेश्वर के रहने वाले थे। इसलिए वाजपेयी जी का पूरे ब्रज सहित आगरा से खास लगाव था। अटल बिहारी वाजपेयीजी की बीए की शिक्षा ग्वालियर के वर्तमान में लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से पहचाने जाने वाले विक्टोरिया कॉलेज में हुई। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक करने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने कानपुर के डीएवी महाविद्यालय से कला में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रखर वक्ता और कवि थे। ये गुण उन्हें उनके पिता से वंशानुगत मिले। अटल बिहारी वाजपेयीजी को स्कूली समय से ही भाषण देने का शौक था और स्कूल में होने वाली वाद-विवाद, काव्य पाठ और भाषण जैसी प्रतियोगिताओं में हमेशा हिस्सा लेते थे। अटल बिहारी वाजपेयीजी छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में हिस्सा लेते रहे। अटल बिहारी वाजपेयीजी ने अपने जीवन में पत्रकार के रूप में भी काम किया और लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। अटल बिहारी वाजपेयीजी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे और उन्होंने लंबे समय तक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं के साथ काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी सन् 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सन् 1957 के लोकसभा चुनावों में पहली बार उत्तर प्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा पहुंचे। अटलजी 1957 से 1977 तक लगातार जनसंघ की ओर से संसदीय दल के नेता रहे। अटल बिहारी वाजपेयीजी ने अपने ओजस्वी भाषणों से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू तक को प्रभावित किया। एक बार अटल बिहारी वाजपेयी के संसद में दिए ओजस्वी भाषण को सुनकर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनको भविष्य का प्रधानमंत्री तक बता दिया था और आगे चलकर पंडित जवाहर लाल नेहरू की भविष्यवाणी सच भी साबित हुई। अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार था। उनके विपक्ष के साथ भी हमेशा मधुर संबंध रहे। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजयश्री के साथ बांग्लादेश को आजाद कराकर पाक के 93 हजार सैनिकों को घुटनों के बल भारत की सेना के सामने आत्मसमर्पण करवाने वाली देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधीजी को अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में दुर्गा की उपमा से सम्मानित किया था और 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाने का अटल बिहारी वाजपेयी ने खुलकर विरोध किया था। आपातकाल की वजह से इंदिरा गांधी को 1977 के लोकसभा चुनावों में करारी हार झेलनी पड़ी और देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी जिसके मुखिया स्वर्गीय मोरारजी देसाई थे और अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री जैसा महत्वपूर्ण विभाग दिया गया था। अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री रहते हुए पूरे विश्व में भारत की छवि बनाईं और विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में भाषण देने वाले देश के पहले वक्ता बने। अटलजी 1977 से 1979 तक देश के विदेश मंत्री रहे। 1980 में जनता पार्टी के टूट जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने सहयोगी नेताओं के साथ भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1996 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। भाजपा द्वारा सर्वसम्मति से संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद अटलजी देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन अटलजी 13 दिन तक देश के प्रधानमंत्री रहे। सन् 1998 में भाजपा फिर दूसरी बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन 13 महीने बाद तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार गिर गई, लेकिन इसी बीच अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर सम्पूर्ण विश्व को भारत की शक्ति का एहसास कराया। अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए लेकिन उसके बाद भी भारत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में हर तरह की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निबटने में सफल रहा। अटल बिहारी वाजपेयी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल की और 19 फरवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली-लाहौर बस सेवा का उद्घाटन करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नई शुरुआत की। लेकिन कुछ ही समय पश्चात् पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान द्वारा कब्जा की गई जगहों पर हमला किया और पाकिस्तान को सीमा पार वापस खदेड दिया। एक बार फिर भारत को विजयश्री मिली जिसका पूरा श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को जाता है। कारगिल युद्ध में विजयश्री के बाद हुए 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 दलों से गठबंधन से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के रूप में सरकार बनाई और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूर्ण किया। इन पांच वर्षों में अटल बिहारी वाजपेयी ने देश में प्रगति के अनेक आयाम छुए और राजग सरकार ने गरीबों, किसानों और युवाओं के लिए अनेक योजनाएं लागू कीं। अटल सरकार ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना आरम्भ की और दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्ग से जोड़ा गया। 2004 में कार्यकाल पूरा होने के बाद देश में लोकसभा चुनाव हुआ और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में शाइनिंग इंडिया का नारा देकर चुनाव लड़ा, लेकिन इस चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला और वामपंथी दलों के समर्थन से कांग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र की सरकार बनाई और भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। इसके बाद लगातार अस्वस्थ रहने के कारण अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से संन्यास ले लिया। अटलजी को देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सन् 2015 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके घर जाकर सम्मानित किया। किसी के सामने हार नहीं मानने वाला और काल के कपाल पर लिखने-मिटाने वाली कविता का भाव अटल जी के विराट व्यक्तित्व का द्योतक है। भारत माॅ का यह अनूठा सपूत आज हमारे बीच नही है लेकिन उनकी छवि एवं काव्य रचनाये आने वाली पीढीयों का सदियों तक मार्ग-दर्शन करती रहेगी।

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