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मानव सेवा के लिए तत्पर रहना ही भगवान की आराधना का मूल उद्देश्य-आचार्य स्वामी कैलाशानंद गिरी


कैलाश वासी भगवान शिव की आराधना सहस्त्र गुना फलदाई होती है और शिव कृपा से ही व्यक्ति की उन्नति के द्वार खुलते हैं। उक्त उद्गार निरंजन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज ने नीलधारा तट स्थित दक्षिण काली मंदिर में श्रावण मास में चलने वाली विशेष शिव आराधना के दौरान श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

रिपोर्ट  - 

हरिद्वार, 12 अगस्त। कैलाश वासी भगवान शिव की आराधना सहस्त्र गुना फलदाई होती है और शिव कृपा से ही व्यक्ति की उन्नति के द्वार खुलते हैं। उक्त उद्गार निरंजन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज ने नीलधारा तट स्थित श्री दक्षिण काली मंदिर में श्रावण मास में चलने वाली विशेष शिव आराधना के दौरान श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। भगवान शिव की महिमा का सार बताते हुए उन्होंने कहा कि देवों के देव महादेव भगवान आशुतोष की आराधना हमें प्रकृति संरक्षण का भी संदेश देती है। गरीब असहाय निर्धन लोगों की मदद करना और मानव सेवा के लिए तत्पर रहना ही भगवान की आराधना का मूल उद्देश्य होना चाहिए। क्योंकि सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति मानव सेवा का संदेश देने वाली है। जिस से प्रभावित होकर विदेशी लोग भी भारतीय सभ्यता को अपना रहे हैं। हमें वेदपाठ का अध्ययन कर अपनी संस्कृति मैं निहित मूल तत्वों को समझना होगा। स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज ने कहा कि जटाधारी भगवान शिव की महिमा सौम्य एवं सर्वहितकारी है। जो अपने भक्तों पर श्रावण मास में विशेष कृपा बरसाते हैं। स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज ने कहा कि सावन के महीने में पूजा अर्चना करने से भगवान शिव बहुत जल्द प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। क्योंकि भगवान शिव अत्यंत कल्याणकारी हैं। आचार्य स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज ने कहा कि बेलपत्र में संसार के समस्त दैहिक दैविक और भौतिक तत्वों को हरने की क्षमता होती है। जो श्रद्धालु भक्त नियमित रूप से शिवलिंग पर जल धारा के साथ बेलपत्र अर्पित करता है। भगवान उसके जन्म जन्मांतर के पाप हर लेते हैं और मृत्यु के बाद वह व्यक्ति शिव गणों के साथ शिवलोक का आनंद प्राप्त करता है। भगवान को बेलपत्र अर्पित करने से सारे तीर्थों की यात्रा का फल मिलता है। इस दौरान आचार्य पवन दत्त मिश्र, अवंतिकानंद ब्रह्मचारी, पंडित प्रमोद पाण्डे, लालबाबा, कृष्णानंद ब्रह्मचारी, बालमुकुंदानंद ब्रह्मचारी, विवेकानंद पाण्डे आदि मौजूद रहे।

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