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धार्मिक संघर्ष और सांप्रदायिक हिंसाएँ के स्थान पर धार्मिक सौहार्द और सद्भाव नितांत आवश्यक - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


भारतीय संस्कृति में निहित “वसुधैव कुटुंबकम” का संदेश संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानने की शिक्षा देता है और ‘बंधुत्व’ से तात्पर्य भाईचारे की भावना से है। भारतीय संविधान भी भाईचारे की भावना को सवंद्धित और प्रोत्साहित करता है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 30 मार्च । भारतीय संस्कृति में निहित “वसुधैव कुटुंबकम” का संदेश संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानने की शिक्षा देता है और ‘बंधुत्व’ से तात्पर्य भाईचारे की भावना से है। भारतीय संविधान भी भाईचारे की भावना को सवंद्धित और प्रोत्साहित करता है। मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद-51।) में भी उल्लेखित हैं कि प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह धार्मिक, भाषाई, क्षेत्रीय अथवा वर्ग विविधताओं से ऊपर उठकर सौहार्द्र और आपसी भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करेेें। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में बताया गया है कि ‘बंधुत्व’ से तात्पर्य - एक व्यक्ति का सम्मान और दूसरा देश की एकता और अखंडता से है। अतः सामाजिक सद्भाव, सामाजिक एकजुटता, ‘देश की एकता और अखंडता’, परस्पर सद्भाव एवं सम्मान की भावना पोषित और विकसित कर जनसमुदाय के बीच सभी मतभेदों को कम करने हेतु प्रयत्न करना सभी भारतीयों का परम कर्तव्य है, वर्तमान समय में इस भावना को पोषित करने की नितांत आवश्यकता है। वर्तमान समय में भाईचारे को बढ़ावा देने से न केवल भारतीय समाज जागृत होगा बल्कि राष्ट्रवाद की भावना का भी प्रसार होगा। एक सशक्त और समृद्ध ‘नेशन के लिये धार्मिक संघर्ष और सांप्रदायिक हिंसाएँ के स्थान पर धार्मिक सौहार्द और सद्भाव की जरूरत होती है। जगद्गुरू शंकराचार्य जी ने छोटी सी उम्र में समाज को एकता और अखंडता के सूत्र मंे पिरोने हेतु पैदल भारत भ्रमण कर चार पीठों की स्थापना की। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, दक्षिण से उत्तर तक, पूर्व से पश्चिम तक पूरे भारत का भ्रमण कर एकता का संदेश दिया वह भी उस समय जब कम्यूनिकेशन (संवाद) और यातायात के कोई साधन नहीं थे। वर्तमान समय में भी एकरूपता हमारे भोजन में, हमारी पोशाक में भले ही न हो परन्तु हमारी सोच में एकरूपता अवश्य होनी चाहिये। हम भारतीयों के बीच एकता हो; एकरूपता हमारे भावों में हो, विचारों में हो ताकि हम सभी मिलकर रहें। आदिगुरू शंकराचार्य जी ने वेदान्त और अद्वैत के ऐसे दिव्य सूत्र दिये जिसने भारत ही नहीं पूरे विश्व को एक नई दिशा दी। आदिगुरू शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित ज्योतिर्मठ, श्रृगंेरी शारदा पीठ, द्वारिका पीठ, गोवर्धन पीठ, भारतीय हिन्दू दर्शन के गूढ़ रहस्यों का संदेश देते हैं। ये दिव्य मठ सेवा, साधना, सदभाव और समरसता का अद्भुत संगम हंै। उन्होने तमाम विविधताओं से युक्त भारत को एक करने में अहम भूमिका निभायी। बात चाहे एकता की हो या एकरूपता की हो या परम सत्ता से एकता की बात हो उन सब के लिये वेदान्त दर्शन में महत्वपूर्ण सूत्र समाहित हंै उन दिव्य सूत्रों के साथ जीवन में आगे बढ़े तो आपस की सारी दीवारों और मतभेदों को समाप्त किया जा सकता हैं।

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