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बदलते युग की कावड यात्रा के शिव भक्त भक्ति करते है, या मस्ती ?


आज के यह भक्त शराब, सुल्फा गांजा ऐसा कोई नशा नहीं छोड़ते जो यह तीर्थ नगरी में ना करते हो, प्राचीन युग के भक्त इसलिए वह तीर्थ नगरी से कुछ समय के बाद ही तुरंत वापस हो जाया करते थे लेकिन आज के यह भक्त दो दो तीन तीन तीन गंगा में ही अपना मल मूत्र त्यागते हैं और पाप के भागी बनते हैं गंगा के किनारे पर गंदगी इतनी कि दुर्गंध के मारे रुका ना जाए अब यह आज के भक्त जान ले कावड़ ले जाकर हम पाप के भागी बन रहे हैं या पुण्य के?।

रिपोर्ट  - à¤°à¤¾à¤®à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° गौड़

हरिद्वार कावड़ मेला वैसे तो पूर्व काल से ही चल रहा है कांवड़ मेले में पूर्व काल के शिव भक्त इस बदलते समय में शिव भक्त भी बदल गए हैं एवं कावडो में भी काफी बदलाव आया है प्राचीन काल के शिव भक्त श्रद्धा भाव, ज्ञान वैराग्य, जप और तप, और प्रायश्चित की भावना लेकर आया करते थे जो कि अब बिल्कुल बदल गई है इन नए भक्तों में ना तो श्रद्धा भाव है और ना ही ज्ञान और वैराग्य है और ना ही प्रायश्चित करने की भावना जप तप तो बहुत दूर की बात हैं पूर्व के भक्त गंगा में पांच डुबकी लगा और कांवड़ में जल भरने के बाद तीर्थ पर रुकते भी नहीं थे और जितनी देर भी रुकते थे नीचे चटाई पर विश्राम करते थे वह इसलिए कि कहीं गलती से भी तीर्थ पर कोई गलती ना हो जाए एवं मल मूत्र न त्याग कर कहीं पाप के भागी ना बन जाएं वह भक्त नंगे पैर भगवान का जप करते हुए पैदल यात्रा करते थे लेकिन आज के शिव भक्त गंगा में कूद कूद कर स्नान करना गंगा में शौच करना मल मूत्र त्यागना आलीशान होटलों के कमरे में रहना जप तप धर्म की तो बात ही नहीं करना आज के आधुनिक युग में भक्त ही नहीं प्रचलन बदल गया है अब लाखों रुपए से बनी बड़ी-बड़ी कावड़ लेकर आज के आधुनिक म्यूजिक की धुनों पर नाचते गाते आनंद मस्ती लेते हुए दिखाई देते हैं लेकिन पूर्व शिव भक्तों को भगवान का भजन एवं कीर्तन करते जाते जाते थे और अपने मन में सोचते थे कि कहीं गलती से भी कोई पाप ना हो जाए लेकिन आज के भक्त पाप पुण्य का मतलब ही नहीं जानते केवल इंजॉय ही जानते हैं आज के यह भक्त शराब, सुल्फा गांजा ऐसा कोई नशा नहीं छोड़ते जो यह तीर्थ नगरी में ना करते हो उस युग के भक्त इसलिए वह तीर्थ नगरी से कुछ समय के बाद ही तुरंत वापस हो जाया करते थे लेकिन आज के यह भक्त दो दो तीन तीन तीन गंगा में ही अपना मल मूत्र त्यागते हैं और पाप के भागी बनते हैं गंगा के किनारे पर गंदगी इतनी कि दुर्गंध के मारे रुका ना जाए अब यह आज के भक्त जान ले कावड़ ले जाकर हम पाप के भागी बन रहे हैं या पुण्य के ।

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