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परमार्थ निकेतन में भाई/बहनों व बच्चों को कृत्रिम अंग व थेरेपी प्रदान करने हेतु निःशुल्क शिविर


नवरात्रि के पावन अवसर पर विशेष रूप से दिव्यांग भाई/बहनों, सेरेब्रल पाल्सी (सीपी) बच्चों को गरिमामय जीवन प्रदान करने और उनकी मुस्कान को लौटाने हेतु एक विशेष शिविर का आयोजन किया गया जिसमें सीपी बच्चों के लिये थेरेपी के साथ ही ऊपरी और निचले अंग, पोलियो से ग्रस्त रोगियों के लिए कैलिपर्स, मोल्डेड जूते, लिम्ब्स आदि का निर्माण एवं वितरण किया जायेगा।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 22 सितम्बर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती के आशीर्वाद और मार्गदर्शन से 19 से 25 सितम्बर 2022, तक परमार्थ निकेतन में शारीरिक रूप से विकलांग, दिव्यांगों के लिये कृत्रिम अंगों, कैलिपर्स और मोल्डेड जूतों के निर्माण और मुफ्त वितरण हेतु निःशुल्क शिविर का आयोजन किया जा रहा है। नवरात्रि के पावन अवसर पर विशेष रूप से दिव्यांग भाई/बहनों, सेरेब्रल पाल्सी (सीपी) बच्चों को गरिमामय जीवन प्रदान करने और उनकी मुस्कान को लौटाने हेतु एक विशेष शिविर का आयोजन किया गया जिसमें सीपी बच्चों के लिये थेरेपी के साथ ही ऊपरी और निचले अंग, पोलियो से ग्रस्त रोगियों के लिए कैलिपर्स, मोल्डेड जूते, लिम्ब्स आदि का निर्माण एवं वितरण किया जायेगा। पीड़ितों के दिव्यांग अंगों की व्यक्तिगत माप चिकित्सकों व तकनीशियन की टीम द्वारा ली जा रही हैं। (परमार्थ निकेतन अस्पताल में 10 से 5 बजे) स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के दिव्य और भव्य विजन के साथ इस पहल की शुरूआत हुई है। दिव्यांगता विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील राष्ट्र की एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है इसलिये दिव्यांगता के प्रति हम सभी की संवेदनशीलता नितांत आवश्यक है ताकि सभी दिव्यांगों को लाभ पहुंचाया जा सके। व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और जीवन के हर पहलू में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों तथा उनके हितों को प्रोत्साहित करना अत्यंत जरूरी है। भारत में दिव्यांग लोगों के सामाजिक और आर्थिक विकास की चुनौतियों को कम करने की संभावनाओं का बढ़ाना होगा। चैंकाने वाली बात यह है कि इस आबादी के 45 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं, जो उनके लिये बेहतर और अधिक सुविधा-संपन्न जीवन के निर्माण प्रक्रिया को मुश्किल बनाता है। स्वामी जी ने कहा कि हमें दिव्यांगों को सहानुभूतिपूर्ण और दया की नजर से देखने की जरूरत नहीं है बल्कि उनके साथ सामान्य व्यवहार को बढ़ावा देना होगा तभी वे सम्मान जनक जीवन यापन कर सकते हैं।

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