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शिक्षा व दीक्षा, इंटरनेट व इनरनेट, शिक्षा व संस्कार, संस्कृति व प्रकृति चले साथ साथ - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


दून विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी के बाद, भारत के विभिन्न प्रांतों से आए राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद के प्रतिष्ठित सदस्यों ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में परमार्थ निकेतन, गंगा आरती में सहभाग किया।

रिपोर्ट  - आल न्यूज़ भारत

ऋषिकेश, 31 अगस्त। दून विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी के बाद, भारत के विभिन्न प्रांतों से आए राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद के प्रतिष्ठित सदस्यों ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में परमार्थ निकेतन, गंगा आरती में सहभाग किया। विभिन्न राज्यों से आये शिक्षाविद्ों की यह यात्रा न केवल शैक्षिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस संगोष्ठी का उद्देश्य उच्च शिक्षा में गुणवत्ता और मानकों को बढ़ावा देना है। संगोष्ठी के बाद, सदस्यों ने परमार्थ निकेतन की दिव्य गंगा आरती में सहभाग कर भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के दिव्य अनुभव, गंगा आरती के महत्व और उसकी पवित्रता को आत्मसात किया। प्रतिनिधियों ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों और विचारों का आदान-प्रदान किया। इस संगोष्ठी में विभिन्न विषयों यथा शिक्षा में नवाचार, अनुसंधान की गुणवत्ता, और शैक्षिक संस्थानों की प्रत्यायन प्रक्रिया के साथ न केवल शैक्षिक संस्थानों की भूमिका बल्कि छात्रों और शिक्षकों की जिम्मेदारी और महत्व पर भी विचार विमर्श किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि शिक्षा व दीक्षा साथ-साथ चले, इंटरनेट व इनरनेट साथ साथ चले क्योंकि शिक्षा हमें इंटरनेट से जोड़ती है और दीक्षा हमें इनरनेट से जोड़ती है। शिक्षा हमें बाहरी दुनिया की जानकारी और तकनीकी ज्ञान देती है, जबकि दीक्षा हमें आत्मज्ञान और आंतरिक शांति की ओर ले जाती है। वर्तमान समय में व्यक्ति इंटरनेट के माध्यम से दूसरों से तो जुड़ रहा है परन्तु खुद से दूर होता जा रहा है इसलिये इंटरनेट व इनरनेट दोनों का संगम हमारे जीवन में हो तथा शिक्षा व दीक्षा, इंटरनेट व इनरनेट, शिक्षा व संस्कार, संस्कृति व प्रकृति साथ साथ चले। साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि शिक्षा का मतलब केवल अच्छे स्कूल या विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने, बड़ी-बड़ी डिग्री लेने, बड़ी गाड़ी लेने से नहीं है बल्कि शिक्षा का वास्तविक मतलब तो यह है कि हम जीवन को कैसे जिये, स्वयं को कैसे जाने, अपने विज़डम और विज़न को जाने। वर्तमान समय में हमें शिक्षा के माध्यम में छात्रों को पांच ‘सी’ के विषय में जरूर बताना चाहिये। पांच सी-कनेक्शन अर्थात धर्म से कनेक्शन, डिवाइन कनेक्शन और उच्च शक्ति से जुड़ाव, कान्सियसनेस अपने पर्यावरण के प्रति, अभी पूरे विश्व में जिसकी सबसे अधिक जरूरत है वह ग्लोबल कान्सियसनेश। ग्लोबल कान्सियसनेस पूरी दुनिया के प्रति जागरूकता, संवेदनशीलता, पर्यावरण और समाज के प्रति जागरूकता, कम्पेशन, अपनी धरती और सभी जीवों के प्रति करुणा, करेज, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय के लिए साहस और किएटीविटी, नई, सकारात्मक और सतत पहल करने की क्षमता। आज हमारे युवाओं को यह शिक्षा भी देने की जरूरत है।

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