शà¥à¤°à¥€à¤ªà¤‚च दशनाम जूना अखाड़े की विगत 12सितमà¥à¤¬à¤° को हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ हà¥à¤¯à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ पौराणिक पवितà¥à¤° छड़ी यातà¥à¤°à¤¾ अब अपने अनà¥à¤¤à¤¿à¤® चरण में पहà¥à¤š गयी है। शनिवार को पवितà¥à¤° छड़ी तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤—ीन पौराणिक शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ दूनागिरि मनà¥à¤¦à¤¿à¤° पहà¥à¤šà¥€à¥¤ जहां मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के पूरोहितों ने पवितà¥à¤° छड़ी की पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ कर माता वैषà¥à¤£à¤µà¥€ के दरà¥à¤¶à¤¨ कराà¤à¥¤
रिपोर्ट - गोपाल रावत
हरिदà¥à¤µà¤¾à¤°à¥¤ शà¥à¤°à¥€à¤ªà¤‚च दशनाम जूना अखाड़े की विगत 12सितमà¥à¤¬à¤° को हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ हà¥à¤¯à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ पौराणिक पवितà¥à¤° छड़ी यातà¥à¤°à¤¾ अब अपने अनà¥à¤¤à¤¿à¤® चरण में पहà¥à¤š गयी है। शनिवार को पवितà¥à¤° छड़ी तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤—ीन पौराणिक शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ दूनागिरि मनà¥à¤¦à¤¿à¤° पहà¥à¤šà¥€à¥¤ जहां मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के पूरोहितों ने पवितà¥à¤° छड़ी की पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ कर माता वैषà¥à¤£à¤µà¥€ के दरà¥à¤¶à¤¨ कराà¤à¥¤ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ की शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ ों में से à¤à¤• दूना गिरि माता वैषà¥à¤£à¥‹ देवी जमà¥à¤®à¥‚कशà¥à¤®à¥€à¤° के बाद à¤à¤• मातà¥à¤° दूसरी वैषà¥à¤£à¥‹ शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ है। पौराणिक आखà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤— में जब लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ को मेघनाथ की शकà¥à¤¤à¤¿à¤¬à¤¾à¤£ लगी थी तब सà¥à¤¶à¥‡à¤· वैदà¥à¤¯ के कहने पर हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ उपचार हेतॠसंजीवनी बूटी का परà¥à¤µà¤¤ लेकर आ रहे थे तब इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर परà¥à¤µà¤¤ का à¤à¤• टà¥à¤•à¥œà¤¾ टूट कर गिर गया था। इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में दूनागिरि का मनà¥à¤¦à¤¿à¤° बन गया। बाद मे सनॠ1318 ईसà¥à¤µà¥€ में कतà¥à¤¯à¥‚री शासक सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¦à¥‡à¤µ ने à¤à¤µà¥à¤¯ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कर इसमेें माता दà¥à¤°à¥à¤—ा की मूरà¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤¾à¤¿à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की। वैसे यहां पर माता के पिणà¥à¤¡à¥€ सà¥à¤µà¤°à¥‚प की पूजा होती है। देवी पà¥à¤°à¤¾à¤£ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° पांडवों ने यà¥à¤¦à¥à¤µ में विजय हेतॠअजà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤µà¤¾à¤¸ के दौरान दूना गिरि माता की पूजा की थी। इतिहासकार ई.टी.à¤à¤Ÿà¤¿à¤•à¤¸à¤¨ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मनà¥à¤¦à¤¿à¤° होने का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ सनॠ1181 के शिलालेख में à¤à¥€ मिलता है। दूनागिरि के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बाद शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¹à¤‚त पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤—िरि महाराज के नेतृतà¥à¤µ में पवितà¥à¤° छड़ी रानीखेत सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤µ कालीमनà¥à¤¦à¤¿à¤° पहà¥à¤šà¥€à¥¤ जहां महंत पशà¥à¤ªà¤¤à¤¿ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ महाराज ने पवितà¥à¤° छड़ी तथा साधà¥à¤“ं के जतà¥à¤¥à¥‡ का पà¥à¤·à¥à¤ªà¤µà¤°à¥à¤·à¤¾ कर सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया। पवितà¥à¤° छड़ी ने माता काली की पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ कर दरà¥à¤¶à¤¨ किà¤à¥¤ यहां से रातà¥à¤°à¤¿ विशà¥à¤°à¤¾à¤® के लिठपवितà¥à¤° छड़ी पौराणिक तीरà¥à¤¥ बिनसर महादेव पहà¥à¤šà¥€à¥¤ जहां पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ के बाद पवितà¥à¤° छड़ी अपने अनà¥à¤¤à¤¿à¤® पड़ाव बदà¥à¤°à¥€à¤•à¥‡à¤¦à¤¾à¤° , à¤à¥‚मियाथान तथा गरà¥à¤œà¤¿à¤¯à¤¾ देवी के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठरवाना