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विश्व शौचालय दिवस स्वच्छता और पानी आखिर बचानी है जिन्दगानी


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती ने भारत सहित विश्व के अन्य देशों में प्रसारित हो रहे इस कार्यक्रम के माध्यम से सभी को ‘बेहतर स्वच्छता तथा स्वच्छता के उद्देश्यों का समर्थन करने हेतु’ प्रतिज्ञा करवायी। ‘सेफर टायलेट, हैल्थीयर वल्र्ड’ कार्यक्रम का आयोजन मिशन पानी द्वारा किया गया।

रिपोर्ट  - à¤†à¤² न्यूज़ भारत

19 नवम्बर, ऋषिकेश। विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन वल्र्ड टॉयलेट कॉलेज में एक विशेष लाइव कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती ने भारत सहित विश्व के अन्य देशों में प्रसारित हो रहे इस कार्यक्रम के माध्यम से सभी को ‘बेहतर स्वच्छता तथा स्वच्छता के उद्देश्यों का समर्थन करने हेतु’ प्रतिज्ञा करवायी। ‘सेफर टायलेट, हैल्थीयर वल्र्ड’ कार्यक्रम का आयोजन मिशन पानी द्वारा किया गया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने महात्मा गांधी जी के कथन से अपने उद्बोधन की शुरूआत करते हुये कहा कि ‘साफ-सफाई, ईश्वर भक्ति के बराबर है। बापू ने कहा कि ’’स्वच्छता, स्वतंत्रता से भी ज्यादा जरूरी है’’ ’’स्वच्छता, हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है अतः स्वच्छता को अंगीकर कर आगे बढ़ते रहे।’’ उन्होंने कहा कि भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ही ने स्वच्छता अभियान का शंखनाद किया और अब यह जन-जन का अभियान बन गया। स्वामी जी ने कहा कि शौचालय माने सुरक्षा, स्वास्थ्य, सम्मान और संस्कार इसलिये शौचालय और स्वच्छता को धर्म बनाये क्योंकि बंदगी और गंदगी, पूजा और प्रदूषण साथ साथ नहीं चल सकते। अतः हम सभी को स्वच्छता का संकल्प लेना होगा क्योंकि हम बदलेगे तो परिवार बदलेगा, गली बदलेगी तो गांव बदलेगा, मुहल्ले बदलेगे तो मुल्क बदलेगा। स्वच्छता ही हमारा संस्कार है, स्वच्छता ही धर्म है और स्वच्छता ही सेवा है यह भाव हर व्यक्ति के अन्दर होना चाहिये। स्वच्छता और पानी के संरक्षण के लिये हमें अपनी सोच को बदलना होगा। सोच बदलेगी तो सितारे बदलेगे, नजर बदलेगी तो नज़ारे बदलेगे और फिर पूरे विश्व में स्वच्छता क्रान्ति आयेगी। स्वामी जी ने कहा कि स्वच्छ राष्ट्र के निर्माण हेतु हमारे स्वच्छता कार्यकर्ताओं अमूल्य योगदान हैं। वे अवरुद्ध शौचालय और सेप्टिक टैंक को साफ करते हैं। संत भीतर की स्वच्छता करते है और स्वच्छता दूत बाहरी परिवेश को स्वच्छ रखते हैं। हमें भीतर और बाहर दोनों ही स्वच्छताओं के लिये अपनी सोच को बदलना होगा।

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