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वृद्ध व्यक्ति की रक्षा करना सरकार का धर्म- प्रमोद वात्सल्य


वृद्ध व्यक्ति हर परिवार का वह छायादार वृक्ष होता है जिसके फल तो सब खाना चाहते लेकिन उसे अपने आंगन में रखना कोई नहीं चाहता।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हर परिवार की सुख और शांति तभी संभव है जब उस परिवार के हर सदस्य को मान, सम्मान एवं स्वाभिमान की रक्षा हो सके। आज के इस आधुनिक युग में एकल परिवार का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है एवं संयुक्त परिवार एक इतिहास बनता जा रहा है भारतीय समाज में। हमारे समाज के बहुत सारी ऐसी व्यवस्थाएं हैं जिसको आज लोग पसंद नहीं कर रहे हैं एवं इस स्वतंत्र भारत में आधुनिकीकरण होने की वजह से सारी संस्कृति एवं धरोहर वाली जो सभ्यता एवं परंपरागत सिस्टम था वह सब टूट चुका है। हर परिवार में आपको ऐसी कहानी सुनने को अब मिलेगी जिसमें बच्चों के बड़े होते ही मां-बाप अकेले पीछे छूट जाते हैं। उनके बच्चे अन्य शहरों में एवं अन्य देशों में कामकाज की तलाश में चले जाते हैं! आज हमारे बहुआयामी समाज के जो संस्कृति बदल रही है उसमें बच्चों के साथ-साथ मां-बाप में भी बदलाव हो रहे हैं। बदलाव एक प्रक्रिया है परंतु ऐसे बदलाव जो संस्कृति, सभ्यता एवं परंपराओं को तार-तार कर बदल रही हो ऐसी बदलाव हमें नहीं चाहिए, हम हिंदुस्तान की धरती पर हमेशा से अपने वृद्ध मां-बाप की रक्षा करते आए हैं। उनके आशीर्वाद लेते आए हैं एवं हर शुभ काम करने से पहले हम उनके चरण स्पर्श करना कभी नहीं भूले हैं। हमें पता होता था कि हमारा भला कोई चाहे ना चाहे परंतु ईश्वर और हमारे मां-बाप जरूर हमारे शुभ कामों में आशीर्वाद देकर हमें विजय बनाएंगे। पूरे विश्व में अब वृद्धा आश्रम की संस्कृति फैलती जा रही है बूढ़े मां बाप के लिए अब अनगिनत आश्रमों का निर्माण हो रहा है, कई तो बिल्कुल प्राइवेट कंपनियों की तरह संचालित हो रहे हैं। कई आश्रमों में वृद्ध व्यक्ति अपने पूरे जीवन की कमाई, धन- दौलत दान में देकर उस आश्रम में प्रवेश कर अपना जीवन गुजारते हैं और वहीं पर मृत्युलोक को प्राप्त हो जाते हैं। क्या कोई सोच सकता है कि ऐसी परिस्थिति वृद्ध व्यक्तियों के साथ अब क्यों दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है? यह बिल्कुल आधुनिक समाज के मुंह पर एक तमाचा है जहां पर बूढ़े मां बाप को देख रेख करने के लिए कोई भी परिवार का सदस्य आगे नहीं आ रहा है। चाहे वह व्यक्ति कि आय निम्न , मध्यम एवं उच्च वर्ग का ही क्यों ना हो सब के हाल एक जैसे ही है, सबका बुढापा उसी लचर अवस्था में गुजरती है जिस व्यवस्था का शिकार आज के समय में पूरे समाज हो चुका है। अगर किसी की पत्नी मर जाए और वह बुड्ढा व्यक्ति अकेला हो उस हालात में उस बूढ़े व्यक्ति का जीवन नर्क के समान हो जाता है ना उसको घर में उसके बच्चे रखना चाहते ना ही आश्रमों में पूरा सहयोग मिलता है।

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