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एक क्षण के लिए भी अपने भीतर ग्लानि, निस्तेजता और विस्मृति को न आने दें : स्वामी रामदेव महाराज


परम पूज्य स्वामी गोविन्ददेव गिरि महाराज के श्रीमुख से "छत्रपति शिवाजी महाराज कथा’’ के दूसरे दिन का शुभारम्भ पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में हुआ।

रिपोर्ट  - अंजना भट्ट घिल्डियाल

हरिद्वार, 10 अप्रैल। परम पूज्य स्वामी गोविन्ददेव गिरि महाराज के श्रीमुख से "छत्रपति शिवाजी महाराज कथा’’ के दूसरे दिन का शुभारम्भ पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में हुआ। पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने व्यासपीठ को प्रणाम करते हुए पूज्य गोविन्ददेव गिरि जी महाराज से कथा प्रारंभ करने का अनुरोध किया। कथा में स्वामी गोविन्द देव गिरि महाराज ने कथा में बताया कि जो कार्य भगवान श्रीराम, भगवान श्री कृष्ण ने किया, यदि वैसा ही कार्य शिवाजी महाराज न करते तो न पतंजलि योगपीठ बनता और न हम योग का नाम ले सकते, कुछ और ही कर रहे होते। उन्होंने कहा कि मेरे अंदर सभी महापुरुषों को लेकर बड़ा आदर है लेकिन महर्षि दयानंद सरस्वती के लिए विशेष आदर है क्योंकि उन्होंने अंग्रेजी का एक भी अक्षर पढ़े बिना राष्ट्रीयता का उत्थान किया। विशुद्ध वैदिक, विशुद्ध भारतीय प्रेरणा स्वामी दयानंद सरस्वती की ही देन है। देश बड़ा है, अंधकार घना है, अज्ञान पीढ़ियों से जमा है, उनको दूर करने के लिए प्रयासों की भी आवश्यकता है। और इन प्रयासों में पतंजलि योगपीठ का बहुत बड़ा योगदान है। देश जगना चाहिए, अभी पूरा जगा नहीं है। मानसिक गुलामी अभी भी है। अंग्रेेजी के कारण ही देश-विदेश में इस प्रकार के आख्यान (नैरेटिव) निर्माण करके इस गुलामी को पक्का करने का प्रयास आज भी हो रहा है। आज एक बौद्धिक संघर्ष की आवश्यकता है।

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