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लीगल गार्जियनशिप की क्यू जरूरत है प्रौढ़ मानसिक दिव्यांगजनों को


सभी जानते है कि 18 वर्ष के बाद हम सभी को अपने अधिकार एवं संरक्षण के लिए निर्णय लेने का हक हैं, हम अपने प्रति अच्छा बुरा सोच सकते है, अतः हम खुद के प्रति जागरूक हो गए है|

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

सभी जानते है कि 18 वर्ष के बाद हम सभी को अपने अधिकार एवं संरक्षण के लिए निर्णय लेने का हक हैं, हम अपने प्रति अच्छा बुरा सोच सकते है, अतः हम खुद के प्रति जागरूक हो गए है| परन्तु हम अगर बात करें दिव्यांग व्यक्ति की तो शारीरिक दिव्यांगजन अपने प्रति निर्णय लेने का समझ रखते है, लेकिन मानसिक दिव्यांगता जैसे ऑटिज़्म, मानसिक मंदता, डाउन सिंड्रोम, सेरेब्रल पाल्सी और बहुदिव्यांगता वाले दिव्यांगजन खुद के प्रति निर्णय लेने मे असमर्थ होते हैं, क्योंकि उनकी वास्तविक आयु तो 18 साल की हो जाती है, परंतु मानसिक आयु बहुत ही कम होतो है, कहने का मतलब हैं कि छोटे बच्चों की तरह होती है, इसलिये भारत सरकार के उपक्रम नेशनल ट्रस्ट, सामाजिक न्याय एवं आधिकारिकता मंत्रालय के द्वारा 18 वर्ष के बच्चो के लिए लीगल गार्जियनशिप परियोजना का संचालन कर रही हैं, जो बहुत ही लाभदायक है! और मानसिक दिव्यांग बच्चो के भविष्य को अधिकार एवं संरक्षण के प्रति सुरक्षा प्रदान करता हैं! अभिप्रेरणा फाउंडेशन के सचिव डॉ दीपेश चंद्र प्रसाद बताते है कि, संरक्षकता एक मूल्यवान उपकरण है जिसका उपयोग उन व्यक्तियों की रक्षा के लिए किया जा सकता है जो अब अपने लिए उपयुक्त व्यक्तिगत या वित्तीय निर्णय लेने की क्षमता नहीं रखते हैं। अभिभावक विकलांग व्यक्ति और / या उनकी संपत्ति की देखभाल करने का कर्तव्य मानते हैं, और लोकल लेवल कमेटी अभिभावक द्वारा शोषण या शोषण के जोखिम को कम करने के लिए निगरानी रखती है। वयस्क अभिभावक वह कानूनी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति वयस्क के लिए निर्णय-निर्माता की भूमिका ग्रहण करता है, जो स्वयं / स्वयं के लिए ऐसे निर्णय लेने में असमर्थ हो जाता है। अब बात करते हैं लोकल लेवल कमेटी की जिसका गठन जिलाधिकारी महोदय के अध्यक्षता मे किया जाता है, और NGO सदस्य के द्वारा लीगल गार्जियनशिप की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन और निःशुल्क की जाती हैं, अधिक जानकारी के लिए अभिप्रेरणा फाउंडेशन के सहायता संपर्क सूत्र 9319041049 से संपर्क किया जा सकता हैं!

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