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राजनीतिक विज्ञान विभाग द्वारा "पर्यावरण प्रभाव आंकलन ड्राफ्ट 2020" पर एक दिवसीय परिचर्चा


राजनीतिक विज्ञान विभाग द्वारा "पर्यावरण प्रभाव आंकलन ड्राफ्ट 2020" पर एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया। यह ड्राफ्ट पर्यावरण सम्बन्धी नियमों में कई बदलाव पेश करता है जो कि आने वाले दिनों में पर्यावरण और विकास की बहस को एक नया मोड़ देगा।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

राजनीतिक विज्ञान विभाग द्वारा "पर्यावरण प्रभाव आंकलन ड्राफ्ट 2020" पर एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया। यह ड्राफ्ट पर्यावरण सम्बन्धी नियमों में कई बदलाव पेश करता है जो कि आने वाले दिनों में पर्यावरण और विकास की बहस को एक नया मोड़ देगा। परिचर्चा में की शुरुआत करते हुए राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो० एम एम सेमवाल ने ड्राफ्ट के बारे जानकारी देते हुए कहा कि पर्यावरण कानूनों को मजबूत किये जाने की जरूरत थी लेकिन यह ड्राफ्ट पुराने कानूनों को ही कमजोर कर देगा। इस ड्राफ्ट में परियोजना के बनने से पहले जनसुनवाई के नियमों को कमजोर किया गया है जिसको मजबूत करने के लिए पर्यावरणविदों कई आंदोलन कर रहे थे। पहले जनसुनवाई के लिए 30 दिन का समय होता था जबकि नए ड्राफ्ट में इसे कम करके 20 का समय कर दिया है जो कि बहुत कम है।इस ड्राफ्ट पर सरकार को पुनः विचार करना चाहिए और आर्थिक विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। विकास बहुत जरूरी प्रक्रिया है और "अल्पतम विनाश, से समग्र विकास" के विचार से ही पर्यावरण को बचाया जा सकता है। इस ड्राफ्ट को जनता के बीच अधिक से अधिक ले जाने का प्रयास सरकार को करने की जरूरत है। ताकि एक बेहतर कानून सामने आए। मानविकी एवं समाज विज्ञान संकाय के डीन प्रो० सी०एस सूद ने कहा कि पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या बन कर उभरा है। कई देश और व्यवसायिक घराने पर्यावरण को ध्यान में रख कर नियम बना रहे है। लेकिन उसके बावजूद यह भविष्य के लिए दुनिया की सरकारों को सचेत ही करता है। डॉ० नरेश कुमार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का असर हम अपने गाँव से लेकर दुनिया भर में अलग अलग रूपों में देख सकते है। हमारे आस पास फसलों के समय मे जो बदलाव आया है वो जलवायु परिवर्तन का ही असर है। और पर्यावरण के इस नुकसान के लिए पूर्ण रूप से मनुष्य ही जिम्मेदार है। अत्यधिक उपभोग की संस्कृति ने पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचाया है। यह कानून उसी उपभोग की संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम करता है। इस लिए इस पर फिर से विचार किये जाने की जरूरत है। बदलते पर्यावरण का प्रभाव स्थानीय स्तर पर पड़ रहा है तो स्थानीय स्तर पर ही पर्यावरण को बचाने की भी जरूरत है। इस लिए सरकारों के अलावा सभी लोगों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है कि पर्यावरण को बचाने और सहेजने की दिशा में प्रयास किये जाय। इस परिचर्चा में राजनीति विज्ञान विभाग के शोधार्थियों मनस्वी सेमवाल, शिवानी पांडेय, मयंक उनियाल,लूसी लोहिया, शाहिल पाठक, सुशील कुमार, सुभम कुमार आदि ने कहा कि इस कानून में कई परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी से बाहर रखा गया है और परियोजना में कुछ गड़बड़ी की आशंका होने पर सरकार या परियोजना निर्माणदायी संस्था को ही शिकायत करने का अधिकार दिया गया है जो कि स्थानीय लोगों के अधिकारों का हनन है और पर्यावरण को भी निकट भविष्य में गहन क्षति पहुँचायेगा। परिचर्चा का संचालन शोध छात्रा लूसी लोहिया ने किया। और इस अवसर पर राजनीति विज्ञान विभाग के शोधार्थी एवं स्नातकोत्तर के छात्र - छात्राएं उपस्थित रहे ।

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