शà¥à¤°à¥€à¤ªà¤‚च दशनाम जूना आनंद अखाड़े के पवितà¥à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ छड़ी अपने कà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥…ू पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ में शà¥à¤•à¥à¤°à¤µà¤¾à¤° की शाम बागेशà¥à¤µà¤° पहà¥à¤šà¥€à¥¤ जहां जूना अखाड़े के शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¹à¤‚त शंकर गिरि,महंत कमल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€,तहसीलदार दीपिका,लेखपाल शारदा सिंह व सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ नागरिकों ने पवितà¥à¤° छड़ी की पà¥à¤·à¥à¤ªà¤µà¤°à¥à¤·à¤¾ कर पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ की।
रिपोर्ट - गोपाल सिंह रावत
बागेशà¥à¤µà¤°à¥¤ शà¥à¤°à¥€à¤ªà¤‚च दशनाम जूना आनंद अखाड़े के पवितà¥à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ छड़ी अपने कà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥…ू पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ में शà¥à¤•à¥à¤°à¤µà¤¾à¤° की शाम बागेशà¥à¤µà¤° पहà¥à¤šà¥€à¥¤ जहां जूना अखाड़े के शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¹à¤‚त शंकर गिरि,महंत कमल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€,तहसीलदार दीपिका,लेखपाल शारदा सिंह व सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ नागरिकों ने पवितà¥à¤° छड़ी की पà¥à¤·à¥à¤ªà¤µà¤°à¥à¤·à¤¾ कर पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ की। पवितà¥à¤° छड़ी को सरयू तथा गोमती के संगम मंे सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराकर पौराणिक शिवमनà¥à¤¦à¤¿à¤° बागनाथ ले जाया गया। जहंा वैदिक बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤®à¤£à¥‹à¤‚ ने पूरà¥à¤£ विधि विधान से छड़ी के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– महंत अनà¥à¤°à¥à¤¤à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¤à¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¹à¤‚त पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤—िरि महाराज व नागा सनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के जतà¥à¤¥à¥‡ के साथ बागनाथ महादेव की पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ कर अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• किया। शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¹à¤‚त पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤—िरि महाराज ने बागनाथ महादेव मनà¥à¤¦à¤¿à¤° 7वीं शताबà¥à¤¦à¥€ से ही असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में था। यहा पर à¤à¤—वान शिव ने बà¥à¤¯à¤¾à¤˜à¥à¤° बाघ के रूपॠमें निवास करते थे। इसलिठइसे बà¥à¤¯à¤¾à¤˜à¥‡à¥à¤°à¤¶à¥à¤µà¤° महादेव के नाम से जाना जाता है। इनà¥à¤¹à¥€ के नाम पर बागेशà¥à¤µà¤° जनपद का नाम पड़ा। पौराणिक गाथाओं के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° गोमती सरयू नदी के संगम पर मारà¥à¤•à¤¡à¥‡à¤¯ ऋषि ने तपसà¥à¤¯à¤¾ की थी। इस पौराणिक मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में उमा महेशà¥à¤µà¤° à¤à¤•à¤®à¥à¤–ी,तà¥à¤°à¤¿à¤®à¥à¤–ी व चरà¥à¤¤à¥à¤®à¥à¤–ी शिवलिंग गणेश विषà¥à¤£à¥ सूरà¥à¤¯ आदि की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ है जो कि 7वीं से 16वीं शताबà¥à¤¦à¥€ के मधà¥à¤¯ की है। शनिवार की पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ पवितà¥à¤° छड़ी ने जागेशà¥à¤µà¤° धाम के लिठपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ किया। मारà¥à¤— मंे पवितà¥à¤° छड़ी ताकà¥à¤²à¤¾ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गणानाथ महादेव मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठपहà¥à¤šà¥€à¥¤ जहां अषà¥à¤Ÿà¤•à¥Œà¤¶à¤² महंत संधà¥à¤¯à¤¾à¤—िरि महंत नरेनà¥à¤¦à¥à¤° गिरि,महंत उमेश पà¥à¤°à¥€ की अगà¥à¤µà¤¾à¤ˆ में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£à¥‹à¤‚ ने पवितà¥à¤° छड़ी की पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ की तथा मणानाथ महादेव का अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• किया। पौराणिक गाथाओ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° गणानाथ महादेव मनà¥à¤¦à¤¿à¤° पांचवी शताबà¥à¤¦à¥€ का मनà¥à¤¦à¤¿à¤° है। जहां सात किलोमीटर की पैदल कठिन चढाई के बाद ही पहà¥à¤šà¤¾ जा सकता है। सघन वनों के बीच इस मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में à¤à¤—वान शिव का पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• शिवलिंग à¤à¤• गà¥à¤«à¤¾ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। गà¥à¤«à¤¾ के ठीक उपर à¤à¤• जलधारा बहकर à¤à¤• वटवृकà¥à¤· पर गिरती है जिसकी जटाओं को शिव की जटाà¤à¤‚ कहा जाता है। जटाओं से जल की बूदें शिवलिंग पर निरनà¥à¤¤à¤° टपकती रहती है। जो कि नीचे बने à¤à¤• जलकà¥à¤£à¥à¤¡ में à¤à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ होता है। इस जल को वहà¥à¤¤ पवितà¥à¤° माना जाता है। मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि संतान पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठमहिलाà¤à¤‚ हाथ में दीपक लेकर रातà¥à¤°à¤¿ जागरण करती है तो उनकी मनोकामना पूरà¥à¤£ हो जाती है। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ पवितà¥à¤° छड़ी गणानाथ महादेव के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¹à¤¤ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤—िरि शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¹à¤‚त विशमà¥à¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€,शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¹à¤‚त शिवदतà¥à¤¤ गिरि,शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¹à¤‚त पà¥à¤·à¥à¤•à¤°à¤°à¤¾à¤œ गिरि,महंत महादेवानंद गिरि,महंत पारसपà¥à¤°à¥€,महंत विनय पà¥à¤°à¥€,महंत बलदेव à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€,महंत मोहनानंद गिरि,महंत ओमकार पà¥à¤°à¥€,महंत विमलागिरि,महंत रूदà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤‚द सरसà¥à¤µà¤¤à¥€,महंत à¤à¤°à¤µà¤ªà¥à¤°à¥€,महंत रामगिरि,महंत शिवपाल गिरि आदि के नेतृतà¥à¤µ में जागेशà¥à¤µà¤° धाम के लिठरवाना हà¥à¤¯à¥€à¥¤