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एम्स ऋषिकेश में शनिवार को वर्ल्ड ट्रॉमा डे मनाया गया।


अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में शनिवार को वर्ल्ड ट्रॉमा डे मनाया गया। इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए।

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में शनिवार को वर्ल्ड ट्रॉमा डे मनाया गया। इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। विश्व आघात दिवस के अवसर पर रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया गया,जिसमें संस्थान के फैकल्टी, चिकित्सकों, नर्सिंग स्टाफ व अन्य कर्मचारियों ने प्रतिभाग किया। गौरतलब है कि हर वर्ष 17 अक्टूबर को वर्ल्ड ट्रॉमा डे मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य दुनियाभर में दुर्घटनाओं और चोटों के कारण होने वाली मृत्यु एवं विकलांगता की बढ़ती दर तथा उन्हें रोकने की आवश्यकता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। जिसमें बताया गया कि एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी के निर्देशन में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जिस तत्परता से कोविड-19 पेन्डेमिक का इलाज एवं रोकथाम में उत्तराखंड सहित विभिन्न प्रदेशों से आने वाले मरीजों की सेवा में दिन रात जुटा है, उसी तत्परता के साथ कैंसर एवं ट्राॅमा के मरीजों का भी प्राथमिकता से उपचार हो रहा है। कार्यक्रम का एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी ने विधिवत उद्घाटन किया। जिसमें उन्होंने बताया कि ट्रॉमा के मरीजों को बचाने के लिए शुरुआती कुछ घंटे अति महत्वपूर्ण होते हैं, इसी के मद्देनजर एम्स ऋषिकेश में हैलीपैड का निर्माण किया गया है। निदेशक प्रो. रवि कांत जी ने बताया कि कई ट्रॉमा के मामलों में एक ही मरीज के उपचार के लिए ट्रॉमा विभाग के साथ साथ दूसरे विभागों का भी सहयोग लेना होता है, ऐसे में मरीज को चार से पांच विभागों के एकसाथ ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि एम्स ऋषिकेश अंतरराष्ट्रीय स्तर की ट्रॉमा केयर देने में पूरी तरह से सक्षम है। इस अवसर पर ट्रॉमा विभागाध्यक्ष प्रो. मोहम्मद कमर आजम ने बताया कि संस्थान में निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी के पदभार ग्रहण करने के बाद ही उनकी तत्परता व अथक प्रयासों से यहां ट्रॉमा एवं इमरजेंसी सेवाएं शुरू हो पाई हैं। उन्होंने बताया कि निदेशक एम्स की पहल से संस्थान में हैलीपैड बनने के बाद यह देश का पहला मेडिकल संस्थान हो गया है जहां ट्रॉमा के मरीजों के लिए इस तरह की सुविधा उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि ट्रॉमा यानी ऐसी दर्दनाक घटना जो व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मकरूप से नुकसान पहुंचाती है, यह किसी भी कारण से हो सकती है, मसलन कोई एक्सिडेंट, परिवार के सदस्य या मित्र का निधन, तलाक, बीमारी, किसी प्राकृतिक आपदा अथवा घरेलू हिंसा आदि’ ऐसी घटनाएं वर्तमान की विषम परिस्थितियों में भी जारी हैं। ट्राॅमा सर्जरी विभाग के सहायक आचार्य एवं आयोजन सचिव डा. भास्कर सरकार ने एक अध्ययन के हवाले से बताया कि भारत में हर वर्ष लगभग 1.35 लाख सड़क दुर्घटनाओं में लगभग 1.50 लाख लोग अपनी जान गंवा लेते हैं। ऐसी दुर्घटनाओं में जो लोग जिंदा बच जाते हैं, उन पर अलग-अलग तरह की विकलांगता के इलाज का भारी-भरकम बोझ आ जाता है। जिससे न केवल विकलांगता और मृत्यु दर में वृद्धि हो रही है, बल्कि इससे राष्ट्रीय उत्पादकता भी प्रभावित हो रही है। वजह अधिकतर मामलों में युवा वर्ग सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होता है। लिहाजा, किसी भी ऐसी घटना को रोकने के लिए आवश्यक सावधानी बरतनी जरुरी है।

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